Menu

 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

Print Friendly and PDF

वेब पत्रकारिता ने महिलाओं के लिए खोले हैं संभावनाओं के दरवाजे

डॉ. लीना/ हेमंत कुमारी देवी वर्ष 1888 में इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाली महिलाओं की पत्रिका- ‘सुगृहिणी’ की संपादक बनी थीं।  जब देश अंग्रेजी हुकुमत के फंदे में था और महिलाओं में निरक्षरता बहुत ज्यादा थी, यहां तक कि अच्छे घरों की महिलाओं में भी साक्षरता की कमी थी, ऐसे में किसी महिला का आगे बढ़कर ना केवल पत्रकारिता में अपनी मजबूत दखल बनाना बल्कि संपादक की जिम्मेदारी तक पहुंच जाना मायने रखता है। हेमंत कुमारी देवी को देश की पहली महिला पत्रकार माना जाता है।

वहीं, 9 दिसंबर 1913 को जन्मी होमी व्यारावाला को भारत की पहली महिला फोटो पत्रकार माना जाता है। होमी अपने लोकप्रिय उपनाम “डालडा 13” से मशहूर रही हैं। 1930 में बतौर छायाकार अपनी करियर शुरू करने के बाद होमी 1970 में स्वेच्छा से सेवानिवृत्त हो गईं। होमी को उनकी विशिष्ट उपलब्धियों को देखते हुए 2011 में भारत के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। 

अगर हम स्वतंत्र भारत की बात करें तो विद्या मुंशी को पहली महिला पत्रकार माना जाता है। मुंबई में जन्मी विद्या ने अनेक समाचार पत्रों-पत्रिकाओं में सेवाएं दीं। 1952-62 के बीच वे रूसी करंजिया के चर्चित अखबार ब्लिटज की कलकत्ता संवाददाता रहीं। उन्होंने उस वक्त सरकार की नीतियों पर प्रभावी लेखन किया। खोजी पत्रकारिता के माध्यम से उन्होंने स्मगलिंग, अवैध उत्खनन के कई स्कूप उजागर किए।

कुछ ऐसे ही, भारतीय महिला पत्रकारों में विमला पाटिल संभवतः पहली महिला थीं जिन्होंने द टेलीग्राफ से जुड़कर लेखिका, स्तंभकार और पत्रकार के तौर पर अपना कॅरियर शुरू किया। 1959 से 1993 तक वे लगातार संपादक और महत्वपूर्ण पदों पर रहीं। उन्होंने टाइम्स ग्रुप की पत्रिका फेमिना को भी एक ब्राण्ड के तौर पर स्थापित कराया।

देश में हेमंत कुमारी देवी के 1888 में संपादक बनने के 9 दशक बाद बिहार में महिला पत्रकार दिखाई देती हैं। 1980 के आसपास ही श्रुति शुक्ला पटना से छपने वाले सर्चलाइट में थीं। बाकी अखबारों में कोई महिला नही थी। 1986 में ही टाइम्स ऑफ़ इंडिया और नवभारत टाइम्स शुरू हुआ। टाइम्स ऑफ़ इंडिया में शर्मिला चंद्रा और गायत्री शर्मा के साथ आईं, एक- दो और महिला पत्रकार थीं। नवभारतटाइम्स में मणिमाला रिपोर्टर थीं। किरण शाहीन और इंदु भारती डेस्क पर। इंदु भारती की नौकरी कम समय ही रही लेकिन वे फ्रीलांसिंग करती रहीं।

1986 में हिंदुस्तान टाइम्स और हिंदुस्तान शुरू हुआ। हिंदुस्तान में एक भी महिला पत्रकार नहीं थी। हिंदुस्तान टाइम्स  में श्रुति शुक्ला रिपोर्टिंग में और अनुजा सिप्रे डेस्क पर थी। निवेदिता इसी दौरान इलेक्ट्रोनिक मीडिया से जुड़ी थीं। 1992 के आसपास हिंदुस्तान में पहली बार सरिता डेस्क पर आई। इसके बाद ज्यादा संख्या में लड़कियां 2000 में गिरीश जी के कार्यकाल में जुड़ी। दैनिक अखबार छोड़ दें तो 75-80 में गोलघर के पास से युवाओं की एक मासिक पत्रिका निकलती थी कृतसंकल्प। इसमें सुमन सरीन और मंजू दुबे थीं। बाद में सुमन सरीन धर्मवीर भारती के कार्यकाल में ही धर्मयुग में भी रहीं। श्रुति शुक्ला ही बिहार की पहली महिला पत्रकार रहीं होंगी।

भारत में 1780 में पहला अख़बार छपने के बाद भी दो सदी तक का ये वो दौर था जब मीडिया क्षेत्र में महिलाओं की गिनती उंगलियो पर थी। अब मीडिया-जगत का ऐसा कोई कोना नहीं जहां महिलाएं आत्मविश्वास और दक्षता से मोर्चा नहीं संभाल रही हो। पिछले कुछ सालों में प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और इंटरनेट पत्रकारिता की दुनिया में महिला स्वर प्रखरता से उभरें हैं। प्रिंट मीडिया में रिपोर्टिंग व डेस्क दोनों ही जगह हम उनको पाते हैं।  इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी महिलाओं को हम स्क्रीन और उसके पीछे भी देखते हैं। यहाँ हम बड़े बड़े महिला नामों को बखूबी पहचानते हैं।

बावजूद इसके कि पिछले 25 सालों में महिला पत्रकारों की संख्या बढ़ी है, रिपोर्टिंग में अभी भी दो-तीन फीसदी महिला पत्रकार ही हैं। विभिन्न कारणों से पत्रकारिता का क्षेत्र अभी भी महिलाओं के लिए दुरूह ही बना हुआ है। लेकिन इन सबसे इतर वेब पत्रकारिता ने आज  महिलाओं को एक वृहद् मंच उपलब्ध कराया है, उन्हें अवसर प्रदान किया है। यह पत्रकारिता जगत में एक महत्वपूर्ण क्रांतिकारी कदम माना जा सकता है।  

पिछले कुछ वर्षों में वेब पत्रकारिता ने महिलाओं को व्यापक मंच उपलब्ध कराया है। वे बड़े मीडिया हाउस के इ- संस्करण में तो हैं ही, वे वेब पोर्टल चला रही हैं, यूट्यूब चैनल चला रही हैं, उनमें काम भी कर रही हैं। यहां पर लड़कियां एंकरिंग कर रही हैं, रिपोर्टिंग कर रही हैं, वॉइस ओवर कर रही हैं, एडिटिंग- विडिओ एडिटिंग कर रही हैं। सिर्फ बड़े नाम नहीं बल्कि छोटे-छोटे मीडिया हाउस में, यूट्यूब चैनल में लड़कियां आगे आ रही है। कम संसाधन में भी वेब पत्रकारिता से वे स्वयम जुड़ सकती हैं, अपना पोर्टल चला सकती हैं। हालाँकि यहाँ भी चौतरफा चुनौतियां हैं। उपार्जन इनमें से एक है। कुछेक पोर्टल को छोड़ दें तो प्रिंट या इलेक्ट्रोनिक मीडिया की अपेक्षा यहाँ वेतन काफी कम ही होता है, श्रम अधिक करना होता है। 

फिर भी वे और अपनी अलग पहचान बनाने में कामयाब हो रही हैं। पत्रकारिता जगत की बड़ी हस्तियाँ रही महिलाएं वेब पत्रकारिता से जुड़ रही हैं, तो वहीं पत्रकारिता की पढाई करके निकली नई पौध भी यहाँ जमने की कोशिश। मीना कोटवाल आज एक जानी-मानी नाम है जिन्होंने अपने यूट्यूब चैनल से देश- विदेश में भी नाम कमाया है।

हम कह सकते हैं कि वेब मीडिया ने लड़कियों के लिए संभावनाओं के दरवाजे खोल दिए और इन्हीं की वजह से आज पत्रकारिता के क्षेत्र में महिलाओं को हम भारी संख्या में देख सकते हैं।

---

डॉ. लीना, संपादक,  मीडियामोरचा डॉट कॉम

Go Back

Comment

नवीनतम ---

View older posts »

पत्रिकाएँ--

175;250;e3113b18b05a1fcb91e81e1ded090b93f24b6abe175;250;cb150097774dfc51c84ab58ee179d7f15df4c524175;250;a6c926dbf8b18aa0e044d0470600e721879f830e175;250;13a1eb9e9492d0c85ecaa22a533a017b03a811f7175;250;2d0bd5e702ba5fbd6cf93c3bb31af4496b739c98175;250;5524ae0861b21601695565e291fc9a46a5aa01a6175;250;3f5d4c2c26b49398cdc34f19140db988cef92c8b175;250;53d28ccf11a5f2258dec2770c24682261b39a58a175;250;d01a50798db92480eb660ab52fc97aeff55267d1175;250;e3ef6eb4ddc24e5736d235ecbd68e454b88d5835175;250;cff38901a92ab320d4e4d127646582daa6fece06175;250;25130fee77cc6a7d68ab2492a99ed430fdff47b0175;250;7e84be03d3977911d181e8b790a80e12e21ad58a175;250;c1ebe705c563d9355a96600af90f2e1cfdf6376b175;250;911552ca3470227404da93505e63ae3c95dd56dc175;250;752583747c426bd51be54809f98c69c3528f1038175;250;ed9c8dbad8ad7c9fe8d008636b633855ff50ea2c175;250;969799be449e2055f65c603896fb29f738656784175;250;1447481c47e48a70f350800c31fe70afa2064f36175;250;8f97282f7496d06983b1c3d7797207a8ccdd8b32175;250;3c7d93bd3e7e8cda784687a58432fadb638ea913175;250;0e451815591ddc160d4393274b2230309d15a30d175;250;ff955d24bb4dbc41f6dd219dff216082120fe5f0175;250;028e71a59fee3b0ded62867ae56ab899c41bd974

पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना