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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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Blog posts : "पत्रिका पुस्तक समीक्षा मीडिया पुस्तक समीक्षा व्यंग्य संस्मरण साहित्य सिनेमा"

आत्मीयता से ओत-प्रोत स्मृतियां

पुस्तक समीक्षा/ प्रो. कृपाशंकर चौबे/ प्रो. संजय द्विवेदी की उदार लोकतांत्रिक चेतना का प्रमाण उनकी सद्यः प्रकाशित पुस्तक ‘न हन्यते’ है। ‘न हन्यते' पुस्तक में दिवंगत हुए परिचितों, महापुरुषों के प्रति आत्मीयता से ओत-प्रोत संस्मरण और स्मृति लेख …

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एक राष्ट्रवादी पत्रकार का यूं चले जाना!

सतीश पेडणेकरः स्मृति शेष

निरंजन परिहार/ आईएसआईएस की कुत्सित कामवृत्ति, दुर्दांत दानवी दीवानगी और बर्बर बंदिशों की बखिया उधेड़ता इस्लामिक स्टेट की असलियत से अंतर्मन को उद्वेलित कर देने वाला  लेखा-जोखा दुनिया के सामने रखनेवाले पत्रका…

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अपने तेवर पर कायम जन मीडिया

संचार व पत्रकारिता के सही मायनों से रूबरू कराता, पूरी की दस साल की यात्रा

डॉ. लीना/ संचार और पत्रकारिता की शोध पत्रिका जन मीडिया ने अपने तेवर और सोच को बरकरार रखते हुए …

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सीरियस खबरें !

अजीत शाही/ पंद्रह साल पहले की बात है. एक न्यूज़ चैनल के मालिक ने मुझे काम पर रखा ये कह कर कि हम न्यूज़ कम कर पा रहे हैं ऊलजलूल ख़बरें ज़्यादा हैं, तुम ज़रा मदद कर दो सीरियस खबरों में. तीन चार हफ़्ते बाद एक स्ट्रिंगर ने एक रिपोर्ट भेजी: कुत्तों का श्मशान. खबर थी कि किसी शहर में कुत्तो…

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समकालीन भारत को समझने की कुंजी है ‘भारतबोध का नया समय’

आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी की नई पुस्तक

प्रो. कृपाशंकर चौबे/  जनसंचार के गंभीर अध्येता प्रो. संजय द्विवेदी की नई पुस्तक ‘भारतबोध का नया समय’ का पहला ही निबंध इ…

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राजनीति का संदर्भ ग्रंथ है “लोकतंत्र का स्पंदन”

पत्रकार अभिमनोज की अभिनव पहल है उनकी यह पुस्तक

प्रदीप द्विवेदी / आधुनिक पत्रकारिता में समाचार विश्लेषक की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण हो गई है. प्रमुख राष्ट्रीय समाचार विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार- …

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रेडियो प्रसारण का निजीकरण

जन मीडिया का अक्टूबर, 2021 अंक

डॉ लीना/ संचार, माध्यम और पत्रकारिता की पूर्व समीक्षित मासिक पत्रिका जन मीडिया ने अपने खास अंदाज और तेवर के साथ अक्टूबर 2021 के अंक में कई महत्वपूर्ण विषयों को खंगालने का प्रयास किया है।…

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रचना, सृजन और संघर्ष से बनी थी पटैरया की शख्सियत

प्रो. संजय द्विवेदी/ वे ही थे जो खिलखिलाकर मुक्त हंसी हंस सकते थे, खुद पर भी, दूसरों पर भी। भोपाल में उनका होना एक भरोसे और आश्वासन का होना था। ठेठ बुंदेलखंडी अंदाज उनसे कभी बिसराया नहीं गया। वे अपनी हनक, आवाज की ठसक, भरपूर दोस्ताने अंदाज और प्रेम को बांटकर राजपुत्रो…

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बेमिसाल शिक्षक और जनसरोकारों के लिए जूझने वाली योद्धा थीं वे

दविंदर कौर उप्पल होने के मायने

प्रो. संजय द्विवेदी / माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में जनसंचार विभाग की अध्यक्ष रहीं प्रो. दविंदर कौर उप्पल का जाना एक ऐसा शून्य रच रहा है, जिस…

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प्रो.कमल दीक्षितः उन्होंने हमें सिखाया जिंदगी का पाठ

प्रो. संजय द्विवेदी (महानिदेशक, भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली)/ मेरे गुरू, मेरे अध्यापक प्रो. कमल दीक्षित के बिना मेरी और मेरे जैसे तमाम विद्यार्थियों और सहकर्मियों की दुनिया कितनी सूनी हो ज…

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विमल थोराट और दो दलित स्त्रियों का चिंतन

कैलाश दहिया/ 'दलित वैचारिकी और हाशिए का समाज' विषय पर प्रगतिशील लेखक संघ, उत्तर प्रदेश ने 11 जनवरी, 2021 को फेसबुक के माध्यम से एक परिचर्चा का आयोजन किया था। इस का संचालन आधे-अधूरे दलित आर.डी. आनंद ने किया। इस बातचीत में जो लोग शामिल हुए उन का दलित वैचारिकी से दूर-दूर तक किसी तरह…

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धर्मांतरण का अर्थ है दलितों में विभाजन

कैलाश दहिया/ दलित इतिहास में धर्मांतरण एक बड़ी घटना के रूप में दर्ज है। दिनांक 14 अक्टूबर, 1956 के दिन बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर अपने हजारों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म में धर्मांतरित हो गए थे, जिन में अधिकांश महार जाति के लोग ही थे। तभी से नवबौद्धों में यह दिन विशेष महत्व क…

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हक के प्रेमी का यूं अचानक चले जाना

हकदार के संस्थापक व जुझारू पत्रकार पन्नालाल प्रेमी का 22 अक्तूबर को निधन

ताराराम गौतम/ देश भर में दलित पत्रकारिता में अपनी विशिष्ट पहचान रखने वाले साप्ताहिक अख…

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खबरों का घोटाला !

कृष्णेन्द्र राय//

खबर है दिलचस्प ।

खबरों का घोटाला ।।

नजर लगी है तेज ।

                               लगाओ टीका काला ।।

खबर है पधारी …

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नोचकारिता के सिपाही

सरस्वती रमेश //

नोचकारिता के सिपाही हैं ये

बिकाऊ -चलताऊ खबरों पर

गिद्ध दृष्टि रखने और

                        चील सा झपट्टा मारने…

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खबरों की भीड़ में ....!!

तारकेश कुमार ओझा //

खबरों की  भीड़ में , 

राजनेताओं का रोग है .

अभिनेताओं के टवीट्स हैं .

अभिनेत्रियों का फरेब है .

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जनता का अख़बार कौन निकालेगा

मनोज कुमार झा //

विज्ञापन ख़बरों की तरह

और ख़बरें विज्ञापनों की तरह

अख़बार में देश-दुनिया का हाल

                               कुछ इसी तरह…

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क्या है हमारी खबरों में

रश्मि रंजन//

 

सोचती हूँ.......

क्या है हमारे विचारों में

क्या है हमारे शब्दों में

क्या है हमारी खबरों में

धर्म/ जाति/ पैसा....…

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कोविड से किताबों को खतरा

प्रमोद रंजन / कोविड : 19 ने  किताबों के बाजार को गहरा धक्का पहुंचाया है। इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि  वैश्विक स्तर पर 2019 में किताबों का बाजार $ 92.8 बिलियन डालर का था | 2020 में इसके घटकर $ 75.9 बिलियन  डालर रह जाने की उम्मीद है।…

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सच जानने के हमारे अधिकार को किस एक्ट के तहत बाधित किया गया है?

.... ये वही मीडिया संस्थान थे, जिन्होंने डब्लूएचओ द्वारा दी गई मानवाधिकारों का ख्याल रखने की सलाह को प्रकाशित करने से परहेज किया था...…

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सम्पादक

डॉ. लीना