राजेश बादल/ संस्था के नाम पर भले ही एनडीटीवी मौजूद रहे, लेकिन पत्रकारिता के क्षेत्र में अनेक सुनहरे अध्याय लिखने वाले इस संस्थान का विलोप हो रहा है । हम प्रणॉय रॉय और राधिका रॉय की पीड़ा समझ सकते हैं । छोटे से प्रोडक्शन हाउस को जन्म देकर उसे चैनलों की भीड़ में नक्षत्र की तरह चमकाने वाले इस दंपत्ति का नाम यकीनन परदे पर पत्रकारिता की दुनिया में हरदम याद किया जाएगा ।उनके कोई बेटा नहीं था, लेकिन एनडीटीवी पर उन्होंने जिस तरह सर्वस्व न्यौछावर किया ,वह एक मिसाल है । अलबत्ता जिस ढंग से इस संस्था की आत्मा को बाहर निकालकर उसे प्रताड़ित किया गया ,वह भी एक कलंकित कथा है । चाहे कितने ही शिखर संपादक आ जाएं, कितने ही बड़े प्रबंधक ,पैसे वाले धन्ना सेठ आ जाएं, उसे हीरे मोती पहना दें , लेकिन यश के शिखर पर वे उसे कभी नहीं पहुंचा सकेंगे ।ठीक वैसे ही ,जैसे एस पी सिंह के बाद कोई संपादक रविवार को वह ऊंचाई नहीं दे सका और आज तक चैनल की मांग में तो सिंदूर ही एस पी का लगाया हुआ है ।बाद के संपादक एस पी की अलौकिक आभा के सामने कुछ भी नहीं हैं ।कहने में कोई हिचक नहीं कि एक व्यक्ति किसी भी संस्थान को बुलंदियों पर ले जाता है और एक दूसरा व्यक्ति उसे पतन के गर्त में धकेल देता है । टीवी पत्रकारिता के पिछले पच्चीस बरस में हमने ऐसा देखा है ।इसलिए एन डी टीवी का सूर्यास्त देखना बेहद तकलीफदेह अहसास है ।
ज़ेहन में यादों की फ़िल्म चल रही है । स्वस्थ्य पत्रकारिता के अनगिनत कीर्तिमान इस समूह ने रचे।अपने पत्रकारों को आसमानी सुविधाएं और आज़ादी दी ।क्या कोई दूसरी कंपनी आपको याद आती है ,जो लंबे समय तक अपने साथियों के काम करने के बाद कहे कि आपका शरीर अब विश्राम मांगता है । कुछ दिन संस्थान के ख़र्च पर सपरिवार घूमने जाइए ।आज किसी चैनल को छोड़ने के बाद उसके संपादक या रिपोर्टर को चैनल पूछता तक नहीं है ।लेकिन इस संस्था ने सुपरस्टार एस पी सिंह के अचानक निधन पर बेजोड़ श्रद्धांजलि दी थी और अपना बुलेटिन उनकी एंकरिंग की रिकॉर्डिंग से खोला था । प्रतिद्वंद्वी समूह के शिखर संपादक को ऐसी श्रद्धांजलि एनडीटीवी ही दे सकता था ।भोपाल गैस त्रासदी के नायक रहे मेरे दोस्त राजकुमार केसवानी जब साल भर पहले इस जहां से कूच कर गए तो इस संस्थान ने ऐसी श्रद्धांजलि दी कि बरबस आंसू निकल पड़े । तब केसवानी जी को यह संस्था छोड़े बरसों बीत चुके थे । ऐसा ही अप्पन के मामले में हुआ । अनगिनत उदाहरण हैं, जब उनके साथियों ने मुसीबत का दौर देखा तो प्रणॉय रॉय संकट मोचक के रूप में सामने आए । अनेक प्रतिभाओं को उन्होंने गढ़ा और सिफ़र से शिखर तक पहुंचाया ।
पत्रकारिता में कभी दूरदर्शन के परदे पर विनोद दुआ के साथ हर चुनाव में विश्लेषण करने वाले प्रणॉय रॉय का साप्ताहिक वर्ल्ड दिस वीक अदभुत था । जब उन्होंने एक परदेसी समूह के लिए चौबीस घंटे का समाचार चैनल प्रारंभ किया तो उसके कंटेंट पर कभी समझौता नहीं किया । सरकारें आती रहीं, जाती रहीं, पर एनडीटीवी ने उसूलों को नहीं छोड़ा । हर हुकूमत अपनी नीतियों की समीक्षा इस चैनल के विश्लेषण को ध्यान में रखते हुए किया करती थी । एक धड़कते हुए सेहतमंद लोकतंत्र का तकाज़ा यही है कि उसमें असहमतियों के सुरों को संरक्षण मिले और पत्रकारिता मुखर आलोचक के रूप में प्रस्तुत रहे । इस नज़रिए से समूह ने हमेशा पेशेवर धर्म और कर्तव्य का पालन किया ।
मेरी छियालीस साल की पत्रकारिता में एक दौर ऐसा भी आया था ,जब मैं आज तक को जन्म देने वाली एस पी सिंह की टीम का हिस्सा बना था और इस संस्था से भावनात्मक लगाव सिर्फ़ एस पी के कारण आज भी है । उनके नहीं रहने पर भी यह भाव बना रहा ।दस साल बाद जब मैं आज तक में सेंट्रल इंडिया के संपादक पद पर काम कर रहा था तो मेरे पास एन डी टी वी समूह का खुला प्रस्ताव आया था कि अपनी पसंद का पद और वेतन चुन लूं और उनके साथ जुड़ जाऊं । तब एस पी सिंह की निशानी से मैं बेहद गहराई से जुड़ा हुआ था ।इसलिए अफ़सोस के साथ मैने उस प्रस्ताव को विनम्रता पूर्वक अस्वीकार कर दिया था । पर उसका मलाल हमेशा बना रहा । एक अच्छे संस्थान की यही निशानी होती है ।
प्रणॉय और राधिका की जोड़ी ने ज़िंदगी में बहुत उतार चढ़ाव देखे हैं ।यह दौर भी वे देखेंगे । मैं यही कह सकता हूं कि चाहेंगे तुमको उम्र भर, तुमको न भूल पाएंगे । ऐसे शानदार और नायाब संस्थान को सलाम करिए मिस्टर मीडिया ।
(राजेश बादल के फेसबुक पेज से साभार)