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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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लघु शोध सा है पत्रिका “वटवृक्ष” का अगस्त अंक

विश्व भर में फैले हिंदी के सैकड़ों चर्चित, सक्रिय ब्लॉगरों से परिचय  

हिंदी ब्लॉगिंग को लेकर कई धुरंधरों ने चिंता व्यक्त की थी - कि यह भाषा को विकृत कर रहा है, यह शैशव की गंदगी से गुजर रहा है, यहाँ उच्खृंखलता है, आदि आदि। पर हिंदी ब्लॉगिंग ने यह साबित कर दिखाया है कि वह सचमुच आम जन की सार्थक और दृढ अभिव्यक्ति का सबसे मु्क्त और स्वनियंत्रित माध्यम है। भले ही वर्चुअल, किन्तु वहां सामाजिक सरोकार की जो आवाज़ उठ रही हैं वह लेखन और लेखक दोनों को स्वतंत्र बनाती हैं।

यह प्रिंट मीडिया के घरानेवाद के विपरीत भी एक अवसर है। यह सामुदायिकता के विकास के लिए भी सबसे कारगर और प्रजातांत्रिक मंच के रूप में भी निरंतर अपनी गति बनाये हुए है। पिछले एक दशक की हिंदी ब्लांगिंग की पड़ताल इस बीच किसी भी तथाकथित जन सरोकार के बडे़ बड़े दावे करनेवाले लेखक संघो ने की हो या लघुपत्रिका के झंडे फहरानेवालों वालों ने देखने में नहीं आया। ऐसे में लखनऊ से 'वटवृक्ष' जैसी लघुपत्रिका की पहल बहुत ही सार्थक साबित हुई है। अगस्त का यह अंक हिंदी ब्लॉगिंग दशक का लगभग समूची तस्वीर हमारे समक्ष रखती है। सैकड़ों विषयों पर किये गये काम और दिशा का यहाँ सार्थक मूल्यांकन है। प्रतिष्ठित टेक्नोक्रेट रवि रतलामी का आलेख महत्वपू्र्ण है। यह 80 पृष्ठों में समाया अंक विश्व भर में फैले हिंदी के सैकड़ों चर्चित, सक्रिय ब्लॉगरों से तो परिचित कराता है ही, हिंदी की वैश्विक उपस्थिति के लिए नये रास्तों की ओर भी इशारा करता है। लगभग एक लघु शोध जैसी प्रस्तुति है। इसके संपादक हैं ब्लॉग विशेषज्ञ रवीन्द्र प्रभात,  संपादकीय टीम में शामिल हैं - जाकिर अली, रजनीश।

पत्रिका का नाम : वटवृक्ष

इस अंक का मूल्य : 100/-

संपर्क : परिकल्पना, एन-1/107,  सेक्टर-एनसंगम होटल के पीछेअलीगंजलखनऊ-226024

 

 

 

 

पत्रिका या लघु शोध

हिंदी ब्लॉगिंग को लेकर कई धुरंधरों ने चिंता व्यक्त की थी - कि यह भाषा को विकृत कर रहा है, यह शैशव की गंदगी से गुजर रहा है, यहाँ उच्खृंखलता है, आदि आदि । पर हिंदी ब्लॉगिंग ने यह साबित कर दिखाया है कि वह सचमुच आम जन की सार्थक और दृढ अभिव्यक्ति का सबसे मु्क्त और स्वनियंत्रित माध्यम है । भले ही वर्चुअल, किन्तु वहां सामाजिक सरोकार की जो आवाज़ उठ रही हैं वह लेखन और लेखक दोनों को स्वतंत्र बनाती हैं । यह प्रिंट मीडिया के घरानेवाद के विपरीत भी एक अवसर है । यह सामुदायिकता के विकास के लिए भी सबसे कारगर और प्रजातांत्रिक मंच के रूप में भी निरंतर अपनी गति बनाये हुए है । पिछले एक दशक की हिंदी ब्लांगिंग की पड़ताल इस बीच किसी भी तथाकथित जन सरोकार के बडे़ बड़े दावे करनेवाले लेखक संघो ने की हो या लघुपत्रिका के झंडे फहरानेवालों वालों ने देखने में नहीं आया । ऐसे में लखनऊ से 'वटवृक्ष' जैसी लघुपत्रिका की पहल बहुत ही सार्थक साबित हुई है । अगस्त का यह अंक हिंदी ब्लॉगिंग दशक का लगभग समूची तस्वीर हमारे समक्ष रखती है । सैकड़ों बिषयों पर किये गये काम और दिशा का यहाँ सार्थक मूल्यांकन है । प्रतिष्ठित टेक्नोक्रेट रवि रतलामी का आलेख महत्वपू्र्ण है । यह 80 पृष्ठों में समाया अंक विश्व भर में फैले हिंदी के सैकड़ों चर्चित, सक्रिय ब्लॉगरों से तो परिचित कराता है ही, हिंदी की वैश्विक उपस्थिति के लिए नये रास्तों की ओर भी इशारा करता है । लगभग एक लघु शोध जैसी प्रस्तुति के लिए युवा संपादक और ब्लॉग विशेषज्ञ रवीन्द्र प्रभात, जाकिर अली रजनीश सहित पूरी संपादकीय टीम की मेहनत के लिए बधाई ।

पत्रिका का नाम : वटवृक्ष
इस अंक का मूल्य : 100/-
संपर्क : परिकल्पना, एन-1/107, सेक्टर-एन, संगम होटल के पीछे, अलीगंज, लखनऊ-226024

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सम्पादक

डॉ. लीना