संजीव चंदन। यह मूक नायक का 100वां साल है। इस साल किसानों द्वारा अखबार प्रकाशन का क्रांतिकारी काम बाबा साहेब को एक ट्रिब्यूट है।
मूक नायकों के लिए अपने मीडिया, अपनी आवाज की हमेशा से जरूरत रही है। जो काम 'हरिजन' या 'केशरी' नहीं कर रहे थे, उनके हित क्षेत्र अलग थे और तत्कालीन बड़े अखबारो, जैसे स्टेट्समैन और बाद में टाइम्स ऑफ इंडिया के हित अलग, तब मूकनायक का प्रकाशन ही जन पक्षधरता थी।
आज स्थिति और बुरी है। आज अखबार/ मीडिया स्टेट के पक्ष में भी नहीं है, आज मीडिया पर एक-दो मालिकान निर्णायक भूमिका में हैं। तब वे सरकारें बना सकते हैं, बिगाड़ सकते हैं। आज भाजपा को भले ही चापलूस मीडिया अच्छी लग रही हो, लेकिन वास्तव में वह भाजपा की चापलूस नहीं है। वह अपने पूंजी मालिकों की हितैषी है और कल पूंजी मालिक का हित लिबरल उदरावाद से बनेगा तो यह सरकार बदल जायेगी।
इस भयानक दौर में किसानों ने ट्रॉली टाइम्स निकाल कर मीडिया को सन्देश दिया है। सन्देश उन नेताओं को भी है, जो विपक्ष की राजनीति करते हैं, खासकर सामाजिक न्याय वालों को-वामपंथियों के अखबार आज भी अहर्निश निकलते हैं।
मूकनायक के शताब्दी वर्ष में ट्रॉली टाइम्स का स्वागत। जय भीम!