तारकेश कुमार ओझा/ जिंदगी मुझे शुरू से डराती रही है। इसके थपेड़ों को सहते - सहते जब मैं निढाल होकर नींद की गोद में जाता हूं, तो डरावने सपने मुझे फिर परेशान करने लगते हैं। जन्मजात बीमारी की तरह यह समस्या मुझे बचपन से परेशान करती आई है। होश संभालने के साथ ही मैं इस विभीषिका से पीड़ित रहा हूं।
उस रात भी जीवन की मुश्किलों के बारे में सोचते - सोचते कब मेरी आंख लग गई, पता ही नहीं चला।
सपने में देखता हूं कि वीआइपी मूवमेंट के सिलसिले में मैं फिर उन्हीं घने जंगलों में हूं। जहां लंबे समय तक माओवादी तांडव मचाते रहे थे। अतीत की डरावनी परछाई में खोया मैं रास्ता भटक गया। इस बीच मुझे एक परछाई सी दिखाई पड़ी। जिसे देख मैं सहम गया।
गमछे से चेहरा छिपाए वह शख्स मेरी विपरीत दिशा में खड़ा था।
मैं पतली गली से निकलने की फिराक में था। लेकिन तभी रोबदार आवाज में मिली चेतावनी ने मेरा पांव मानो जाम कर दिए।
ऐ... मिस्टर ... आप मीडिया वाले हो ना...। दक्षिण भारतीय लहजे वाली हिंदी में उसने सवाल दागा।
जी ... । बड़ी मुश्किल से मैने जवाब दिया।
तो इधर आइए , मुझे स्टेटमेंट देना है।
लेकिन... आप...।
घबराहट में पूछे गए मेरे सवाल पर वह बोला ।
आइ एम कोटेश्वर राव ...।
कंपकंपी भरे स्वर में मैने कहा ... मीन ...माओविस्ट ... किशनजी...।
एब्सलूटली राइट...।
लेकिन आप तो...।
शट .. अप . आप मीडिया वालों का यही प्राब्लम है। लिखने से ज्यादा सवाल पूछते हो।
जी बताइए ... क्या कहना है।
इस पर वह शुरू हो गया। मेरा स्टेटमेंट फिल्म वालों पर है। यहां बड़ा पक्षपात हो रहा है। डाकू मलखान सिंह से लेकर फूलन देवी तक पर पहले फिल्म बन चुकी है।
हाल में तो अनेक बदनाम पर्सनल्टीज यहां तक कि वीरप्पन पर भी फिल्म बना डाली। लेकिन अभी तक किसी ने मेरे जीवन पर फिल्म बनाने की घोषणा नहीं की है। यह बड़ा अन्याय और सामाजिक भेदभाव है।
मुझसे कुछ कहते नहीं बन रहा था।
उसने फिर कहना शुरू किया। आखिर मेरी लाइफ में क्या नहीं है। अच्छे - बुरे का कॉकटेल हूं मैं। मेरी लाइफ में पॉजीटिव और नेगेटिव दोनों शेड हैं।
मैं एक कंप्य़ूटर इंजीनियर...। जवानी से लेकर मिडिल एज जंगल में गुजारा। पुलिस मेरे खास निशाने पर रहे।सात मुल्कों की तो नहीं लेकिन सात राज्यों की पुलिस जरूर मेरी तलाश में खाक छानती रही। अनेक सेंसेशनल इंसीडेंट्स में मेरा हाथ होने की बात सभी मानते हैं। और तो और मेरे अंत के पीछे हनी ट्रैप की बात भी कही जाती है। फिल्म मेकरों को और क्या चाहिए।
अरे सब कुछ मिलेगा मेरी फिल्म में। बॉक्स आफिस पर रिकार्ड तोड़ कमाई करेगी मेरी फिल्म।
समझ में नहीं आता ये फिल्म मेकर्स आखिर कहां झक मार रहे हैं।
उसने फिर चेतावनी दी... जल्द ही यदि किसी रामू - श्यामु ने मुझ पर फिल्म बनाने का ऐलान नहीं किया तो बड़ा गण - आंदोलन होगा...।
फिल्म वालों के प्रति उसकी नाराजगी मेरा ब्लड प्रेशर बढ़ा रही थी।
मोबाइल के रिंग टोन से मेरी नींद टूटी।
मैं घबरा कर उठा।
फिर खुद को आश्वस्त करते हुए बोला... अरे मैं तो सपना देख रहा था।
नोटः यह कपोल - कल्पित व्यंग्य है। इसका उद्देश्य स्वस्थ मनोरंजन करना है। किसी की मानहानि करना कतई उद्देश्य नहीं है।
लेखक पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में रहते हैं और वरिष्ठ पत्रकार हैं।
तारकेश कुमार ओझा, भगवानपुर, जनता विद्यालय के पास वार्ड नंबरः09 (नया) खड़गपुर ( प शिचम बंगाल) पिन ः721301 जिला प शिचम मेदिनीपुर संपर्कः 09434453934
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