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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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सत्य को यथार्थ में प्रस्तुत करना फोटोग्राफी का उद्देश्य

डिजिटल फोटोग्राफी और इमेज एडिटिंग कार्यशाला संपन्न कार्यशाला के अंतिम दिन वितरित किये गए प्रमाण पत्र

लखनऊ. भारत सरकार के विज्ञान और प्रद्योगिकी मंत्रालय के नेशनल साइंस एंड टेक्नालोजी इंटर्नशिप डेवलेपमेंट बोर्ड कार्यक्रम के तहत पिछले ढेढ़ महीने से चल रही डिजीटल फोटोग्राफी एंड इमेज एडिटिंग कार्यशाला सोमवार को संपन्न हो गई. उक्त कार्यशाला का आयोजन इंटर्नशिप डेवलेपमेंट इंस्टिट्यूट आफ इंडिया की उत्तर परिमंडल लखनऊ इकाई कार्यालय और लखनऊ पत्रकारिता एवं जनसंचार संस्थान जियामऊ के संयुक्त आयोजन में किया गया. समापन अवसर पर मुख्य अथिति के रूप में उप निदेशक कृषि (भूमि संवर्धन) उत्तर प्रदेश डॉ एस के सिंह, अध्यक्षता एचएएल के ईजीनियर रामनिवास जैन, ईडीआई के लखनऊ परिमंडल प्रबंधक रमाशंकर त्रिपाठी, लखनऊ जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान के निदेशक अशोक कुमार सिन्हा, भी उपस्थित रहे.

समापन समारोह और प्रमाण पत्र वितरण के अवसर पर अथिथियों का स्वागत रमाशंकर त्रिपाठी द्वारा किया गया. इस अवसर पर छात्रों को संबोधित करते हुए श्री सिन्हा ने कहा की इसमें तीन फोटो शिक्षकों सीताराम, देशदीपक और आदर्श कुमार द्वारा यह 6 सप्ताह तक चलने वाला प्रशिक्षण प्रदान किया. इस अवसर पर श्री जैन ने भी प्रशिक्षणार्थियों को सम्बोधित करते हुए सभी को भविष्य निर्माण के लिए तैयार रहने हेतु शुभकामनाएं दीं.

इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए डॉ सत्येन्द्र कुमार सिंह ने कहा कि अगर सत्य को जानना हो तो इस व्यवसाय से अच्छा कुछ हो भी नहीं सकता है. वास्तु जैसी देखी जाय जहां पर देखी जाय उसको वैसे ही प्रस्तुत करना ही सत्य है फोटोग्राफी कभी असत्य नहीं बोल सकती है. आज हर समस्या को फोटोग्राफी से चैलेन्ज किया जा सकता है. व्यवसायिक शिक्षा के तीन ही  उद्देश्य हो सकते हैं सम्यक रोजगार, अच्छा इंसान बनने और खुद को पहचाने. यह विधा भी बहुत गंभीर अस्त्र का रूप धारण कर सकती है. इसका उपयोग आप लोग समाज के हित में परिवार के हित में और राष्ट्र के रूप में कर सकते हैं. हमें आजादी 90 साल के संघर्ष के बाद हासिल हुई. अभी भी हमें आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक आज़ादी हासिल करना बाक़ी है. लार्ड मैकाले ने इस देश की शिक्षा को समूल नष्ट करने का सफल प्रयास किया. लार्ड मैकाले ने हमारी सांस्कृतिक विरासत और भारतीय जीवन प्रणाली पर आधारित शिक्षा प्रणाली को समाप्त करने की सिफारिस की थी. उसने कहा की हम अपने मकसद में सफल होंगे. मित्रों आज 180 साल बाद वैसे ही हालात एकदम सामने हैं. आज भी हमारे देश के 80 फीसदी लोगों को समुचित भोजन, 20 फीसदी को भोजन भी नहीं मिलता है.

हमारा देश भ्रष्टाचार के मामले में 143वें पायदान पर है. पूरी दुनिया में हम वैज्ञानिक और विशेषज्ञ आपूर्ति करते हैं. आज हिन्दुस्तान और इंडिया के बीच में संघर्ष चल रहा है. आर्थिक आज़ादी हम अपनी खेती बाड़ी को प्रमोट करके ही हासिल कर सकते हैं. हम आज ज़मीन गिरवी रखकर भी नौकरी के पीछे भागते नज़र आ रहे हैं. अमीर लोग भी गरीबों के बारे में सोचे और संरक्षकत्व के सिद्धांत की ओर सोचा जाय. सामाजिक आज़ादी शिक्षा के स्तर को ऊंचा करने से ही दूर होगी. जातिवाद की जकड़न शिक्षित बनाकर ही दूर किया जा सकता है. नैतिक आज़ादी को अपनी संस्कृति, अपनी शिक्षा को लागू करके ही किया जा सकता है. गांधीजी ने भी 27 जनवरी 1950 को कांग्रेस को लिखा था जिसमें भी उन्होंने सांस्कृतिक, आर्थिक और सामाजिक आज़ादी हासिल करने की जरुरत बताई थी. अब हम सबको सकारात्मकता के साथ यह कहना पड़ेगा कि उत्तरदायी नागरिकता, राष्ट्रीय चरित्र और राजनीतिक दृढ इच्छाशक्ति को नैतिक मूल्यों में समाहित करना पड़ेगा. हमारा लक्ष्य इन तीनों प्रकार की गुलामी से आज़ाद होना है. भूखमुक्त भारत, जातिमुक्त भारत और भ्रष्टाचारमुक्त भारत के सिद्धांत इसके लिए बेहतर साधन हो सकते हैं. निजी संग्रह के स्थान पर हमें लोक संग्रह के रूप में सोचना चाहिए. आज हमारे  आन्दोलन को जरूरत है भूख, जाति और भ्रष्टाचारमुक्त भारत जैसे नारे. सत्ता का हस्तांतरण सरकार से जनता को किया जाय. आज योग्य होना भी ज्यादा खतरनाक होता जा रहा है. बुद्धिजीवियों की उदासीनता समाज के लिए ज्यादा नुकसान पहुचा सकती है. गांधीजी ने सत्याग्रह और सर्वोदय का नारा दिया था आज धर्मोदय और त्यागार्चना किये जाने की आवश्यकता है. व्यक्ति के अन्दर त्याग और सेवा अनिवार्यतः होनी चाहिए. विवेकानंद ने कहा था कि त्याग और सेवा हमारे भारत के जुड़वा आदर्श हैं. गांधीजी का बीस सूत्रीय कार्यक्रम की जगह हम पांच सूत्रीय एजेंडे का उपयोग कर रहे हैं प्रार्थना सूत्र, पढाई सूत्र, सफाई सूत्र, सेवा और प्रेम सूत्र. मन को साफ़ रखने की जरुरत है. मनुष्य के मन 24 विचार प्रतिघंटे आते हैं जो हम सोचते हैं हम वही होते हैं. इस सिद्धांत के पालन करने के लिए भी एक निर्धारित प्रक्रिया या विधि है जिसके लिए हम स्वयं से शुरू करें, आज से शुरू करें और छोटे से ही शुरू करे. एक अच्छा व्यक्ति ही अच्छा हिन्दू और अच्छा नागरिक हो सकता है. हम खुद भोजन बर्बाद नहीं करेंगे, भ्रष्टाचार नहीं करेंगे और खुद ही समान्य जीवन शैली जीने की शुरूवात करूंगा. जितनी आवश्यकता हो उतना ही उपयोग कीजिये. दिन का एक घंटा, महीने का एक दिन और कमाई के एक फीसदी भाग को बचाकर मातृभूमि के लिए अर्पित करें. इसके लिए किसान शक्ति, युवा शक्ति और मातृ शक्ति तीनों को संयुक्त रूप से ही देश के समुचित विकास में योगदान देना होगा. किसान, युवा और मातृ शक्ति की उपेक्षा देश के लिए आत्मघाती कदम साबित होगा देश को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए हमें किसानों को वरीयता, युवाओं को काम और मातृ शक्ति को सम्मान देने की ही महती आवश्यकता है.

इस अवसर प्रशिक्षण लेने वालों में प्रमुख रूप से ओमशंकर पाण्डेय, विजय प्रताप सिंह, लाल अभिनेन्द्र सिंह, कृष्ण कुमार, आशीष राघुवंशी, राजकुमार मौर्या, चांदनी गुप्ता, अखिलेश कुमार सिंह, एकता सिन्हा, रचना सिंह राठौर, माता प्रसाद चतुर्वेदी, नरसिंह नारायण पाण्डेय, उमाकांत, संग्राम सिंह वर्मा, अनुराग पाण्डेय, दुर्गेश शुक्ला, नीरज कुमार श्रीवास्तव और अतुल कुमार सिंह सहित अन्य दर्जनों छात्र उपस्थित रहे.

 

 

 

 

 

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सम्पादक

डॉ. लीना