बिहार विधान सभा की प्रेस सलाहकार समिति के गठन को लेकर खड़ा किया गया सवाल
वीरेंद्र कुमार यादव/ पटना। बिहार विधान सभा की प्रेस सलाहकार समिति के गठन को लेकर खड़ा किया गया सवाल किसी अकेले पत्रकार की लड़ाई नहीं है। यह सवाल संपादक नामक संस्था की गरिमा से जुड़ा है, उनके मान-सम्मान से जुड़ा सवाल है। प्रेस सलाहकार समिति के गठन के पूर्व विधान सभा सचिवालय ने किसी संपादक से परामर्श नही किया और अपनी मनमर्जी से प्रेस प्रतिनिधियों को मनोनीत कर दिया है। यदि किसी संपादक को स्पीकर की ओर से चिट्टी भेजी गयी हो तो विस सचिवालय उस पत्र को सार्वजनिक करे।
दिसंबर, 15 में समिति के पुनर्गठन के बाद उठे विवाद पर स्पीकर विजय कुमार चौधरी ने कहा था कि बजट सत्र के पूर्व प्रेस सलाहकार समिति को पुनर्गठित किया जाएगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। आखिर सवाल यह है कि प्रेस सलाहकार समिति किसकी प्रतिनिधि संस्था है- मीडिया कर्मियों की या स्पीकर की। दरअसल प्रेस सलाहकार समिति में कुछ मठाधीश लोग बैठे हैं, जो प्रेस सलाहकार समिति को अपनी ‘जागीर’ समझते हैं। प्रेस सलाहकार समिति की बैठक में कोई निर्णय नहीं लिया जाता है। यही कारण है कि पटना से निकलने वाले नये अखबारों को जगह नहीं मिलती है, नये पत्रकारों को पास जारी नहीं किया जाता है। इस संबंध में समिति के मठाधीश कहते हैं कि स्पीकर को निर्णय करना है और विस सचिवालय कहता है कि समिति को तय करना है।
पिछले 23 फरवरी को प्रेस सलाहकार समिति की बैठक में सिर्फ एक नये पत्रकार को प्रवेश पत्र निर्गत करने का प्रस्ताव मंजूर हुआ। बाकी उनका ही पास निर्गत करने का फैसला हुआ, जिनका 2015 के बजट सत्र के पूर्व पास निर्गत हुआ था। इस एक वर्ष में सरकार बदल गयी, सचिव बदल गए, स्पीकर बदल गये, प्रेस रूम के सौफे का गद्दा बदल गया। नहीं बदले तो सिर्फ प्रेस सलाहकार समिति के सदस्य और रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकार। जबकि कई की दुकान (संस्थान) बदल गयी, जगह बदल गयी और कई सेवानिृत्तो हो गए। यदि संपादकों की गरिमा की धज्जियां विधान सभा सचिवालय उड़ाता रहा और संपादक देखते रहे तो फिर हमें कुछ नहीं कहना है।
हमने वर्तमान विधान सभा की प्रेस सलाहकार समिति को भंग करने और नयी समिति पुनर्गठित करने का आवेदन स्पीकर को लिखित रूप से और उनके मेल पर भेजा है। हमारी मुख्य तीन मांग हैं।
1. पुनर्गठित प्रेस सलाहकार समिति में विधायकों के सामाजिक प्रतिनिधित्व के अनुपात में पत्रकारों की सामाजिक हिस्सेदारी हो।
2. एक अखबार के लिए तीन से अधिक पास नहीं निर्गत किया जाए।
3. प्रेस सलाहकार समिति के सदस्य को भी अखबार का प्रतिनिधि माना जाए, उनकी गिनती अखबार के एक प्रतिनिधि के रूप में हो।
आप हमसे सहमत हो सकते हैं, असहमत हो सकते हैं, लेकिन चुप्पी किसी समस्या का समाधान नहीं है। आपको अपने सम्मान के लिए, संपादकों के सम्मान के लिए, पत्रकारों के सम्मान के लिए आगे आना चाहिए, मौन तोड़ना चाहिए।