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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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रामसिंह की ट्रेनिंग

मॉस कम्युनिकेशन में यह नहीं पढाया जाता .... 

दिनेश चौधरी/ पिछले छः-सात दिनों से पड़ोस वाले घर से अजीब-सी आवाजें आती हैं। आवाज जानी-पहचानी सी लगती तो है, पर इतनी तीव्र होती है कि कुछ समझ में नहीं आता। कई बार जी में आता है कि अपना ही सिर दीवार पर ठोंक दिया जाए। इसके ठीक पहले यह भी ख्याल आता है कि पड़ोसी से बात कर ली जाए। भले आदमी हैं। इतनी सी शिकायत को अन्यथा नहीं लेंगे।…

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कुछ तो लोग कहेंगे...लोगों का काम है कहना

डॉ. विनीत उत्पल/ संजय द्विवेदी महज एक नाम है। वह नाम नहीं, जिसके आगे प्रोफेसर या डॉक्टर लगा हो। वह नाम नहीं, जिसके बाद महानिदेशक या कुलपति लगा हो। यह नाम है ऐसे शख्स का, जो समाज के एक तबके से लेकर किसी संस्थान या फिर राष्ट्र की तकदीर बदलनी की क्षमता रखता है। वह राख की एक छोटी-सी चिंगारी को भी विराट स्वरूप में लाने की क्षमता रखता है। वह किसी अनगढ़ पत्थर को छू ले, तो वह खुद को तराश कर सुन्दर बन जाता है।…

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अलविदा फोटो जर्नलिस्ट राजीव

कुमार कृष्णन/ राजीव नाम से चर्चित राजीवकांत  बिहार के चर्चित फोटो जर्नलिस्ट रहे हैं।  उनके जीवन में, उनकी नैतिकता में, उनके संस्कार में पैसे महत्वपूर्ण नहीं रहे। वे जीवन को संपूर्णता के साथ जीते-देखते रहे। राजीवकांत आज इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उनसे जुड़ी अनेक यादें हैं।…

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पत्रकारों की असमय मृत्यु का राज़ !

वरिष्ठ पत्रकार राज बहादुर का निधन

नवेद शिकोह/ राजनीतिक रिपोर्टिंग पर राज करने वाले लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार राज बहादुर की मृत्यु के राज़ भी राज़ रह जाएंगे। ख़ुद्दारी की चादर में लिपटी ना जाने कितने ही पत्रकारों की देह एक राज़ के साथ ख़ाक हो जाती है। राजबहादुर जी की मौत के साथ भी उनकी पेशेवर मजबूरियों का राज़ चंद घंटों बाद ख़ाक हो जाएगा।…

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एक पत्रकार जो रिपोर्ट लिखने और लोगों की जान बचाते शहीद हो गया

सीटू तिवारी/ गणेश शंकर विद्दार्थी को याद करना इस वक्त बहुत जरूरी है.

आज जब पत्रकार के एक्टीविस्ट हो जाने या अपनी रिपोर्ट से इतर जरा सा बोल देने या कोई हस्तक्षेप कर देने पर भवें तन जाती है, तब गणेश शंकर विद्दार्थी को याद करना बहुत जरूरी है.…

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भीड़ में अकेले पुष्पेंद्र

मनोज कुमार/ कोई कहे पीपी सर, कोई कहे बाबा और जाने कितनों के लिए थे पीपी. एक व्यक्ति, अनेक संबोधन और सभी संबोधनों में प्यार और विश्वास. विद्यार्थियों के लिए वे संजीवनी थे तो मीडिया के वरिष्ठ और कनिष्ठ के लिए चलता-फिरता पीआर स्कूल. पहली बार जब उनसे 25 बरस पहले पहली बार पुष्पेन्द्रपाल सिंह उर्फ पीपी सिंह से मुलाकात हुई तो उनकी मेज पर कागज का ढेर था. यह सिलसिला मध्यप्रदेश माध्यम में आने के बाद भी बना रहा. अफसरों की तरह कभी मेज पर ना तो माखनलाल में बैठे और ना ही माध्यम में. हमेशा का…

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जब सचमुच पत्रकारिता ही होती थी

जाना नैयर साहब का

दिनेश चौधरी/ सड़क के एक छोर पर कॉफी हाऊस था और दूसरी ओर नया-नया 'दैनिक भास्कर'। अखबार के दफ्तर में किसी ने बताया कि नैयर साहब कॉफी हाऊस में मिलेंगे। जोश और जुनून में मैंने जबरदस्ती एक अखबार में इस्तीफा दे दिया था और नई नौकरी की तलाश में था। नैयर साहब कुछ मित्रों की सोहबत में गप लड़ा रहे थे। मैंने नमस्ते की और आने का मकसद बताया। कप्पू उर्फ निर्भीक वर्मा का हवाला दिया कि उन्होंने ही आपसे मिलने को कहा है। नैयर साहब ने फैसला लेने में…

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मीडिया साहित्य की और रचनायेँ--

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सम्पादक

डॉ. लीना