प्रो.संजय द्विवेदी की पत्रकारीय पारी के तीन दशक
मणिकांत शुक्ला/ प्रोफेसर संजय द्विवेदी की लेखनी को किसी परिधि में बांधना संभव नहीं है। 1994 में भोपाल के दैनिक भास्कर से अपनी सक्रिय पत्रकारिता …
प्रो.संजय द्विवेदी की पत्रकारीय पारी के तीन दशक
मणिकांत शुक्ला/ प्रोफेसर संजय द्विवेदी की लेखनी को किसी परिधि में बांधना संभव नहीं है। 1994 में भोपाल के दैनिक भास्कर से अपनी सक्रिय पत्रकारिता …
प्रो. संजय द्विवेदी/ ये ऊपर वाले की रहमत ही थी कि त्रिलोक दीप सर का मेरी जिंदगी में आना हुआ। दिल्ली न आता तो शायद इस बहुत खास आदमी से मेरी मुलाकातें न होतीं। देश की नामवर पत्रिकाओं में जिनका नाम पढ़कर पत्रकारिता का ककहरा सीखा, वे उनमें से एक हैं। सोचा न था कि इस ख्यात…
नागपुर/ पत्रकारिता और कला के क्षेत्र में महाराष्ट्र सरकार का प्रतिष्ठित बाबूराव विष्णु पराडकर स्वर्ण पुरस्कार के लिये इस वर्ष श्रीकृष्ण नागपाल को चुना गया है. नागपुर से प्रकाशित और प्रसारित चर्चित साप्ताहिक "राष्ट्र पत्रिका" और "विज्ञापन की दुनिया " के संपादक, साहित्य और पत्रकारिता से ज…
माधो सिंह के शोध का विषय था "भारत के लोकतान्त्रिक विकास में मीडिया की भूमिका : वर्ष 2009 से वर्तमान तक"
बिलासपुर/ डॉ. सी. वी. रमन…
डॉ. पवन सिंह मलिक/ भारतीय पत्रकारिता में मूल्यों को स्थापित करने में अनेक नामों की एक लंबी श्रृखंला हमको दिखाई देती है। लेकिन उन मूल्यों को अपने जीवन का ध्येय बना पूरा जीवन उसके लिए समर्पित कर देना और उसी ध्येय की पूर्ति के लिए जीवन भर कलम चलाना, ऐसा कोई नाम है तो वो है ‘मा…
प्रखर संपादक माणिकचंद्र वाजपेयी उपाख्य ‘मामाजी’ की 101वीं जयंती (7 अक्टूबर) पर विशेष
लोकेन्द्र सिंह / ‘मन समर्पित, तन समर्पित और यह ज…
पटना। सड़क से संसद तक भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की लड़ाई लड़ने वाला संगठन भोजपुरी जनजागरण अभियान के राष्ट्रीय प्रवक्ता संतोष के यादव ने अपने बिहार प्रवास के दौरान बातचीत में कहा कि वर्तमान सरकार की उदासीनता के कारण भोजपुरी आकादमी, बिहार अपनी बदहाली के दौड़ से गुजर …
कोलकाता / इंदौर / जैन समाज के मीडिया और समाज को संगठित कर सरक्षण करने वाला ‘जैन मीडिया सोशल वेलफेयर सोसाइटी’ के संस्थापक एवं भूतपूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष "वरिष्ठ पत्रकार विनायक अशोक लुनिया" कोलकाता ने एक बार फिर जैन मीडिया की कमान सँभालते हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष पदभार ग्रहण कर लि…
तारकेश कुमार ओझा / बचपन में मैने ऐसी कई फिल्में देखी है जिसकी शुरूआत से ही यह पता लगने लगता था कि अब आगे क्या होने वाला है। मसलन दो भाईयों का बिछुड़ना और मिलना, किसी पर पहले अत्याचार तो बाद में बदला , दो जोड़ों का प्रेम और विलेनों की फौज... लेकिन अंत में जोड़ों की जीत।…
डॉ. लीना