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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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टी आर पी की ख़ातिर कुछ भी करेगा

 

निर्मल रानी/ अभी गत 28 मार्च 2025 की ही बात है जबकि ज़ी न्यूज़ टी वी चैनल के स्वामी सुभाष चंद्रा को ज़ी न्यूज़ की ओर से अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत को लेकर रिया चक्रवर्ती को टारगेट करने से सम्बंधित ख़बरों को उनके चैनल ज़ी न्यूज़ द्वारा ग़लत तरीक़े से पेश करने के लिए मुआफ़ी मांगनी पड़ी थी। सुभाष चंद्रा ने कहा था कि - "सुशांत राजपूत आत्महत्या मामले में सीबीआई ने क्लोज़र रिपोर…

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झूठ फैलाकर उन्माद को हवा देता 'गोदी मीडिया'

तनवीर जाफ़री/ भारत और पाकिस्तान में बढ़ते तनाव के बीच दोनों देशों में 'तत्काल और पूर्ण संघर्षविराम' अर्थात फ़ायरिंग और सैन्य कार्रवाई रोकने पर सहमति बन गई है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से 'भारत और पाकिस्तान के बीच तत्काल और पूर्ण संघर्षविराम पर सहमति बनने' की जानकारी दी गई थी। डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि "भारत और पाकिस्तान पूर्ण और तत्काल सीज़फ़ायर पर सहमति जताई है। …

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एक चैनल के भीतर ही दो दुनिया!

एक इनके स्टार एंकर्स और एक ये जिनके पास रिपोर्टिंग के लिए ढंग से बुनियादी चीज़ें भी नहीं हैं

विनीत कुमार/ अंजनाऽऽ..अंजनाऽऽऽऽ.. यहां धमाके की आवाज़ सुनाई दे रही है..…

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शब्द हिंसा का बेलगाम समय!

वस्तुनिष्ठता से किनारा करती मीडिया बहुत खौफनाक हो जाती है

प्रो. संजय द्विवेदी/ यह 'शब्द हिंसा' का समय है। बहुत आक्रमक, बहुत बेलगाम। ऐसा लगता है कि टीवी न्यूज मीडिया ने यह मान लिया है कि शब्द हिंसा में ही उसकी मुक्ति है। चीखते-चिल्लाते और दलों के प्रवक्ताओं को मुर्गो की…

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मीठा मीठा मीडिया, कुनैन है पत्रकारिता

मनोज कुमार/ मैं किस्म किस्म के गीत बेचता हूं, बोलो जी कौन सा खरीदोगे, गीत की यह पंक्तियां जब पढ़ते थे तो हंसा करते थे। तब मालूम ना था कि यह गीत की यह दो पंक्तियां भविष्य की मीडिया की कहानी का सच बन कर सामने खड़ा कर दिया जाएगा। आज यही सच है कि मीडिया का कारोबार बढ़ रहा है और सरोकार की पत्रकारिता हाशिए पर है। या यूं कहें कि अब साम्राज्य मीडिया का ही रहेगा तो कुछ गलत नहीं है। नई पीढ…

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आर्टिफिशल इंटेलिजेंस और मीडिया के उलझे रिश्ते

खतरे में पत्रकारों की नौकरियां!

प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी/ “माननीय प्रधानमंत्री जी हम आभारी हैं कि आप हमारे बीच आए। मेरी ऑन दी जॉब लर्निंग अब शुरू हो गई है और 2024 तक मैं देश की सबसे अच्छी जर्नलिस्ट होने की कोशिश करूंगी। उम्मीद करती हूं कि तब आपसे एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू करने का मौका मु झे मिलेगा। आपका बहुत-…

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भारतीय पत्रकारिता: सवाल निष्पक्षता का

तनवीर जाफ़री/ पिछले दिनों 30 मई को जब हमारे देश में पत्रकारिता दिवस की बधाइयों का सिलसिला चल रहा था उस के चंद रोज़ पहले पंजाब से यह ख़बर आई कि ज़ी मीडिया ग्रुप के सभी चैनल्स जिनमें हिंदी, अंग्रेज़ी के साथ पंजाबी जैसी क्षेत्रीय भाषा के चैनल्स भी शामिल हैं, को सरकार द्वारा ब्लैक आउट कर दिया गया है।  इस ख़बर के फ़ौरन बाद ही पंजाब की भगवंत मान सरकार ने कोई औपचारिक नोटिफ़िकेशन जारी किये बिन…

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मीडिया: दरकते भरोसे को बचाएं कैसे

हिंदी पत्रकारिता दिवस (30 मई) पर विशेष

प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी/ हिंदी पत्रकारिता दिवस मनाते समय हम सवालों से घिरे हैं और जवाब नदारद हैं। पं.जुगुलकिशोर शुकुल ने जब 30 मई ,1826 को कोलकाता से उदंत मार्तण्ड की शुरुआत की तो अपने प्रथम संपादकीय में अपनी पत्रकारिता का उद्देश्य लिखते हुए शीर्षक दिया - 'हिंदुस्…

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आंदोलनरत अन्नदाता: उदासीन सरकार, ख़ामोश मीडिया

निर्मल रानी/ इस समय पूरा देश, शासन,प्रशासन तथा मीडिया लोकसभा चुनावों के वातावरण में डूबा हुआ है। सभी राजनैतिक दलों के स्टार प्रचारकों के निरर्थक आरोपों व प्रत्यारोपों को ज़बरदस्ती मुद्दा बनाकर जनता पर थोपा जा रहा है। आम लोगों की भावनाओं को झकझोर कर सत्ता में बने रहने के कुटिल प्रयास किये जा रहे हैं। परन्तु इसी चिलचिलाती धूप और तेज़ गर्मी में देश का अन्नदाता आंदोलनरत है। गत 17 अप्…

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चुनावी बांड पटाक्षेप और 'ग़ुलाम मीडिया' में पसरा सन्नाटा

तनवीर जाफ़री/ लोकसभा चुनावों से ठीक पहले सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर आख़िरकार भारतीय स्टेट बैंक ने चुनावी बॉन्ड ख़रीद का विस्तृत डेटा अदालत को पेश कर ही दिया। साथ ही यह भी सार्वजनिक कर दिया कि इन इलेक्टोरल बांड के माध्यम से किस राजनैतिक दल को कितने पैसे  प्राप्त हुये। जैसा कि पहले भी होता आया है कि सत्तारूढ़ दल को ही प्रायः सर्वाधिक चंदा मिला करता है । इस बार भी सत्तारूढ़ दल यानी भ…

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सम्पादक

डॉ. लीना