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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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जानवरों की तरह न्यूजरूम से हांके गए दर्जनों मीडियाकर्मी

विनीत कुमार/ एबीपी न्यूज के आउटपुट हेड जो कि पिछले बीस साल से (स्टार न्यूज के दौर से ) चैनल को अपनी सेवाएं देते आए, उन्हें धकियाते हुए परिसर से बाहर किया गया. उनकी किताबें और बाक़ी चीज़ों को उनके साथ भेज दिया गया जिससे कि वो दोबारा किसी भी बहाने यहां आ न सकें. उन्हें अपने सहयोगियों से ठीक से मिलने और अलविदा तक कहने का मौक़ा नहीं दिया गया. इस अपमान और बेशर्मी का बाक़ी मौज़ूद मीडियाकर्मियों पर ऐसा असर हुआ कि वो दहशत में आ गए और कुछ तो वहीं रोने लगे. चैनल ने जब बीस साल से अपनी सेवा दे रहे आउटपेड के साथ ऐसा बर्ताव किया तो बाक़ी 45 से ज़्यादा लोगों की रातोंरात जो छंटनी की, उनसे अलग व्यवहार कैसे करता ?

छंटनी का आलम ऐसा कि कुछ को शिफ्ट के दौरान सीट से उठाकर बाहर का रास्ता दिखा दिया गया तो कुछ का फोन पर ही इस्तीफा ले लिया गया. मनमाने ढंग से काग़जों पर दस्तख़त कराए गए जिनमें बाक़ी बातों के साथ ये दोनों बातें भी शामिल रही कि वो अपनी मर्जी से छोड़कर जा रहे हैं और दूसरा कि यहां से जाने के बाद वो इन सबकी चर्चा सोशल मीडिया पर नहीं करेंगे.

किसी भी न्यूज चैनल का आउटपुट हेड होना बहुत बड़ी बात होती है. ये आप उनलोगों से पूछिए जो सालों से न्यूज चैनलों में काम करते हुए यहां तक पहुंचने की हसरत रखते हैं. कुछ चैनलों के आउटपुट हेड तो इतने ताक़तवर हैं कि उनके आगे प्राइम टाइम के स्टार एंकर तक आवाज़ नीची करके बात करते हैं. दर्शकों के लिए एंकर ही बस तोप चीज़ हुआ करते हैं लेकिन चैनलों की दुनिया जानती है कि आउटपुड हेड के आगे उनकी क्या बिसात है ?

एबीपी न्यूज नेटवर्क में इन दिनों बड़े पैमाने पर छंटनी जारी है. इसके दो क्षेत्रीय चैनल एबीपी गंगा और एबीपी सांझा बंद किए जा चुके हैं और पूरे नेटवर्क में भारी अफ़रा-तफरी का माहौल है. जिन मीडियाकर्मियों ने बीस-बीस तक काम किया, उन्हें अपने ही सहयोगियों से मिलने, अपनी ज़िंदगी के बारे में सोचने और अपनी बात रखने के लिए बीस क्या, दो मिनट का भी समय नहीं दिया गया. जिस अपमान और बेशर्मी का मंज़र उन्होंने देखा वो शायद ही ज़िंदगी में कभी भूल पाएं.

पिछले दिनों रूबिका लिकायत की एबबीपी न्यूज छोड़ने की वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर तरह-तरह से घुमायी गयी. लियाकत बिंदास अंदाज़ में न्यूजरूम में अपने सहयोगियों को बाय कर रही हैं और सारे मीडियाकर्मी अपनी सीट छोड़कर, खड़े होकर उनके लिए तालियां बजाते हैं. देश के जिस किसी भी मीडिया छात्र ने ये क्लिप देखी होगी, उनके मन में एबीपी न्यूजरूम के प्रति ख़ास आकर्षण पैदा हुआ होगा लेकिन अब जब वो इस कहानी से गुज़रेंगे कि किसी को शिफ्ट के दौरान सीट से उठाकर, किसी को नाइट शिफ्ट पूरी करने पर केबिन में बुलाकर तो आउटपुट हेड को घेरकर इस्तीफा लिया गया और किसी से मिलने तक न दिया गया तो उनके भीतर चैनल क्या इस पेशे के प्रति किस तरह का दहशत पैदा होगा, इसका अंदाज़ा आप लगा सकते हैं.

अजय तिवारी जिन्होंने एबीपी न्यूज में बतौर कैमरामन, पिछले 25 साल तक अपनी सेवाएं दीं, उन्होंने बेहद ही मार्मिक अंदाज़ में काम छीन लिए जाने को लेकर पोस्ट लिखी है. उस पोस्ट से गुज़रते हुए आप समझ सकेंगे कि जिस न्यूज चैनल के लिए मीडियाकर्मी अपनी ज़िंदगी के सबसे अहं पलों को भी नज़रअंदाज़ कर देते हैं, जान जोख़िम में डालकर काम करते हैं, बाहर की दुनिया से ताने-उलहाने सुनते हैं, उन्हें बाहर का रास्ता दिखाने, अपमानित करने में चैनल दो मिनट का भी समय नहीं लगाता. उन्हें इतना भी समय नहीं देता कि वो ठहरकर पांच मिनट के लिए अपने बारे में, परिवार और ज़िंदगी के बारे में सोच सकें. न्यूजलॉन्ड्री ने एबीपी न्यूज के इस रवैये पर "एबीपी न्यूज़ में छंटनी: नए गैंग का पुराने निजाम पर हमला" शीर्षक से स्टोरी प्रकाशित की है. इसी स्टोरी को न्यूजलॉन्ड्री, अंग्रेजी ने भी "Old guard scapegoated by new team’: 47 job cuts at ABP News, two channels shut down" शीर्षक से अनुवाद करके प्रकाशित किया है. आप इन्हें पढ़ते हैं तो न्यूजरूम के भीतर के दहलानेवाले कुछ और सच का सामना होगा.

आप सोचकर देखिए कि जिस न्यूज नेटवर्क के न्यूजरूम का यह हाल है, आपको लगता है कि वो इस देश में लोकतंत्र बहाल रहने की दिशा में पत्रकारिता करेंगे ? जिस नेटवर्क के भीतर का लोकतंत्र दम तोड़ रहा है, वहां के मीडियाकर्मियों में इस बात के लिए उत्साह बनेगा कि वो ख़ुद से उपर उठकर अपने देश के भीतर लोकतंत्र के सवालों से टकरा सकें ?

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सम्पादक

डॉ. लीना