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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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सरकार की आलोचना करने के लिए ही हमने अख़बार निकाला है

‘माखनलाल चतुर्वेदी’ को उनके जन्मदिवस (4 अप्रैल) पर सादर नमन

जिया हसन/ 4 अप्रैल 1889 पत्रकारिता का एक ज्योत दीप्तिमान हुआ था वह ज्योत आगे चलकर ‘प्रभा और कर्मवीर’ जैसे प्रतिष्ठत पत्रों के संपादक के रूप में ख्याति पायी। सरल भाषा और ओजपूर्ण भावनाओं के अनूठे हिंदी रचनाकार, कवि, लेखक और पत्रकार को हम माखनलाल चतुर्वेदी उर्फ़ पंडित जी के नाम से याद करते हैं ।
अंग्रेज़ी शासन के खिलाफ जोरदार प्रचार किया और नई पीढ़ी का आह्वान किया कि वह गुलामी की जंज़ीरों को तोड़ कर बाहर आए। जिस कारण उन्हें शासन का कोपभाजन बनना पड़ा लेकिन पत्रकारिता के मूल्यों, सिद्धांतो के साथ कभी समझौता नही किया।

कलेक्टर: आपके अख़बार में काबिले-एतराज़ बातें छपती हैं।

माखनलाल: काबिले-एतराज़ बातें छापने के लिए ही हमने अख़बार निकाला है।

कलेक्टर: आप सरकार की आलोचना करते हैं।

माखनलाल: सरकार की आलोचना करने के लिए ही हमने अख़बार निकाला है।

कलेक्टर: मैं आपका अख़बार बंद करवा सकता हूँ।

माखनलाल: हमने यह मानकर ही अख़बार निकाला है कि आप इसे बंद करवा सकते हैं।

कलेक्टर: मैं आपको जेल में डाल सकता हूँ।

माखनलाल: हम यही मानकर यह सब करते हैं कि आप हमें जेल में डाल सकते हैं।

कलेक्टर हँसा। बोला: Look here, I am not English, I am Irish, but I am an employee of these bastards, Englishmen. I will have to take some action to show them. So be cautious. ( देखो, मैं अंग्रेज़ नहीं हूँ, मैं आयरिश हूँ, लेकिन मैं इन घटिया अंग्रेज़ों का कर्मचारी हूँ. उन्हें दिखाने के लिए मुझे कुछ-न-कुछ कार्रवाई करनी पड़ेगी. इसलिए सतर्क रहो.)

कर्मवीर के प्रकाशन हेतु आज्ञा के समय मिथाइस ने पूछा-एक अंग्रेजी साप्ताहिक होते हुए आप हिन्दी साप्ताहिक क्यों निकालना चाह रहे हैं?

माखनलाल ने बड़ी स्पष्टता से कहा- 'आपका अंग्रेजी पत्र तो दब्बू है। मैं वैसा पत्र नहीं निकालना चाहता। मैं ऐसा पत्र निकालना चाहूँगा कि ब्रिटिश शासन चलते-चलते रुक जाए।'
मिस्टर मिथाइस माखनलाल जी के साहस से बहुत प्रभावित हुआ और बिना जमानत राशि लिए ही कर्मवीर निकालने की अनुमति दे दी। यह घटना माखनलाल जी की पत्रकारिता के तेवर का प्रतिनिधित्व करती है।यही साहस और बेबाकी कर्मवीर की पहचान बनी।

4 अप्रैल 1925 को जब खंडवा से माखनलाल चतुर्वेदी ने 'कर्मवीर' का पुनः प्रकाशन किया तब उनका आह्वान था-

'आइए, गरीब और अमीर, किसान और मजदूर, उच्च और नीच, जित और पराजित के भेदों को ठुकराइए। प्रदेश में राष्ट्रीय ज्वाला जगाइए और देश तथा संसार के सामने अपनी शक्तियों को ऐसा प्रमाणित कीजिए, जिसका आने वाली संतानें स्वतंत्र भारत के रूप में गर्व करें।'

' कर्मवीर' के 25 सितंबर 1925 के अंक में वे लिखते हैं-

'उसे नहीं मालूम कि धनिक तब तक जिंदा है, राज्य तब तक कायम है, ये सारी कौंसिलें तब तक हैं, जब तक वह अनाज उपजाता है और मालगुजारी देता है। जिस दिन वह इंकार कर दे उस दिन समस्त संसार में महाप्रलय मच जाएगा। उसे नहीं मालूम कि संसार का ज्ञान, संसार के अधिकार और संसार की ताकत उससे किसने छीन कर रखी है और क्यों छीन कर रखी है। वह नहीं जानता कि जिस दिन वह अज्ञान इंकार कर उठेगा उस दिन ज्ञान के ठेकेदार स्कूल फिसल पड़ेंगे, कॉलेज नष्ट हो जाएँगे और जिस दिन उसका खून चूसने के लिए न होगा, उस दिन देश में यह उजाला, यह चहल-पहल, यह कोलाहल न होगा।

इस युग पुरुष ‘माखनलाल चतुर्वेदी’ को उनके जन्मदिवस पर सादर नमन।

जिया हसन

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सम्पादक

डॉ. लीना