टी आर पी की ख़ातिर 'जमूरा' कुछ भी करेगा !
निर्मल रानी/ जिस तरह भारतीय राजनीति इस समय देश के राजनैतिक इतिहास के सबसे संक्रमण कालीन दौर से गुज़र रही है ठीक उसी तरह भारतीय मीडिया भी घोर संक्रमण काल से रूबरू है। टेलीविज़न के शुरूआती दौर के जाने माने अनेक टी वी एंकर्स जैसे जे बी रमन, शम्मी नारंग, विनोद दुआ, प्रणव राय व प्रभु चावला आदि के दौर में शानदार व ज़िम्मेदाराना पत्रकारिता तथा बात चीत में शिष्टाचार, गंभीरता, चर्चा से संबंधित विषयों का संपूर्ण अध्ययन,आमंत्रित अतिथि के साथ शिष्ट व मधुर वातावरण में चर्चा आदि के दर्शन होते थे। निश्चित रूप से उपरोक्त एंकर्स व समाचार वाचकों को सुनने व देखने के लिए दर्शक व श्रोता उस समय की प्रतीक्षा करते थे जब इन्होंने अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करना होता था। इनसे प्रभावित व प्रेरित होकर देश के लाखों होनहार युवाओं ने पत्रकारिता में अपना कैरियर भी बनाया। यही एंकर्स बड़े से बड़े लोगों के साक्षात्कार पूरी शालीनता व शिष्टाचार के साथ लिया करते थे। चीख़ना, चिल्लाना, पूर्वाग्रही पत्रकारिता करना,स्टूडियो को अदालत बनाते हुए कोई फ़ैसला सुना देना, धर्म जाति के आधार पर कार्यक्रम तैयार कर देश के लोगों को बाँटना,उकसाना,दंगे फ़साद भड़काने के लिए वातावरण तैयार करना जैसी बातों से ये परहेज़ करते थे। क्योंकि पत्रकारिता का धर्म,कर्तव्य व दायित्व इसकी इजाज़त नहीं देते।
परन्तु आज की टी वी पत्रकारिता तो आम तौर पर ऐसी हो चुकी है जिसे पत्रकारिता कहना भी गोया पत्रकारिता का अपमान है। ऐसे ऐसे चीख़ने चिल्लाने वाले लोग टाई सूट पहनकर स्टूडियो में बैठे हुए हैं जो पूरी तरह अपना मन बनाकर बल्कि अपने आक़ाओं से निर्देशित होकर किसी भी पूर्वाग्रही एजेंडे के साथ 'मदारी के जमूरे ' की तरह स्टूडियो में आते हैं। सच पूछिए तो आज के मुख्यधारा के इन एंकर्स का कार्यक्रम प्रस्तुतीकरण का बेहूदा अंदाज़ व अपने अतिथियों के साथ बातचीत का इनका तौर तरीक़ा व लहजा तथा इनके द्वारा किये जाने वाले शब्दों का चयन सुनकर तो कोई सज्जन अभिभावक अपने बच्चों को पत्रकारिता की शिक्षा भी नहीं दिलाना चाहेगा। इसी तरह के चीख़ने चिल्लाने वाले एंकर्स व इनके द्वारा प्रस्तुत किये जाने वाले भड़काऊ विषयों पर आधारित कार्यक्रमों ने टी वी से जनता का मोह तो भांग किया ही है,इससे विश्वास भी उठ गया है। पहले तो भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा जैसे कार्यक्रम के अतिथि प्रतिभागी ही टी वी डिबेट का चेहरा बिगाड़ने के ज़िम्मेदार समझे जाते थे। स्वयं अपनी पुरी लोकसभा सीट से चुनाव हारने के बावजूद पूरे भारत के बहुसंख्यकों का पुरज़ोर तरीक़े से पक्ष रखने वाले डॉक्टर संबित पात्रा अपनी बात रखते हुए वैसे तो कभी कभी बड़े शालीन नज़र आते हैं। परन्तु किसी मुसलमान धर्मगुरु को 'अबे मुल्ला' कह कर संबोधित करना हो या इनके विचारों से मेल न खाने वाले हिन्दू धर्मगुरु को पाखंडी या कलयुगी धर्म गुरु कहकर बुलाने में यह देर नहीं लगते। 12 अगस्त को नोएडा में इन्हीं पात्रा साहब से एक परिचर्चा के दौरान कांग्रेस प्रवक्ता राजीव त्यागी को दिल का दौरा पड़ा और उनका देहांत हो गया। आजतक टी वी चैनल पर होने वाली इस परिचर्चा में भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने राजीव त्यागी पर अमर्यादित जातिगत व धार्मिक टिप्पणी की थी तथा उन्हें अपमानित करते हुए अभद्र भाषा व अप शब्दों का इस्तेमाल किया था। संबित पात्रा ने राजीव त्यागी की ओर मुख़ातिब होकर गला फाड़ कर चिल्लाते हुए दहशत का वातावरण बनाया। इतना ही नहीं बल्कि चीख़ते चिल्लाते हुए पात्रा ने त्यागी को 'जयचन्द' कहा व उन्हें नक़ली हिन्दू बताडाला। इन्हीं बाद कलामियों से आहत होकर राजीव त्यागी विचलित होने लगे। इसी दौरान पात्रा ने यह भी कह दिया कि माथे पर तिलक लगाकर कोई हिन्दू नहीं हो जाता। बस इसी के बाद राजीव त्यागी ने स्वयं को अपमानित महसूस किया उन्हें उसी क्षण हृदयाघात लगा और परिचर्चा के दौरान ही दिल का दौरा पड़ा और उनका देहांत हो गया। राजीव त्यागी के देहांत के बाद व्यापक तौर पर संबित पात्रा की भाषा शैली की न केवल आलोचना की गयी बल्कि अनेक जगहों पर पात्रा के विरुद्ध प्रदर्शन हुए व उन्हें त्यागी की मौत का ज़िम्मेदार ठहराते हुए उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग भी की गयी।
परन्तु अब प्रतिभागियों से अधिक चीख़ने चिल्लाने व प्रतिभागियों को उकसाने यहाँ तक कि लाईव कार्यक्रम में जूता चप्पल चलाने व धक्का मुक्की के लिए प्रतिभागियों को प्रोत्साहित करने का ज़िम्मा ख़ुद एंकर्स ने संभाल लिया है। चीख़ने चिल्लाने वाले एंकर्स की श्रेणी में अरनब गोस्वामी का नाम इस समय सबसे ऊपर है। कुछ लोग तो इनको मानसिक रोगी भी बता रहे हैं। अरनब जब गला फाड़ कर किसी पर बरसते,चीख़ते व चिल्लाते हैं तो वे किसी व्यक्ति के पद, उसकी मान मर्यादा, उसकी लोकप्रियता, मान सम्मान सब कुछ ताख़ पर रख देते हैं। महाराष्ट्र के निर्वाचित मुख्य मंत्री उद्धव ठाकरे, उनके गृह मंत्री व सांसद आदि को तो ऐसे संबोधित करते हैं जैसे कि वे बहुत बड़े अपराधी हों और अरनब न्यायाधीश। पिछले दिनों सुशांत सिंह राजपूत से जुड़े विषय पर परिचर्चा के दौरान अरनब ने अकारण ही सलमान खान को खींच लिया जबकि वे अनुपस्थिति थे । अरनब चीख़ चीख़ कर गला फाड़ते हुए सलमान ख़ान के लिए जिन शब्दों का प्रयोग कर रहे थे वह पत्रकार नहीं बल्कि 'मदारी का जमूरा' होने के लक्षण हैं। ज़रा सुनिए अरनब के बोल ---"वह सलमान जो इतना बोलता था ना,कहाँ है ? कहां छिपा हुआ है ? ड्रग्स मफ़िया के बारे में आवाज़ क्यों नहीं उठती? बोलती बंद क्यों ?कहाँ है सलमान ख़ान ? एक आवाज़ नहीं उठी,एक स्टेटमेंट नहीं एक ट्वीट नहीं ? मैं पूछ रहा हूँ ,कहाँ हो सलमान ? चुप क्यों हो सलमान? सुशांत की हत्या के बारे में चुप क्यों हो सलमान? किस शहर में हो तुम? किस देश में सलमान ? देश की नब्ज़ के ख़िलाफ़ बोलने वाले आदमी हो तुम तो बोल कर दिखाओ। बोलती बंद क्यों ?बिग बॉस के डायलॉग दिए जाएंगे हाथ में,कोई लिखेगा फिर उसको पढ़ोगे रट्टा मार के,रट्टा मार के। तो क्यों न पूछूं मैं ? अरे महानायक के लिए मेरी थोड़ी इज़्ज़त है तो उनका नाम नहीं ले रहा मैं ,मगर सलमान की बोलती बंद क्यों" ?
कहना ग़लत नहीं होगा कि इस तरह की 'गला फाड़ 'एजेंडा पत्रकारिता' का मक़सद अपने चैनल की टी आर पी अर्थात टारगेट रेटिंग पॉइंट को बढ़ाना है और इसकी ख़ातिर टी वी चैनल्स के एक दो नहीं बल्कि अनेक 'जमूरे ' कुछ भी करने को तैयार हैं ? परन्तु यह पत्रकारिता नहीं बल्कि पत्रकारिता के पावन पेशे को कलंकित व बदनाम करने के प्रयास हैं। देश-दुनिया व इतिहास ऐसे 'जमूरों ' को कभी मुआफ़ नहीं करेगा।
(ये लेखिका के निजी विचार हैं, तस्वीर भी उनके द्वारा प्रेषित)