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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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यूट्यूबर जब खुद को पत्रकार समझने लगे तो वो खबर बताते नहीं,बनाने लगते हैं...

अविनाश कुमार / तमिलनाडु में बिहारी मजदूरों पर कथित हिंसा की जांच करने गई बिहार सरकार की टीम ने मुख्यमंत्री को दिए अपने रिपोर्ट में कहा कि मामले से संबंधित सोशल मिडिया पर सांझा किए गए सभी वीडियो फर्जी पाए गए हैं। फर्जी पाए गए विडियो और मैसेज के कारण मजदूरों में तनाव और डर फैला। 

अब तक बिहार पुलिस ने 30 वीडियो को चिह्नित किया गया है जिसकी आर्थिक अपराध इकाई की टीम जांच कर रही है। जांच में पता चला है कि न सिर्फ फर्जी वीडियो शेयर किए जा रहे थे, बल्कि फर्जी वीडियो बनाया भी जा रहा था। 

इस मामले में चार लोगों को नामजद किया गया था। अमन कुमार को गिरफ्तार किया जा चुका है. बताया गया कि मनीष कश्यप द्वारा बीएनआर न्यूज़ हनी नामक यूट्यूब चैनल का एक वीडियो ट्वीट किया गया था जिसमें पट्टी बांधे दो लोगों को दिखाया जा रहा है। इस ट्वीट में टैग वीडियो देखने से संदिग्ध लग रहा था। अतः उसकी जांच की गई और वीडियो अपलोड करने वाले व्यक्ति राकेश रंजन कुमार को गोपालगंज से पूछताछ के लिए लाया गया। पुलिस की पूछताछ में राकेश रंजन कुमार ने स्वीकार कर लिया कि 06.03.2023 को अपलोडेड फर्जी वीडियो को दो अन्य लोगों के सहयोग से बनाया गया था। कहा कि इस वीडियो को जक्कनपुर के बंगाली कॉलोनी स्थित एक किराए के मकान में शूट किया गया था ताकि पुलिस द्वारा किए जा रहे अनुसंधान को गलत दिशा में मोड़ा जा सके। यह कांड दर्ज होने के बाद मनीष कश्यप फरार है। साथ ही एक और आरोपी युवराज सिंह राजपूत भी फरार है। 

बिहार के वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह अपने फेसबुक पोस्ट में इस इस मामले को गहरी साजिश बताया है और अपनी सूत्रों के हवाले से खुलासा किया है कि मनीष कश्यप के खाते में पिछले एक महीने में कई गैर कानूनी ट्रांजेक्शन हुए हैं। 

पिछले कुछ सालों में बिहार में कोई भी यूट्यूबर माईक खरीदकर खुदको पत्रकार और अपने यूट्यूब चैनल को न्यूज चैनल बताने लगे हैं। मगर उनके कंटेंट और रिपोर्टिंग के तरीकों में कोई भी पत्रकारिता का मूल्य नहीं दिखता। जैसे अर्नब गोस्वामी ने व्यूअरशिप के लिए टीवी पत्रकारिता स्तर को गिरा दिया है उसी तरह अर्णव के नकल करने वाले कुछ यूटुबर जो खुद को पत्रकार कहते हैं, उन्होंने बिहार के डिजिटल पत्रकारिता के विश्वनीयता को खत्म कर दिया है। यूट्यूब पर किसी तरह व्यूज लेने के लिए ये लोग माईक लेकर गुंडों के तरह व्यवहार, गाली - गलौज और लफंगों के तरह रिपोर्टिंग करते हैं। इनको देखने और सुनने में लोगों को फायदा हो न हो मगर मजा खूब आता है। लोगों के इसी मजे के चक्कर में वो अपने चैनल से नफ़रत, अराजकता और असलीलता फैलाते हैं। 

डिजिटल मिडिया पूरी तरह से अनरेगुलेटेड है। टीवी और डिजिटल दोनों स्पेस को प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के द्वारा रेगुलेट करना चाहिए। इसके साथ जैसे बिना एलएलबी के डिग्री के कोई खुद को वकील नहीं कह सकता, उसी तरह बिना मास कम्युनिकेशन या जर्नलिजम के डिप्लोमा/डिग्री के कोई खुद पत्रकार नहीं कह सकता है, यह व्यवस्था होनी चाहिए। और अगर वो बार - बार जर्नलिस्टिक मूल्यों का वो उलंघन करता है तो उससे "पत्रकार" का टैग वापस ले लेना चाहिए। हां, वो खुद को यूट्यूबर कह सकता है मगर पत्रकार नहीं। "पत्रकार" शब्द के साथ एक विश्वसनीयता जुड़ा हुआ है, जिनके शब्दों पर लोग विश्वास करते हैं और इस पेशा से जुड़े लोगों का समाज के प्रति एक जवाबदेही भी है। 

(लेखक अविनाश कुमार अपना बिहार के संपादक हैं,  दिल्ली विश्वविद्यालय से बी.ए और एम.ए जर्नलिजम की पढ़ाई की है. दैनिक भास्कर ग्रुप में पत्रकार के रूप में काम किया है और अभी वर्तमान में हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में शोधार्थी हैं.)

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सम्पादक

डॉ. लीना