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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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ये है हमारी हिन्दी पत्रकारिता का स्तर

पितृसत्तात्मक जकड़बंदी से बाहर नहीं निकल पाया हिन्दी अख़बार

विनीत कुमार/ प्रो. कुमुद शर्मा दिल्ली विश्वविद्यालय में सालों से पढ़ा रही हैं. पत्रकारिता के छात्रों के बीच वो बेहद लोकप्रिय हैं. विज्ञापन,स्त्री विमर्श और भूमंडलीकरण के मुद्दे पर अच्छी समझ रखती हैं और इस पर उनकी किताब भी हैं. उनके साथ दर्जनों छात्रों ने शोध-कार्य( एम.फिल्,पीएचडी ) किया है. जाहिर है इन सबसे पीछे कहानीकार अमरंकांत की कोई भूमिका नहीं रही है भले ही वो उनके पिता रहे हों. वो अपने काम से लिखने-पढ़ने की दुनिया में एक मुक़्कमल पहचान रखती हैं, हम-आप उनसे चाहे जो भी वैचारिक असहमति रखते हों. वो एक विदुषी महिला हैं. पूरी रिपोर्ट पढ़कर आपको कहीं कोई ऐसी समझ नहीं बनेगी. लेकिन

हिन्दी अख़बार का स्तर यह है कि ये अपने पितृसत्तात्मक जकड़बंदी से अभी तक बाहर नहीं निकल पाया है. अक्सर ऐसे अख़बारों की हरकतें ऐसी होती हैं कि बल्कि इस पितृसत्ता की जड़ों को मजबूत ही कर रहा होता है. ये ठीक बात है कि अमरकांत हिन्दी के बड़े और बेहद प्रतिष्ठित कथाकार रहे हैं लेकिन लिखने-पढ़ने की दुनिया में प्रोफेसर कुमुद शर्मा की अपनी पहचान है. यह बात पाठकों को बताने के बजाय शीर्षक में उनकी बहू होने की बात को शामिल करना, किस बात पर जोर दिया जाना है ? क्या ये कि एक स्त्री चाहे जितनी झक मार ले, अपनी पहचान के साथ उसे दुनिया से परिचित कराना हिन्दी पत्रिकारिता के गले उतरनेवाली चीज़ नहीं.

अख़बार की कटिंग साभार

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पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना