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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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भारत का वरिष्ठ पत्रकार- चालाकियों से कब बाज आएगा

संजीव खुदशाह/ करीब पांच साल पहले रायपुर में छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े सरकारी हॉस्पिटल जिसका नाम भारत रत्न डॉ भीम राव अंबेडकर हॉस्पिटल है मे अंडकोष के इलाज के लिए एक मशीन खराब हो गई थी उसे रिपेयर कर लिया गया तो छत्तीसगढ़ के एक प्रसिद्ध अखबार में इस समाचार के लिए शीर्षक लिखा अंबेडकर का अंडकोष ठीक हुआ.

मेरे एक मित्र ने मुझे फोन में बताया इसके के बारे में और आपत्ती भी दर्ज कराई हमने एक पत्र मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट ला नेटवर्क को लिखा (यह संस्‍था कानूनी मामले में मदद करती है) और बैठकों में भी इसकी चर्चा की। उस वक्त आज की तरह  whatsapp जैसी सोशल मीडिया नहीं आई थी. ताकि खबर यहां वहां तक असानी से पहुचा जा सके। बावजूद इसके छत्तीसगढ़ के अखबार जिनका मुख्यालय रायपुर मे हीं है वह आंबेडकर हॉस्पिटल के संबंध में ऐसी ही उलजुलूल शीर्षक लगाकर समाचार छापते हैं और हम लगभग इस के आदी हो चुके हैं.

पिछले 3 दिनों पहले हरिभूमि समेत तमाम प्रसिद्ध अखबारों ने एक समाचार छापा जिसका शीर्षक था सुप्रीम कोर्ट का फैसला अब आरक्षित वर्ग को सिर्फ कोटे में मिलेगी नौकरी भीतर चाहे कुछ और भी लिखा हो लेकिन इन वरिष्ठ पत्रकारों ने खुलेआम नियमों की धज्जियां उड़ाई साथ में सुप्रीम कोर्ट भारत के संविधान का मजाक भी उड़ाया. जबकि सुप्रीम कोर्ट का डिसीजन कुछ और ही था.

इसी प्रकार कुछ दिनों पहले नवभारत के फ्रंट पेज में एक खबर का शीर्षक था मायावती वेश्या से बदतर है अंदर जो भी लिखा हो उससे ज्यादा  महत्वपूर्ण बात यह कि जातिवादी संपादक पत्रकार इतनी हिम्मत कैसे का पाते हैं कि वे वंचित के नायक ऊपर ऐसे घृणित शोर्षक लगा पाते हैं. मैं बताना चाहूंगा कि पंडित जवाहरलाल नेहरु, महात्मा गांधी, इंदिरा गांधी, वीर सावरकर, अग्रसेन महाराज, परशुराम जैसे अभिजात्य वर्ग के महापुरुषों के बारे में ऐसे शिर्षक ना लगाए गए ना ही लगाने की हिम्मत किसी पत्रकार ने की होगी.

कुछ दिन पहले राजस्थान पत्रिका नामक समाचार पत्र जो अभी पत्रिका के नाम से जानी जाती है के मालिक गुलाब कोठारी ने एक लेख लिखा आरक्षण से कब आजाद होगा यह देश इस लेख में संविधान का बुरी तरीके से मजाक उड़ाया गया और गलत जानकारी देकर वंचित वर्ग को जलील करने की चेष्टा की गई कुछ लोग इसका विरोध भी किए लेकिन पत्रिका ने कभी भी अपने इस लेखक खंडन नहीं किया

इसी प्रकार पिछले दिनों कुछ समाचार पत्रों में शीर्षक दिया की चुनाव आयोग ने चैलेंज ईवीएम को हैक करके दिखाएं कुछ केन्‍द्रीय मंत्री तथा  नेताओं ने भी इस पर अपने स्टेटमेंट जारी किए की चुनाव आयोग का यह कदम सराहनीय है। लेकिन सच्चाई यह थी कि चुनाव आयोग ने ऐसा कोई चैलेंज जारी ही नहीं किया था।

अब मैं आपको बताना चाहूंगा की गलत शीर्षक लगाने वाले यह पत्रकार किस प्रकार सच्चाइयों को छिपा जाते हैं और उन्हें आसानी से पचा लेते हैं एक उदाहरण देखिए सेना के जवान श्री तेज प्रताप यादव को बर्खास्त कर दिया गया वह भी इसलिए कि उसने हल्दी मिला दाल और घटिया खाने का वीडियो बनाकर वायरल कर दिया था. इस समाचार को मीडिया ने पूरी तरीके से दबा दिया कुछ मीडिया ने छापा भी तो उन्होंने लिखा तेजप्रताप बर्खास्त. क्यों बर्खास्त हुआ? कैसे बर्खास्त हुआ? सही था या गलत था इस बात से पत्रकारों को कोई लेना देना नहीं क्यों केवल  इसलिए  की  तेज प्रताप यादव था ?

मुझे लगता है की भारत के लिए स्वयंभू वरिष्ठ पत्रकार लिखते तो बहुत है पढ़ते नहीं। वह सुप्रीम कोर्ट के बारे में लिखने के पहले उन का आदेश नहीं पढ़ते. कोठारी जी संविधान पर लिखने से पहले संविधान नहीं पढ़ते. वरिष्ठ पत्रकार आंबेडकर हॉस्पिटल में लिखने से पहले यह भूल जाते हैं कि हॉस्पिटल पर ही लिख रहे हैं अंबेडकर पर नहीं। तेज प्रताप यादव सैनिक के ऊपर लिखते समय वह भूल जाते हैं कि वह सैनिक है उन्हें यह याद रहता है कि वह यादव जाति के है। यानी भारत के हिंदी पत्रकार हिंदी कम हिंदू पत्रकार ज्यादा लगते हैं। दरअसल भारत का वरिष्ठ हिंदू पत्रकार वंचित वर्ग को जलील करने का और अभिजात्य वर्ग को उपकृत करने का कोई भी मौका खोना नहीं चाहता।

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सम्पादक

डॉ. लीना