मंदीप पुनिया और धर्मेन्द्र सिंह दोनों स्वतंत्र पत्रकार हैं
उर्मिलेश/ सिंघू बार्डर पर किसान आंदोलन से जुड़ी गतिविधियों को कवर कर रहे दो युवा पत्रकारों मंदीप पुनिया और धर्मेन्द्र सिंह को पुलिस-हिरासत में लिये जाने की खबर आ रही है. ये दोनों स्वतंत्र पत्रकार हैं और देश की कई प्रमुख पत्रिकाओं और न्यूज़ वेबसाइट के लिए नियमित रूप से लिखते हैं. सिंघू बार्डर से इनकी रिपोर्टिंग इतनी प्रामाणिक और भरोसेमंद रही है कि अन्य बडे मीडिया प्रतिष्ठानों के वरिष्ठ पत्रकार भी इनकी खबरें देखते-पढ़ते रहे हैं. मनदीप पुनिया शुरू से ही सिंघू बार्डर से नियमित रिपोर्टिंग करता आ रहा है.
क्या शासन और उसकी एजेंसियों ने अब रिपोर्टिंग को भी 'आपराधिक कारवाई' मान लिया है? अगर शासन या उसकी एजेंसियों को उन दोनों युवा पत्रकारों की रिपोर्टिंग से असहमति या आपत्ति है तो वे इसकी शिकायत प्रेस कौंसिल ऑफ़ इंडिया(PCI) में दर्ज करा सकती थीं लेकिन इन्हें हिरासत में लेना या इन्हें किसी गोपनीय स्थान पर रखना कानून और विधान के बिल्कुल उलट है. एक दौर में हमारे यहाँ ब्रिटिश हुकूमत थी. उसने सच्ची पत्रकारिता को आपराधिक कारवाई सा मान लिया था. क्या उस दौर की वापसी हो रही है?
मुझे लगता है, शासन अगर इन्हें तत्काल छोडने का आदेश नही देता तो देश की सर्वोच्च अदालत-सुप्रीम कोर्ट को स्वतः संज्ञान लेकर इस मामले में फौरन हस्तक्षेप करना चाहिए.