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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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फिल्म 'पी के’ के विरोध के निहितार्थ

निर्मल रानी/ भारत सरकार द्वारा नियुक्त भारतीय फिल्म सेंसर बोर्ड द्वारा फिल्म को प्रदर्शित करने की मंज़ूरी मिलने के बावजूद कुछ धर्मगुरुओं व हिंदूवादी संगठनों द्वारा राजकुमार हिरानी द्वारा निर्देशित तथा आमिर खान द्वारा निर्मित फिल्म पीके के प्रदर्शन का विरोध किया जा रहा है। कुछ जि़म्मेदार धर्मगुरू तो देश के लोगों से इस फिल्म को न देखने की अपील कर चुके हैं।

फिल्म का विरोध करने वालों द्वारा यह कहा जा रहा है कि यह फिल्म हिंदू धर्म व हिंदू देवी-देवताओं का अपमान करने वाली फिल्म है। और इन्हीं विरोध प्रदर्शनों के बीच यह फिल्म अपने प्रदर्शन के पहले ही सप्ताह में 181 करोड़ रुपये का व्यापार भी कर चुकी है। यानी फिल्म का विरोध करने वालों की अपील के बावजूद यह फिल्म लोगों को अपनी ओर आकर्षित किए बिना नहीं रह पाई है। आखिर ऐसा क्यों है? यदि वास्तव में यह फिल्म  हिंदूधर्म के देवी-देवताओं का अपमान करने वाली फिल्म होती तो यह देश की बहुसं य आबादी को अपनी ओर आकर्षित ही क्यों करती है? सवाल यह है कि  फिल्म पीके हिंदू धर्म अथवा इनके देवी-देवताओं को अपमानित करने के उद्देश्य से बनाई गई है या फिर पाखंडों, पाखंडियों तथा अंधविश्वासों को उजागर करने के मकसद से निर्मित की गई है?

सर्वप्रथम तो पी के फिल्म  का विरोध करने वाले दक्षिणपंथियों से एक सवाल यह कि इसके पूर्व प्रदर्शित हुई फिल्म ओएमजी(ओ माई गॉड)में जिस नायक परेश रावल ने पी के फिल्म से भी अधिक मुखरित होकर हिंदू धर्म में पाखंडी बाबाओं के पोल खोलने का साहसपूर्ण कार्य अपने अभिनय के द्वारा किया था और भगवान पर मु$कद्दमा चलाए जाने की मांग करने जैसा प्रदर्शन किया था आज वही परेश रावल भारतीय जनता पार्टी के सांसद के रूप में इन्हीं दक्षिणपंथियों द्वारा अपने सिर-माथे पर बिठाए जा रहे हैं। उस समय ओएमजी का किसी ने कोई विरोध नहीं किया था? करना भी नहीं चाहिए था। और निश्चित रूप से किसी भी धर्म व विश्वास के 'एजेंटों’ में व्याप्त जिस प्रकार के भी पाखंड, अंधविश्वास व आतंक फैलाने के प्रयास किए जाते हों उन्हें उजागर करना प्रत्येक साहित्य,कला तथा सिनेमा की जि़ मेदारी होनी ही चाहिए। सिनेमा चूंकि समाज का ही एक प्रमुख दर्पण है तथा मेहनतकश व तनाव के वर्तमान दौर में हमारा मनोरंजन करते हुए समाज को आईना दिखाने का काम ब$खूबी निभाता है इसलिए यह ज़रूरी है कि वह पाखंडों, कुरीतियों, दुराग्रहों, अंधविश्वासों और विभिन्न प्रकार की बुराईयों से समाज को समय-समय पर अवगत कराता रहे। चाहे वह पाकिस्तान में बनी तथा नसीरूद्दीन शाह द्वारा अभिनीत फिल्म $खुदा के लिए हो,ओ माई गॉड हो या पीके अथवा इन जैसी दूसरी फिल्में। निश्चित रूप से यदि ऐसी $फिल्में आज़ादी के $फौरन बाद से ही बननी शुरु हो गई होतीं तो संभवत: आज न तो इस्लाम धर्म के नाम पर फैलाया जाने वाला आतंकवाद इस चरम तक पहुंचता और न ही जेल में बैठे कई लुटेरे,पाखंडी व दुराचारी बाबाओं का साम्राज्य व इनका जनाधार इस हद तक पहुंच पाता। परंतु देर से ही सही जब ऐसी $फिल्मों ने समाज को चेतन व जागरूक करने का काम शुरु किया है उसी समय धर्म के तथाकथित शुभचिंतकों द्वारा ऐसी फिल्मों का यह कहकर विरोध किया जाने लगा है कि यह $फिल्में हिंदू धर्मं व हिंदृ देवताओं के विरुद्ध हैं।

धर्म मनुष्य में अध्यात्मिक चेतना का सृजन करता है। धर्म प्रेम, शांति, सद्भाव,  सदाचार, शिष्टाचार के विस्तार तथा इसे आत्मसात करने का माध्यम है। बचपन से ही किसी भी मनुष्य को उनके अपने परिजनों द्वारा दिए जाने वाले धार्मिक संस्कार इतने भी कमज़ोर नहीं होते कि उन्हें एक-दो फिल्मों के प्रदर्शन से हिलाया अथवा डगमगाया जा सके। हज़ारों वर्षों से एक-दूसरे को हस्तांरित होते आ रहे धार्मिक संस्कार ऐसी $फिल्मों के प्रदर्शन से समाप्त अथवा कमज़ोर होने वाले हरगिज़ नहीं। और सही मायने में कोई भी फिल्म निर्माता अथवा निर्देशक किसी भी धर्म के मूल सिद्धांतों पर उसके देवताओं अथवा पैगंबरों पर, उसके धर्मग्रंथों पर कभी प्रहार नहीं करता। बल्कि प्राय: फिल्म कारों की नज़रें उन ढोंगी व पाखंडी लोगों पर रहती हैं जो धर्म के नाम पर किसी भी धर्म के एजेंट बनकर सीधे-सादे व शरी$फ लोगों को ठगने,उन्हें गुमराह करने,उनका आर्थिक व शारीरिक शोषण करने जैसे दुष्कर्म करते हैं। निश्चित रूप से ऐसे पाखंडियों के काले कारनामों को उजागर करना बेहद ज़रूरी भी है तथा किसी भी जागरूक फिल्म कार का यह कर्तव्य भी है। बड़े आश्चर्य की बात है कि फिल्म पी के में धर्म के नाम पर हो रहे पाखंड को उजागर किया गया है फिर भी उसका विरोध तथा फिल्म का बहिष्कार किया जा रहा है। परंतु जब तीन दशक पूर्व अमिताभ बच्चन ने भगवान की मूर्ति के समक्ष यह डायलॉग बोला था कि तू अपनी नाक पर बैठी मक्खी तो हटा नहीं सकता तो तू दूसरों की क्या मदद करेगा? इस डॉयलाग का तथा अमिताभ बच्चन द्वारा इसे बोले जाने का उस समय कोई विरोध नहीं किया गया था। जबकि यह डायलाग सीधे तौर पर भगवान की शक्ति को चुनौती देने वाला तथा भगवान को ही संबोधित करके बोला गया था।

पीके फिल्म का विरोध करने के नाम पर बाबा रामदेव भी 'पुन: प्रकट’ हो गए हैं। उन्होंने भी पीके फिल्म का विरोध करना शुरु कर दिया है। वे इस फिल्म के बहिष्कार की बात भी कर रहे हैं। केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद अब तक देश में काले धन की वापसी न होने पर लोगों द्वारा बाबा रामदेव की तलाश की जा रही थी। वे मीडिया से भी दूरी बनाए हुए थे तथा सार्वजनिक रूप से भी नज़र नहीं आ रहे थे। परंतु फिल्म पीके के विरोध ने उन्हें भी गोया उर्जा प्रदान कर दी। यहां बाबा रामदेव से ही एक सवाल यह है कि आिखर आसाराम, रामपाल, नित्यानंद, नारायण साईं, दयानंद पांडे व किसिंग बाबा जैसे उन 'महान संतों ने आखिर हिंदू धर्म व हिंदू देवी-देवताओं की शान में कैसे चार चांद लगाए हैं? पी के विरोध करने के लिए तो रादेव जी अपना अज्ञातवास छोड़कर भी प्रकट हो गए। परंतु न केवल हिंदू धर्म,हिंदू देवी-देवताओं बल्कि हिंदू धर्मगुरुओं की शान में बट्टा लगाने वाले उपरोक्त पाखंडियों के विषय में आखिखर रामदेव जी ने अपने विचार क्यों नहीं प्रकट किए? आमिर खान को निशाना बनाकर जिन लोगों द्वारा पी के फिल्म का विरोध किया जा रहा है संभवत: उन्हें अपने-आप में भी  कहीं न कहीं कोई न कोई खोट ज़रूर नज़र आ रहा होगा। तभी इस फिल्म के विरोध में पूरी रणनीति अपनाते हुए आमिर खाऩ के नाम को ज़्यादा प्रमुखता से आगे रखा जा रहा है और राजकुमार हिरानी के नाम का विरोध कम किया जा रहा है।

गौरतलब है कि अभी कुछ ही माह पूर्व आमिर खान द्वारा स्टार प्लस पर सत्यमेव जयते नामक एक सीरियल शुरु किया गया था। जिसमें समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार व शोषण के कई जीवंत पहलू उजागर किए गए थे। इन्हीं में एक एपिसोड स्वास्थय तथा डॉक्टरों से संबंधित भी था। पूरे देश ने इस एपिसोड की भरपूर सराहना की थी। सत्यमेव जयते के प्रसारण के समय यही आमिर खां पूरे देश के लिए एक रोल मॉडल बनने लगे थे। हर धर्म का हर व्यक्ति उनकी बातों से तथा उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों से पूरी तरह सहमत दिखाई देता था। परंतु स्वास्थय तथा डॉक्टरों से संबंधित एपिसोड प्रसारित होने के बाद डॉक्टरों की पोल खोलने वाले इसी एपिसोड का विरोध आईएमए (इंडियन मेडिकल ऐसोसिएशन) द्वारा तत्काल एक बैठक बुलाकर किया गया। इस पर आमिर खान ने बाद में स्पष्टीकरण भी दिया कि इस प्रसारण का म$कसद सभी डॉक्टर्स को एक जैसा बताना नहीं बल्कि उन डॉक्टर्स व स्वास्थय सेवाओं से जुड़े लोगों को बेन$काब करना है जो स्वास्थय सेवा जैसे पवित्र पेश को मात्र चंद पैसों के लिए कलंकित व बदनाम कर रहे हैं तथा अपनी कमाई के चलते मरीज़ों की जान की परवाह भी नहीं करते। फिल्म पीके को भी उसी नज़र व नज़रिए से देखा जाना चाहिए। धर्म के नाम पर पाखंड करना $कतई मुनासिब नहीं। इसका भरपूर विरोध किया जाना चाहिए। धर्म की आड़ में जो लोग भी इस फिल्म का विरोध कर रहे हैं संभवत: कहीं न कहीं यह फिल्म उनके अपने हितों को भी प्रभावित कर रही होगी?      

निर्मल रानी

 

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सम्पादक

डॉ. लीना