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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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स्पष्ट अभिव्यक्ति ही सरोकार की पत्रकारिता : स्वामी निरंजनानंद

आचार्य लक्ष्मीकांत मिश्र की पुण्यतिथि पर सम्मान समारोह सह ‘‘ महात्मा गांधी व स्वामी सत्यानंद के विचार के परिप्रेक्ष्य में पत्रकारिता के सरोकार ’’ विषय पर संगोष्ठी 

मुंगेर/ बिहार के चर्चित पत्रकार आचार्य लक्ष्मीकांत मिश्र की पुण्यतिथि पर लक्ष्मीकांत मिश्र मेमोरियल फाउंडेशन नई दिल्ली और पत्रकार समूह मुंगेर द्वारा आयोजित समारोह में महात्मा गांधी और स्वामी सत्यानंद के विचारों के परिप्रेक्ष्य में पत्रकारिता के सरोकार पर संगोष्ठी महत्वपूर्ण रही.

इस संगोष्ठी की अहमियत इसलिए है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगातार हमले हो रहे हैं और लेखक पुरस्कार लौटा रहे हैं. बिहार का पत्रकारों के लिए घोषित सरकारी पुरस्कार फाइलों के बस्ते में धूल फांक रहा है. वैसे समय में एक पत्रकार की याद में विभिन्न क्षेत्रों में उपलब्धि हासिल किये पांच लोगों को पुरस्कृत तथा सम्मानित किये जाने का भी एक मायने है.

कार्यक्रम का शुभारंभ बिहार योग  विद्यालय के परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने दीप प्रज्वलित कर तथा उनके चित्र पर माल्यार्पण कर किया गया. आरंभ में देश के चर्चित पत्रकार रामबहादुर राय के संदेश को अजाना घोष ने पढ़ा. रामबहादुर राय ने अपने संदेश में कहा कि यह उम्मीद पैदा करती सूचना है कि आचार्य लक्ष्मीकांत मिश्र की याद में सरोकारी पत्रकारिता का आयोजन मुंगेर में हो रहा है. यह समय चौतरफा मूल्यों में गिरावट का है, पत्रकारिता में भी. ऐसा नहीं हो सकता है कि पत्रकारिता अपने समय की इस प्रवृति से परे हो जाय. यदि ऐसा होता है तो यह एक चमत्कार होगा. ऐसे समय में लक्ष्मीकांत मिश्रा को याद करने में अपना एक खास महत्व है. उनकी पत्रकारिता अपने जीवनकाल में निरंतर ऐसी खोज की ओर अग्रसर थी. जिसमें लोक हित लक्ष्य होता था. ऐसी पत्रकारिता में सच को जानने की कोशिश चलती थी. जानना सहज नहीं होता है उसके लिए प्रयास करना पड़ता है. कई बार प्रयास थका देने वाला भी होता है. हमेशा सफलता हाथ नहीं लगती है. निराशा के क्षण भी आते हैं. फिर भी जो व्यक्ति एक पत्रकार के रूप में जानने में लगा रहता है, वह इसकी परवाह नहीं करता है कि सफलता हाथ लगती है या नहीं. जानने और मानने में जमीन-आसमान का फर्क है. बिना जाने मानने वाला ईमानदार नहीं हो सकता. जानने के बाद न मानने वाला भी ईमानदार नहीं हो सकता. जानना एक घटना भी हो सकती है. वह एक तथ्य ज्ञान का साक्षात्कार भी हो सकता है. कोई पत्रकार अपने काम में जानने में लगा होता है. जो जान पाता है वही लोगों को बता पाता है. यही सार्थक पत्रकारिता है. आज के समय में क्रम पलट गया है. बिना जानने-मानने वाले पत्रकार अधिक हुए. वे जो मानते हैं वे दूसरे भी माने सक्रिय हो गये हैं. फिर पत्रकारों के सामने रौल मॉडल यानी आदर्श हो. यही सवाल है जो आयोजन से हल हो सकता है. पत्रकार की भूमिका चाहे जो हो एक निरंतरता हमेशा बनी रहेगी. इन दिनों एक ज्ञान बड़े जोर से फैलाया जा रहा है कि हमारा वास्ता उस पत्रकारिता से नहीं है जिसे स्वाधीनता संग्राम में अपनाया गया. इसे एक तर्क पर खड़ा किया जा रहा है. देश आजाद है और आजादी के अनेक दशक हो गये तो उस समय के पत्रकारिता के आदर्श पर चलने की क्या जरूरत. यह तर्क बहुत खोखला है. इसे जितना जल्दी समझ सकेंगे उतनी ही जल्दी हमारी भटकन खत्म होगी. आजादी के आंदोलन की पत्रकारिता में समग्रता थी. इसलिए उसे आदर्श मानकर भारत में पत्रकारिता को अपनी भूमिका तय करनी चाहिए. यही बात आचार्य लक्ष्मीकांत मिश्र को याद करते हुए हमें समझने की जरूरत है.

संगोष्ठी को संबोधित करते हुए अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त योग संस्थान बिहार योग विद्यालय के परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने कहा कि पत्रकारिता चिंतन की अभिव्यक्ति है. चिंतन से ही मनुष्य लक्ष्य निर्धारित करता है और समाज के उत्थान में अपनी भूमिका निभाता है. महात्मा गांधी एवं परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने अपने चिंतन के माध्यम से ही समाज को दिशा दी. सूचना  भवन के प्रशाल में आयोजित ‘‘ महात्मा गांधी व स्वामी सत्यानंद के विचार के परिप्रेक्ष्य में पत्रकारिता के सरोकार ’’ विषय पर अपने उद्गार व्यक्त करते हुए स्वामी निरंजनानंद ने कहा कि गांधी जी ने अपने चिंतन के माध्यम से स्वराज को आंदोलन बनाया और पूरी दुनिया को एक संदेश दिया. जबकि स्वामी सत्यानंद ने आध्यात्मिक चिंतन के माध्यम से पूरी दुनिया में योग को जनसाधारण तक पहुंचाया. उन्होंने समाज के अंतिम व्यक्ति की बात की और उनके उत्थान के लिए कार्य किये.  उन्होंने कहा कि स्वामी सत्यानंद जी का चिंतन न सिर्फ आध्यात्मिक बल्कि  सामाजिक चिंतन था. हम शांति को स्थापित करना चाहते हैं लेकिन इसके लिए जरूरी है अशांति के कारणों का निराकरण करना. अब जहां पत्रकारिता सोशल मीडिया के माध्यम से व्यापक स्तर पर फैल चुका है वहां संगठित पत्रकार की भूमिका है कि वे बेहतर चिंतन के माध्यम से समाज को नई दिशा दे.

इससे पूर्व संगोष्ठी में विषय प्रवेश कराते हुए वरिष्ठ पत्रकार कुमार कृष्णन ने कहा कि महात्मा गांधी व स्वामी सत्यानंद का पत्रकारिता के दृष्टिकोण से काफी एकरूपता है. स्वामी  सत्यानंद का पत्रकारिता से गहरा लगाव रहा. वे स्वामी शिवानंद के आश्रम में निकलने वाले हस्त लिखित पत्रिका का जहां संपादन किये थे. वहीं सुमित्रानंदन पंत के साथ मिल कर अनुगामी पत्रिका का संपादन किया था. उन्होंने कहा कि स्वामी जी महात्मा गांधी के विचार से ही जुड़े रहे. यहां तक कि वे वरधा व साबरमती आश्रम  भी  गये थे. दिल्ली जनसत्ता के महानगर संपादक प्रसून लतांत ने कहा कि पत्रकारिता का क्षेत्र व्यापक रहा है और अब सिटीजन जर्नलिज्म का दौर शुरू हो गया है. इस परिस्थिति में जरूरत है कि गांधी और स्वामी सत्यानंद के पत्रकारिता को समझने की.समारोह की अध्यक्षता सूचना एवं जनसंपर्क के निदेशक कमलाकांत उपाध्याय ने की. कार्यक्रम का संचालन कुमार कृष्णन ने किया.

समारोह को शिक्षक संघ के वयोवृद्ध नेता हर्ष नारायण झा, मुंगेर चैंबर आफ कामर्स के अध्यक्ष राजेश जैन, वरिष्ठ साहित्यकार अतुल प्रभाकर, पत्रकार प्रशांत, अवधेश कुंवर, किशोर जायसवाल, शिवशंकर सिंह पारिजात, राजेश तिवारी, मीणा तिवारी ने भी संबोधित किया.

इस अवसर पर आचार्य लक्ष्मीकांत मिश्र मेमोरियल फाउंडेशन नई दिल्ली की ओर से विभिन्न क्षेत्रों के पांच विभूतियों को परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने सम्मानित किया. साहित्य सेवा के क्षेत्र में दिल्ली के वरिष्ठ साहित्यकार अतुल प्रभाकर, समाजसेवा के क्षेत्र में भागलपुर की अमिता मोइत्रा एवं वंदना झा, पत्रकारिता के क्षेत्र में राणा गौरी शंकर तथा पर्यावरण के क्षेत्र में अनिल राम को स्मृति चिह्न, प्रशस्ति पत्र एवं शाल देकर सम्मानित किया गया. इसका चयन एक निर्णायक समिति ने किया था. जिसमें प्रसून लतांत, डॉ रामनिवास पांडेय, मनोज सिन्हा, अमर मिश्रा और डॉ नृपेंद्र प्रसाद वर्मा थे. इस अवसर पर एक कवि सम्मेलन का भी आयोजन किया गया. कवि सम्मेलन में अनिरुद्ध सिन्हा, अशोक आलोक, विजय गुप्त एवं विकास सहित अन्य कवियों ने अपनी रचनाओं का पाठ कर भाव तथा बोध को अभिव्यक्ति प्रदान की.

आनंद की रिपोर्ट 

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सम्पादक

डॉ. लीना