मनोज कुमार/ कोई कहे पीपी सर, कोई कहे बाबा और जाने कितनों के लिए थे पीपी. एक व्यक्ति, अनेक संबोधन और सभी संबोधनों में प्यार और विश्वास. विद्यार्थियों के लिए वे संजीवनी थे तो मीडिया के वरिष्ठ और कनिष्ठ के लिए चलता-फिरता पीआर स्कूल. पहली बार जब उनसे 25 बरस पहले पहली बार पुष्पेन्द्रपाल सिंह उर्फ पीपी सिंह से मुलाकात हुई तो उनकी मेज पर कागज का ढेर था. यह सिलसिला मध्यप्रदेश माध्यम में आने के बाद भी बना रहा. अफसरों की तरह कभी मेज पर ना तो माखनलाल में बैठे और ना ही माध्यम में. हमेशा का…
भीड़ में अकेले पुष्पेंद्र
जब सचमुच पत्रकारिता ही होती थी
जाना नैयर साहब का
दिनेश चौधरी/ सड़क के एक छोर पर कॉफी हाऊस था और दूसरी ओर नया-नया 'दैनिक भास्कर'। अखबार के दफ्तर में किसी ने बताया कि नैयर साहब कॉफी हाऊस में मिलेंगे। जोश और जुनून में मैंने जबरदस्ती एक अखबार में इस्तीफा दे दिया था और नई नौकरी की तलाश में था। नैयर साहब कुछ मित्रों की सोहबत में गप लड़ा रहे थे। मैंने नमस्ते की और आने का मकसद बताया। कप्पू उर्फ निर्भीक वर्मा का हवाला दिया कि उन्होंने ही आपसे मिलने को कहा है। नैयर साहब ने फैसला लेने में…
‘मीडिया को जो लोग चला रहे हैं, वे दरअसल मीडिया के लोग नहीं हैं’
संत समीर/ आजकल आमतौर पर जिस तरह के साक्षात्कार हमें पढ़ने को मिलते हैं, यदि उनके भीतर की परतों को पहचानने की कोशिश करें तो कम ही साक्षात्कार मिलेंगे जो सही मायने में सच का साक्षात् करा पाते हों। आत्मश्लाघा इस दौर के साक्षात्कारों की आम बात है। असुविधाजनक प्रश्नों से बचकर निकल लेना या गोलमोल उत्तरों का आवरण चढ़ाकर उन्हें और उलझाकर छोड़ देना विवादों से बचे रहने का सुविधाजनक तरीक़ा बन गया है। इस प्रवृत्ति से इस बात का भी अन्दाज़ा लगता है कि हमारे तमाम ऊँची ख्याति के लोगों की दृष्टि कि…
वक्त के साथ बदलते मीडिया से साक्षात्कार
डॉ. विनीत उत्पल/ वक्त बदल रहा है, मीडिया बदल रहा है, मीडिया तकनीक बदल रही है, मीडिया के पाठक और दर्शक की रुचि, स्थिति और परिस्थिति भी बदल रही है। ऐसे में मीडिया अध्ययन, अध्यापन और कार्य करने वालों को खुद में बदलाव लाना आवश्यक है। इसके लिए मीडिया के मिजाज को समझना और समझाना आवश्यक है। “जो कहूंगा, सच कहूंगा” नामक पुस्तक इस दिशा में कार्य करने में सक्षम है।…
पत्रकार और पत्रकारिता से जुड़े सवालों के उत्तरों की तलाश
अजय बोकिल/ पुस्तक ‘जो कहूंगा सच कहूंगा’ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली (आईआईएमसी) के महानिदेशक, पत्रकार, शिक्षाविद प्रो. (डाॅ.) संजय द्विवेदी के साक्षात्कारों का ऐसा संकलन है, जो उनकी ‘मन की बात’ का परत दर परत खुलासा करता है। यह मीडिया का एक मीडिया विशेषज्ञ के साथ सार्थक संवाद है। पुस्तक में शामिल ज्यादातर इंटरव्यू उनके आईआईएमसी महानिदेशक बनने पर लिए गए हैं। लेकिन प्रकारांतर से यह द्विवेदीजी की प्रोफेशनल यात्रा का दस्तावेज है।…
खेल पत्रकारिता की बारीकियां सिखाती एक पुस्तक
लोकेन्द्र सिंह/ “खेल में दुनिया को बदलने की शक्ति है, प्रेरणा देने की शक्ति है, यह लोगों को एकजुट रखने की शक्ति रखता है, जो बहुत कम लोग करते हैं। यह युवाओं के लिए एक ऐसी भाषा में बात करता है, जिसे वे समझते हैं। खेल वहाँ भी आशा पैदा कर सकता है, जहाँ सिर्फ निराशा हो। यह नस्लीय बाधाओं को तोड़ने में सरकार की तुलना में अधिक शक्तिशाली है”। अफ्रीका के गांधी कहे जानेवाले प्रसिद्ध राजनेता नेल्सन मंडेला के इस लोकप्रिय कथन के साथ मीडिया गुरु डॉ. आशीष द्विवेदी अपनी पुस्तक ‘खेल पत्र…
इतनी जल्दी क्या थी दोस्त इस दुनिया को छोड़कर जाने की
वरिष्ठ पत्रकार संजीव प्रताप सिंह का निधन, स्मृति शेष
लिमटी खरे/ सुबह साढ़े सात बजे के लगभग जब अखबार बांच रहे थे, उसी दौरान मोबाईल पर घंटी बजी, मित्र संजीव प्रताप सिंह का फोन था। छूटते ही बोले ‘भैया मेरे राखी के बंधन को . . ., उसके बाद चिर परिचित ठहाका। इसके उपरांत बचपन की ढेर सारी यादों पर लगभग आधा घंटा चर्चाएं होती रहीं। नागपुर से रेलवे के वरिष्ठ पायलट अनिल श्रीवास्तव आए थे, उनके साथ दोपहर 12…
मीडिया साहित्य की और रचनायेँ--
- पत्रकारिता से साहित्य में चली आई ‘न हन्यते’
- पत्रकारिता की शक्ति को बताने वाली दस्तावेजी पुस्तक है ‘रतौना आन्दोलन : हिन्दू-मुस्लिम एकता का सेतुबंध’
- पत्रकारिता से कई अपेक्षा रखती डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' की पुस्तक 'पत्रकारिता और अपेक्षाएँ"
- खबरों के व्यापार में
- आत्मीयता से ओत-प्रोत स्मृतियां
- एक राष्ट्रवादी पत्रकार का यूं चले जाना!
- अपने तेवर पर कायम जन मीडिया
- सीरियस खबरें !
- समकालीन भारत को समझने की कुंजी है ‘भारतबोध का नया समय’
- राजनीति का संदर्भ ग्रंथ है “लोकतंत्र का स्पंदन”
- रेडियो प्रसारण का निजीकरण
- रचना, सृजन और संघर्ष से बनी थी पटैरया की शख्सियत
- बेमिसाल शिक्षक और जनसरोकारों के लिए जूझने वाली योद्धा थीं वे
- प्रो.कमल दीक्षितः उन्होंने हमें सिखाया जिंदगी का पाठ
- विमल थोराट और दो दलित स्त्रियों का चिंतन
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- नहीं रहे वेद प्रताप वैदिक
- भारत की 'स्पीड' और 'स्केल' को बढ़ा रही है नारी शक्ति : प्रो. द्विवेदी
- यूट्यूबर जब खुद को पत्रकार समझने लगे तो वो खबर बताते नहीं,बनाने लगते हैं...
- भीड़ में अकेले पुष्पेंद्र
- कृष्ण नागपाल को बी.बी. पराडकर पत्रकारिता पुरस्कार
- राकेश शर्मा को पं. बृजलाल द्विवेदी स्मृति अखिल भारतीय साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान
- उपयोगिता और आवश्यकता के आधार पर बढ़ती हैं भाषाएं :प्रो. द्विवेदी
- राजेश मल्होत्रा अब पीआईबी के प्रधान महानिदेशक
- दुनिया को देखने का नजरिया सिखाती है फोटोग्राफी : प्रो. द्विवेदी
- पत्रकार माधो सिंह को डॉक्टरेट की उपाधि
- आईआईएमसी से निकले हैं इंडियन मीडिया के ग्लोबल लीडर्स : प्रो. द्विवेदी
- नित नई मूर्खता का प्रर्दशन मीडिया के लिए रोज की बात
- भारतीय भाषाओं पर आधारित होगा जीवन और चिंतन, तभी आएगा स्वराज : प्रो. द्विवेदी
- माधवन साहित्य परिचर्चा सह राष्ट्रीय कवि सम्मेलन का आयोजन
- आपका भरम कि आप सोशल मीडिया का उपयोग कर रहे, हकीकत-आपका इस्तेमाल हो रहा
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Md ali khanNovember 24, 2022
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AnonymousNovember 8, 2022
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October 2, 2022
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September 4, 2022
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कैलाश दहियाJuly 12, 2022
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Shambuk AnmolJuly 11, 2022
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V K SharmaJune 18, 2022
सम्पादक
डॉ. लीना