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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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पर्यावरण के प्रति सजग:वंदना की कविताएं

कौशल किशोर / वंदना मिश्र पत्रकार सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उनके पास समय, समाज परिवेश को पकड़ने की सूक्ष्म दृष्टि है, साथ ही कवयित्री का कोमल संवेदनशील हृदय है। वे प्रकृति और इसमें रहने वाले जीव.जन्तुओं से रिश्ते बनाती हैं। ये सतही तात्कालिक नहीं है, बल्कि ये बड़े गहरे सघन हैं। उनके कविता संग्रह वे फिर आये हैंमें ऐसी कविताओं का एक खण्ड पतरंगा नहीं दिखा इस बारउपशीर्षक से है। इस खण्ड की कविताएं हिन्दी में लिखी जा रहीं आम कविताओं से भिन्न हैं जिन पर विचार जरूरी है। मनुष्य का रिश्ता मात्र मनुष्य से ही नहीं बनता, उसका रिश्ता प्रकृति, इसमें रहने.बसने वाले जीव.जन्तुओं से भी बनता है। इसमें पेड़, पौधे, नदियां, पहाड़, झरने, जंगल, जमीन अर्थात प्रकृति तथा इसमें बसने वाले जीव.जन्तु शामिल हैं।

 यही कारण है कि जब मनुष्य की दुनिया का संकट बढ़ता है तो प्रकृति जीव.जन्तुओं पर भी इसका असर पड़ता है। नागार्जुन इस दुनिया के बड़े कवि हैं। मनुष्य, प्रकृति और जीव.जन्तुओं से घुलमिलकर ही नागार्जुन की कविता का संसार बनता है। उनकी कविता अकाल और उसके बादइसका बेहतरीन उदाहरण है। हमारे आस पास रहने वाले जीव जन्तु हमारे सुख.दुख के कैसे साझीदार हैं कि जब संकट आता है तो इसका असर सब पर पड़ता है, उसी तरह जब खुशी लौटती है तो सबके चेहरों पर चमक लौटती है। वंदना मिश्र की कविताओं में भी तोता, मैना, मोर, पतरंगा, नेउरऊ, गौरैया आदि जीव है। वे अपनी हरकतों से हमारे जीवन में हस्तक्षेप करते हैं। वंदना मिश्र इनके मनोविज्ञान को पकड़ती हैं। उनके साथ गहरा तादात्मय भावनात्मक लगाव स्थापित करती हैं।

 हम पिंजड़े में बंद चिड़िया को गुलामी तथा मुक्ताकाश में उसके विचरण को स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल करते हैं। कविता साहित्य में यह बहुत पुराना रूपक है। इस संबंध में यह प्रश्न अक्सरहां उठता रहता है कि मनुष्य तो स्वयं स्वतंत्र मुक्त रहना चाहता है, परन्तु वह पक्षियों अन्य जीव.जन्तुओं को पिजड़े में बंद कर या अपने बंधन में क्यों रखना चाहता है ? किसी प्राकृतिक जीव को इस तरह बंधन में रखना क्या अप्राकृतिक नहीं है ? क्या यह उसकी प्रताड़ना नहीं है ? ऐसा मनुष्य अपने स्वार्थ में तथा आनन्द मनोरंजन के लिए तो नहीं करता ? इन प्रश्नों का उत्तर देना बहुत सरल नहीं है। लेकिन एक बात स्पष्ट है कि इससे जीव.जन्तुओं के साथ गहरे रिश्ते बनाने की मनुष्य की भावना जरूर प्रकट होती है। यह रिश्ता भी एक तरफा नहीं होता बल्कि जीव.जन्तु भी इस रिश्ते में बंधते हैं। यह बात वंदना मिश्र की कविता मुक्ति का एलानमें देखने को मिलती हैं। पिंजड़े में बंद तोता को सीतारामबोलना सीखाया जाता है और वह सीतारामबोलना सीख लेता है। फिर एक दिन मौका पाकर वह पिजड़े से निकल उड़ता है लेकिन वह सीतारामबोलना नहीं भूल पाता।

 वंदना मिश्र की कविताओं में यह चिंता उभरती है कि प्रकृति को खत्म किया जा रहा है, पर्यावरण संकटग्रस्त है। इसकी वजह से जीव.जन्तुओं का अस्तित्व भी खतरे में पड़ा गया है। पतरंगा नहीं दिखा इस बारमें पतरंगा के देख पाने की व्याकुलता है। यह कविता प्रकृति पेड़ों को नष्ट करने वालों पर सवाल खड़े करती है कि पतरंगा के आने.दिखने के पीछे कुछ तो हैऔर कविता इस कुछकी तह तक जाती है इस बड़े शहर में/नहीं रहे घने ऊँचे पेड़/जो देते उसे आश्रय/अपनी शाखा.भुजाओं में जैसे मनुष्य के लिए आक्सीजन है, मछली के लिए जल है वैसे ही पतरंगा जैसे जीवों के लिए पेड़, उनकी कोंपल, पत्तों, डाल, कली और फूल हैं। दरअसल, पेड़ों को ही नष्ट नहीं किया जा रहा है बल्कि हमारी दुनिया से जीवों का भी सफाया किया जा रहा है। किस तरह खतरे में है पर्यावरण, इस भयावहता से कविता रू रू कराती है।

वंदना मिश्र की एक कविता है लुभाती है मैना इसमें मैना के मनोभाव को व्यक्त किया गया है। मैना ऐसी चिड़िया है जिसमे मोर की तरह चमक.दमक नहीं है। इसमें तोता जैसा चटख हरा रंग भी नहीं है। इसे तोता की तरह रटाया.सिखाया भी नही जा सकता। रंग भी इसका काला.भूरा है। फिर भी यह अपनी ओर खींचती है, आकर्षित करती है। इसे पिजड़े में बंद करके नहीं रखा जा सकता। यह गौरेये की तरह फुदकती हुई आती है। इसकी चाल में अपनी मस्ती है। अपने में मदमस्त रहने की आदत है, गजब की निर्भीकता है जो राजाओं को भी मात कर दे।

वंदना मिश्र अपनी कविता नकुल दरसके माध्यम से बताती हैं कि दुनिया अब पहले जैसी नहीं रही लेकिन नेउरऊ जैसे जीव आज भी भोले.भाले हैं। लोभ.लाभ की संस्कृति ने मनुष्य के निहित स्वार्थ को बढ़ाया है, लेकिन मनुष्य की दुनिया में रहने वाले पालतू जीव.जन्तु आज भी नफे.नुकसान से दूर हैं। कविता उन खतरों की बात करती है जो नेउरऊजैसे भोले.भाले जीवों के लिए पैदा हुए हैं। आसमान पर चीलों का राज है तो धरती पर जहरीले सर्पों का। कविता में नेउरऊकी पुरानी कथा है कि वह घर की मालकिन के बच्चे का प्राण जहरीले सर्प से बचाता है और बदले में उसे मालकिन द्वारा मौत मिलती है। कविता नेउरऊकी कथा के माध्यम से आमजन की कहानी कहती है। आमजन जिस पर भरोसा करता है, उनके द्वारा ही आज ठगा जा रहा है। उसकी भलमनसाहत की उसे सजा मिल रही है और वह तबाह.बर्बाद किया जा रहा है।

भले ही आज की कविता में मध्यवर्गीय चेतना के बढ़ते प्रभाव की वजह से हिन्दी कविता का संसार सीमित नजर आता हो, लेकिन वंदना मिश्र की कविता की दुनिया मनुष्य के पार जाती है। यह जीवन के लिए संकट खतरा पैदा करने वालों के विरुद्ध भले भोले का पक्ष लेती कविताएं हैं। पर्यावरण के प्रति हमें सजग करते हुए कविता की इतनी बड़ी दुनिया निर्मित करती है जिसमें मनुष्य ही नहीं है, बल्कि हमारी प्रकृति, इसमें रहने.बसने वाले जीव.जन्तु हैं।

पुस्तक : वे फिर आये हैं ;कविता संग्रहद्ध

कवयित्री: वंदना मिश्र

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन , 21 , दरियागंज, नई दिल्ली - 110002

मूल्य: रुपये 200.00

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सम्पादक

डॉ. लीना