खबरों के प्रति गंभीरता छोड़कर ताकत, विज्ञापन, ग्लैमर, चकाचौंध और पैसे के पीछे भागे
उप राष्ट्रपति ने ‘जर्नलिज्म-एथिक्स एंड रिस्पांसिबिलिटीज’ पुस्तक का विमोचन…
खबरों के प्रति गंभीरता छोड़कर ताकत, विज्ञापन, ग्लैमर, चकाचौंध और पैसे के पीछे भागे
उप राष्ट्रपति ने ‘जर्नलिज्म-एथिक्स एंड रिस्पांसिबिलिटीज’ पुस्तक का विमोचन…
एम. अफसर खां सागर /कमसारनामा में सुहैल खां ने गाजीपुर के संक्षिप्त इतिहास के साथ-साथ सकरवार वंश के क्रम में यहां के भूमिहार ब्राहमणों, कमसार के पठानों और राजपूतों की चार सौ अस्सी साल के वंशावली तथा इतिहास को संकलित करने का अनूठा काम किया है। सुहैल खां ने प्रस्तुत पुस्तक मे…
नई दिल्ली। भारतीय प्रेस परिषद (पीसीआई) ने सभी मीडिया संगठनों से कार्यस्थलों पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न रोकने और शिकायत निवारण के लिए आंतरिक समितियों के अब तक गठन नहीं किए जाने पर सवाल उठाते हुए सभी मीडिया संगठनों से आंतरिक समितियां गठित करने को कहा है…
मनोज सिंह राजपूत , आफताब आलम सहित कई सम्मानित
मुम्बई। झारखंडी एकता संघ द्वारा मंबई में झारखण्ड स्थापना दिवस का आयोजन किया गया। इस अवसर पर विरसा मुंडा सम्मान से विभूतियों को उनके उनके विशेष योगदान के लिए …
मध्यवर्गीय व्यक्तिवाद के खिलाफ लगातार लड़ते रहे वाल्मीकि कबीर, नाभादास, अश्वघोष और बुद्ध की परंपरा से जोड़कर वाल्मीकि जी को देखना चाहिए: प्र्रो. मैनेजर पांडेय, ईश्वर और आस्तिकता के घोर विरोधी थे वाल्मीकि जी: बजरंग दलित साहित्य के लिए साहित्यिक मूल्य के बजाए जीवन मूल्य को कसौटी बनाया वाल्मीकि ने: प…
यहाँ यह याद दिलाना ज़रूरी है कि आज जिस हिन्दी को हम देख रहे हैं - उसे ‘पत्रकारिता’ ने ही विकसित किया था
प्रभु जोशी / अँ…
मीडिया में जाति का दंश : पार्ट 3
अमरेन्द्र यादव। वर्ष 2011 में जब माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय से एम. ए. (जनसंचार) करने आया, दो सेमेस्टर कब निकल गया पता ही नहीं चला. इसके बाद गर्मी की छुटी ह…
हर न्यूज चैनल की एक, दो नहीं बल्कि दर्जनों काली कहानियां हैं... अगर वाकई पत्रकारिता करते हो तो पहले अपनी कहानियां खुद के चैनलों पर चलाने की हिम्मत दिखाओ,…
आदर्श तिवारी / बिहार की मीडिया जिस बदसूरत ढंग बिहार की सूरत दुनिया के सामने पेश करती है,उससे बिहार के बाहर बिहारियों को ऐसे देखा जाता है जैसे वो किसी दूसरे लोक के प्राणी है। आज भी अगर बिहारियों को कमतर आंका जाता है तो इसके पीछे यहाँ कि मीडिया सबसे ज्यादा कसूरवार है। इसका दर्द…
संजीव शर्मा / देश के तमाम समाचार पत्रों में संपादक नाम की सत्ता की ताक़त तो लगभग दशक भर पहले ही छिन गयी थी. अब तो संपादक के नाम का स्थान भी दिन-प्रतिदिन सिकुड़ता जा रहा है. इन दिनों अधिकतर समाचार पत्रों में संपादक का नाम तलाशना किसी प्रतियोगिता में हिस्सा लेने या वर्ग पहेली को हल …
नई दिल्ली। हिंदी की मूर्धन्य पत्रकार अग्निमा दूबे का शुक्रवार को निधन हो गया। वे पिछले एक साल से कैंसर से जूझ रही थीं। उनके परिवार में मातापिता, एक बेटी और एक बेटा है। एक बार आपरेशन होने के बाद कैंसर ने अपना रौद्र रूप दिखाया और उन्हें लेकर ही विदा हुआ। हफ्ते भर से उनका इलाज अपोल…
दिलीप मंडल। संपादकों और पत्रकारों की साख (विश्वसनीयता) नष्ट होने पर आप ऐसे क्यों चिंतित हैं, जैसे कि आपकी अपनी साख नष्ट हो गई है? जिसकी साख जा रही है, वह चिंतित है और उसे चिंतित होना चाहिए.…
पिछले चार संस्करणों के ज़रिए साहित्य, संगीत, सिनेमा, पत्रकारिता, रंगमंच आदि क्षेत्रों में सक्रिय रचनाकर्मियों को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका…
तरुण तेजपाल पर महिला पत्रकार के यौन उत्पीडऩ आरोप का मामला तूल पकड़ने लगा है। उनके 'प्रायश्चित' की बजाय उनपर दंडात्मक कार्रवाई की माँग ज़ोर पकड़ रही है....…
कुछ लोग का धर्मान्तरण होता है, मेरा जातांतरण हो गया...
अमरेन्द्र यादव/ जाति पर बात करना मुझे भी खराब लगता है। जाति व्यक्ति की नही जमात की होनी चाहिए। मै आज नहीं अभी से ही जाति से सम्…
सम्मान समारोह- 2013 सह कवि सम्मेलन सम्पन्न
मुंगेर/ रविवार को बिहार के मुंगेर में कवि मथुरा गुंजन स्मृति सम्मान -2013 सह कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता गीतकार छंदराज ने की तथा मुख्य अतिथि के रूप में डा. शंक…
मनोज कुमार / भारत के स्वाधीन होने के बाद 1952 में पहला आम चुनाव हुआ। इसके बाद संविधान के अनुसार सामान्य परिस्थितियों में प्रत्येक पांच वर्ष बाद निर्धारित समय में चुनाव कराये जाने की व्यवस्था की गई। लोकतंत्र को सुदृढ़ बनाने के लिये जिन संस्थाओं को संविधानवेत्ताओं ने अपनी स्वीकृति …
डॉ. लीना