लीना / साहित्य जगत की चर्चित मासिक पत्रिका ‘‘आजकल’’ का अक्टूबर 2013 का अंक चर्चे में है। “चौरी चौरा विद्रोह और स्वाधीनता संग्राम’’ पर सुभाष चन्द्र कुशवाहा का आलेख जहाँ इतिहास की ओर ले जाता है वहीं अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भारतीयों के विद्राही तेवर को रेखांकित करता है। इस अंक में दिनेश चन्द्र अग्रवाल का आलेख, ‘‘कंपनी काल के ब्रिटिश चिजेरों की नजर में हिन्दुस्तान’’ भी स्वाधीनता संग्राम की याद को ताजा कर जाता है। जी.एन.देवी ने ‘‘देशज भाषाएं : अस्तित्व का संकट’’, मदन केवलिया का व्यंग्य, ‘‘अनावश्यक पत्र व्यवहार न करें’’ और हिन्दी सिनेमा की पहली संगीतकार जोड़ी’’, प्रभावित करते हैं।
कहानियों में, बासठ वर्ष लंबी कविता, सारी ये रॉन्ग नंबर है, काग़ज का टुकड़ा, चार लघुकथाएं और कई रचनाकारों की कविताएं पाठकों का ध्यान खींचती है। आजकल में इस बार साक्षात्कार के तहत “ मंटो तुम कब आओगे” ? में नरेंद्र मोहन से मोहम्मद असलम परवेज की बातचीत है। बातचीत रोचक है और प्रसिद्ध लेखक नरेंद्र मोहन ने मंटो और उनके लेखन पर बेहतर ढंग से रौशनी डाली है।
इस बार पुस्तक समीक्षा में, डा.धर्मवीर की पुस्तक-“कबीर: खसम खुशी क्यों होय?, संजीव ठाकुर की पुस्तक-‘‘इस साज पर गाया नहीं जाता’’,उषा यादव का उपन्यास,‘‘स्वांग और निर्मला जैन की पुस्तक –“हिन्दी आलोचना का दूसरा पाठ’’ शामिल है। इसके अलावा और भी सामग्री है।
आजकल’’के संपादक कैलाश दहिया ने अपने संपादकीय ‘प्रसंगवश’ में कमजोर आदमी को केन्द्र बनाया है। प्रसंगवश.....के तेवर और उठे सवाल सही में सवाल छोड़ जाते हैं।
पत्रिका- आजकल
संपादक- कैलाश दहिया
वर्ष: 69, अंक: 6, माहः अक्टूबर 2013
संपादकीय पता: आजकल,प्रकाशन विभाग,कमरा नं-120,सूचना भवन,सी.जी.ओ.काम्प्लेक्स,लोदी रोड, नई दिल्ली-110003
फोन-011-24362915