नई दिल्ली/ सूचना और प्रसारण मंत्रालय के सचिव श्री अमित खरे ने कहा है कि मीडिया और इंटरटेनमेंट क्षेत्र के नियमन के लिए स्व-नियमन ही बेहतर तरीका है। उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी के विकास व परस्पर संबंध को देखते हुए सरकार क्षेत्र द्वारा ही स्व-नियमन को बेहतर विकल्प मानती है। सरकार निगरानी करना नहीं चाहती है। चैनलों की बढ़ती संख्या को देखते हुए प्रशासनिक रूप से यही विकल्प सुसंगत भी है। श्री खरे एक मीडिया कंपनी द्वारा मुंबई में आयोजित एक सम्मेलन के परिचर्चा सत्र में बोल रहे थे। परिचर्चा का विषय था- ‘नीति निर्माताओं से बातचीत- नये प्लेटफार्म के लिए नई नीतियां: नये व उभरते हुए मीडिया के लिए नियमन प्रारूप का निर्माण।’
सचिव श्री खरे ने कहा कि मीडिया और इंटरटेनमेंट उद्योग भारत के सबसे तेजी से बढ़ने वाले उद्योगों में एक है। यह क्षेत्र रोजगार सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसने 10 लाख लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया है। इस क्षेत्र में खर्च किए जाने वाले 1 रुपये का गुणात्मक प्रभाव 2.9 है।
श्री अमित खरे ने कहा कि ऐतिहासिक रूप से मीडिया का नियमन, माध्यम या प्लेटफॉर्म के अनुसार ही विकसित हुआ है। यह सामग्री पर आधारित नहीं होता है। पारंपरिक अखबार और टीवी चैनल इसी प्रकार के नियमन के दायरे में आते हैं, लेकिन इंटरनेट आधारित मीडिया सामग्री नियमन के दायरे से बाहर रह जाते हैं। सरकार इस मामले में खुले दिमाग से सोचती है। उन्होंने कहा कि एक सवाल बार-बार चर्चा में आता है कि क्या हमें उन मीडिया माध्यमों के लिए नियम बनाने चाहिए जो वर्तमान में नियमन के दायरे से बाहर हैं? क्या यह बेहतर नहीं होगा कि पारंपरिक क्षेत्रों के नियमों की संख्या में कमी लाई जाए? इसी से संबंधित एक अन्य प्रश्न है कि कितनी मात्रा में या किस स्तर तक नियमन की आवश्यकता है? इसे किस तरह लागू करना है, यह एक अन्य विषय है। सचिव श्री खरे ने कहा कि एफडीआई उदारीकरण का कार्य जारी है, हालांकि एकाधिकार को रोकने की जरूरत है।
सिस्को के आईओटी विभाग (दक्षिण एशिया-भारत) के प्रबंध निदेशक श्री आलोक श्रीवास्तव, नीशिथ देसाई एसोसिएट्स की सीनियर पार्टनर सुश्री गौरी गोखले तथा सोनी पिक्चर्स इंटरटेनमेंट इंडिया के एमडी श्री विवेक कृष्णानी परिचर्चा के अन्य पैनल सदस्य थे। परिचर्चा का संचालन केपीएमजी इंडिया के मीडिया और टेलीकॉम के पार्टनर श्री चैतन्य गोगीनेनी ने किया।