तारकेश कुमार ओझा / बचपन में मैने ऐसी कई फिल्में देखी है जिसकी शुरूआत से ही यह पता लगने लगता था कि अब आगे क्या होने वाला है। मसलन दो भाईयों का बिछुड़ना और मिलना, किसी पर पहले अत्याचार तो बाद में बदला , दो जोड़ों का प्रेम और विलेनों की फौज... लेकिन अंत में जोड़ों की जीत। ऐसी फिल्में देख कर निकलने के बाद मैं सोच में पड़ जाता था कि थोड़ी – बहुत समझ तो फिल्म से जुड़े लोगों को भी होगी, फिर उन्होंने ऐसी फिल्में बनाई ही क्यों जिसके बारे में दर्शक पहले ही सब कुछ समझ जाएं। किशोरावस्था में कदम रखने तक देश की राजनीति में भी ऐसे दोहराव नजर आए। ये दोहराव ज्यादातर मोर्चा की शक्ल में सामने आते रहे। 21 वीं सदी के नारे के बीच पहली बार दूसरा – तीसरा मोर्चा की गूंज सुनी। तब तक टेलीविजन की पहुंच घर – घर तक हो चुकी थी। एक चैनल पर देखता हूं धोती – कुर्ता व खादी से लैस माननीय एक दूसरे से मिल रहे हैं, बैठकों का दौर चल रहा है। सोफों पर लदे विभिन्न दलों के नेताओं के सामने डायनिंग टेबल पर काजू व मिठाईयां वगैरह रखी है। कुछेक कैमरों के सामने देखते हुए चाय की चुस्कियां ले रहे हैं। पता चला कि एक खास किस्म की फोर्सेस का मोर्चा तैयार करने की कोशिश हो रही है। हर धड़े के नेता इसका दम भर भी रहा है। लेकिन जनता की तरह मुझे भी आशंका खाए जा रही है कि बात बन नहीं पाएगी। ऐन वक्त पर कोई न कोई कन्नी काट जाएगा। आखिरकार वही हुआ । टेलीविजन के पर्दे पर देख रहा हूं... मान – मनौव्वल की भरपूर कोशिश की गहमागहमी... । चैनलों पर फिर वही मंहगी कारों के दरवाजों से बाहर निकलते नेता दिखाई पड़े। कैमरों से बचने की कोशिश में नेता लोग मुस्कुराते हुए कह रहे हैं ... देखिए ... देखिए ... अभी बातचीत चल रही है ... हमें उम्मीद है मोर्चा तैयार हो जाएगा। दूसरे दृश्य में एक दूसरा नेता आत्मसम्मान और अपमान की दुहाई देते हुए कह रहा है ... हम अपने स्वाभिमान से समझौता कतई नहीं कर सकते। हम अपने बूते चुनाव लड़ेगे। तीसरे दृश्य में एक के बाद एक कई नेताओं के बारे में बताया जा रहा है कि फलां – फलां अपनी पार्टी से नाराज होकर उसी पार्टी का दामन थाम लिया है , जिसने स्वाभिमान की कीमत पर मोर्चा से अलग राह पकड़ी। अब उस नेता का बयान सुनिए... फलां तो पक्का तानाशाह है, वहां अरसे से मेरा दम घुट रहा था... अब मेरी राह अलग है ... अब मैं इस नई पार्टी के साथ अपनी तरह की ताकतों को मजबूत करने की कोशिश करुंगा। इसके जवाब में एक और पके – पकाए नेता का बयान पर्दे पर उभरा जो कह रहे है ... अरे घबराईए नहीं... हमें उम्मीद है ... मिल बैठ कर मसले को सुलझा लेंगे। कुछ सेकेंड बाद पर्दे पर एक और दृश्य उभरा ... जिसमें एक बड़े राजनेता कीमती कार से उतर कर नाराज नेता को मनाने की कोशिश में उनके घर के सामने खड़े दिखाई दिए...। फिर उम्मीद बंधी... लेकिन जल्दी ही टूट भी गई... क्योंकि नाराज नेता के घर से बाहर निकलते और अपनी कार की सीट पर बैठते हुए मनाने चले राजनेता कह रहे हैं ... यह सौजन्य मुलाकात थी... लेकिन इसमें नाराजगी या मोर्चे में वापस लौटने जैसी कोई बात नहीं हुई । कुछ देर बाद नाराज नेता का एक और सिपहसलार फिर आत्मसम्मान की हुंकार भरता नजर आता है। ऐसे दृश्य देख कर मुझे बचपन में देखी गई फिल्मों की याद ताजा हो जाती है। अरे उन फिल्मों में भी तो यही होता था। दो भाई मेले में बिछड़ गए ... फिर परिस्थितियां ऐसी बनी कि दोबारा मिल गए। या कोई जुल्म पर जुल्म सहता जाता है और एक दिन बंदूक उठा कर अत्याचारियों पर अत्याचार करता है । बस इसी कश्मकश में फिल्म खत्म। ज्यादातर फिल्मों में प्रेमी जोड़ों की राह में खलनायकों की टोली तरह – तरह से बाधाएं खड़ी करती है लेकिन अंत में जीत प्रेम की होती है। राजनीति में इन दृश्यों का दोहराव देख – देख कर सोच में पड़ जाता हूं कि कुछ न बदलने वाली चीजों में राजनीति की कुछ विसंगतियां भी तो शामिल है। आखिरकार 80 के दशक से ऐसे दृश्य देखता आ रहा हूं, पता नहीं यह कब तक देखना पड़ेगा।
नवीनतम ---
- ‘मीडिया की नैतिकता, जवाबदेही और स्व-मूल्यांकन’ पर मंथन
- मीडिया कार्यशाला में विकसित भारत @2047 और वेव्स पर चर्चा
- पत्रकारिता के अजातशत्रु हैं अच्युतानंद मिश्र
- मीडिया, विज्ञान और समाज के बीच सेतु का कार्य करता है
- स्पीकर ने मीडिया से सकारात्मक सहयोग की अपील की
- प्रसार भारती का अपना ओटीटी प्लेटफॉर्म “वेव्स” शुरू
- लोकतंत्र में मीडिया की भूमिका अहम है: महेश्वर हजारी
- राष्ट्रीय प्रेस दिवस मना
- मूल्यबोध है हिंदी पत्रकारिता का दार्शनिक आधार : प्रो.संजय द्विवेदी
- सरदार पटेल ने आजाद भारत में आजाद मीडिया की रखी थी नींव
- डा. मुरुगन ने भारतीय भाषाओं की पत्रकारिता में 'मीडिया विमर्श' के योगदान को सराहा
- पत्रकारों की नई पीढ़ी उभरी
- औरंगाबाद में पत्रकारिता का इतिहास
- विस्मयकारी है संजय द्विवेदी की सृजन सक्रियता: प्रो.चौबे
- पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए प्रेरणा का दस्तावेज है – ‘...लोगों का काम है कहना’
- 'मीडिया गुरु सम्मान' से अलंकृत हुए प्रो. द्विवेदी
- दो दिवसीय युवा उत्सव सम्पन्न
- सकारात्मक खबरों को बढ़ावा देने से ही समाज स्वस्थ और सुखी होगा: डॉ. मुरुगन
वर्गवार--
- feature (36)
- General (179)
- twitter (1)
- whatsapp (3)
- अपील (8)
- अभियान (9)
- अख़बारों से (4)
- आयोजन (101)
- इंडिया टुडे (3)
- खबर (1651)
- जानकारी (5)
- टिप्पणी (1)
- टीवी (3)
- नई कलम (1)
- निंदा (4)
- पत्रकारिता : एक नज़र में (2)
- पत्रकारों की हो निम्नतम योग्यता ? (6)
- पत्रिका (44)
- पुस्तक समीक्षा (47)
- पुस्तिका (1)
- फेसबुक से (214)
- बहस (13)
- मई दिवस (2)
- मीडिया पुस्तक समीक्षा (21)
- मुद्दा (501)
- लोग (8)
- विरोधस्वरूप पुरस्कार वापसी (6)
- विविध खबरें (582)
- वेकेंसी (14)
- व्यंग्य (30)
- शिकायत (12)
- शिक्षा (10)
- श्रद्धांजलि (118)
- संगीत (1)
- संस्कृति (1)
- संस्मरण (31)
- सम्मान (17)
- साहित्य (101)
- सिनेमा (16)
- हिन्दी (5)
पुरालेख--
- December 2024 (5)
- November 2024 (5)
- October 2024 (7)
- September 2024 (16)
- August 2024 (8)
- July 2024 (9)
- June 2024 (9)
- May 2024 (13)
- April 2024 (11)
- March 2024 (12)
- February 2024 (11)
- January 2024 (7)
- December 2023 (7)
- November 2023 (5)
- October 2023 (16)
टिप्पणी--
-
Anurag yadavJanuary 11, 2024
-
सुरेश जगन्नाथ पाटीलSeptember 16, 2023
-
Dr kishre kumar singhAugust 20, 2023
-
Manjeet SinghJune 23, 2023
-
AnonymousJune 6, 2023
-
AnonymousApril 5, 2023
-
AnonymousMarch 20, 2023
सम्पादक
डॉ. लीना