मीडिया विमर्श अपने दिसंबर -2013 के अंक के साथ आठवें साल में प्रवेश कर रही है। एक वैचारिक त्रैमासिक के रूप में मीडिया प्राध्यापकों,छात्रों और मीडिया प्रोफेशनल्स के बीच पत्रिका की एक खास पहचान बन चुकी है। पत्रिका का यह अंक भी भूमंडलीकरण के प्रभावों का आकलन कर रहा है। इस अंक थीम है - 'बदलाव के बाईस बरस।' यानि 1990 से 2012 के बीच मीडिया और समाज में आए परिवर्तनों का आकलन करना।
पिछला अंक भी इसी थीम पर था। इस अंक में प्रख्यात फिल्म निर्देशक श्याम बेनेगल, पत्रकार रामबहादुर राय, देशबंधु के प्रधान संपादक ललित सुरजन जैसे तीन दिग्गजों के साक्षात्कार हैं। इसके अलावा स्व. राजेंद्र यादव पर प्रख्यात आलोचक विजय बहादुर सिंह की एक खास टिप्पणी है जो उन्होंने विशेष तौर पर मीडिया विमर्श के लिए लिखी है। इसके साथ ही अंक में सर्वश्री अमीन सयानी, डा. रामगोपाल सिंह, प्रो. कमल दीक्षित, अनिल चमड़िया, अलका सक्सेना, आनंद प्रधान, वर्तिका नंदा, डा.श्रीकांत सिंह, किशोर वासवानी,डा. सुभद्रा राठौर, विनीत उत्पल, दीपा, शिरीष खरे, अमृता सागर, डा. मनोज चतुर्वेदी, अंकुर विजयवर्गीय, हर्षवर्धन पाण्डेय, अंशूबाला मिश्र, लोकेंद्र सिंह, अमलेंदु त्रिपाठी, अभिजीत वाजपेयी, डा. ममता ओझा के महत्वपूर्ण आलेख हैं। कमोटिडी कंट्रोल डाटकाम, मुंबई के संपादक कमल शर्मा का मीडिया छात्रों के बीच न्यू मीडिया पर दिया गया एक व्याख्यान भी इस अंक की उपलब्धि है।
मीडिया के बदलाव के बाईस बरस पर मीडिया विमर्श का सितंबर,2013 का अंक भी मीडिया के बदलाव के बाईस बरस (1990-2012) पर केंद्रित था। इसमें उदारीकरण और भूमंडलीकरण के बाद 1990 से 2012 के बीच मीडिया और समाज जीवन में आए बदलावों पर महत्वपूर्ण लेखकों की टिप्पणियां थी। अंक में अष्टभुजा शुक्ल का संपादकीय महत्वपूर्ण था। इसके अलावा समाजशास्त्री डा. रामगोपाल सिंह, डा.सी.जयशंकर बाबू, डा. नरेंद्र कुमार आर्य, संजय द्विवेदी, डा.सुशील त्रिवेदी, पी.साईनाथ, डा.हरीश अरोड़ा, बसंतकुमार तिवारी, संजय कुमार, फिरदौस खान, अनुपमा कुमारी, लीना, धीरेंद्र कुमार राय, ऋतेश चौधरी, के जी सुरेश, संजीव गुप्ता, परेश उपाध्याय के लेख मीडिया के बदलाव के बाईस बरस विषय थे।