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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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समाज की धड़कन है जनसम्पर्क

जनसम्पर्क दिवस, 21 अप्रैल पर विशेष

मनोज कुमार/ अंग्रेजी के पब्लिक रिलेशन को जब आप अलग अलग कर समझने की कोशिश करते हैं तो पब्लिक अर्थात जन और रिलेशन अर्थात सम्पर्क होता है जिसे हिन्दी में जनसम्पर्क कहते हैं. रिलेशन अर्थात संबंधों के बिना समाज का तानाबाना नहीं बुना जा सकता है और इस दृष्टि से पब्लिक रिलेशन का केनवास इतना बड़ा है कि लगभग सभी विधा उसके आसपास या उसमें समाहित होती हैं. पब्लिक रिलेशन को लेकर भारत में आम धारणा है कि यह एक किस्म का सरकारी का काम होता है या सरकारी नौकरी पाने का एक जरिया होता है. कुछ लोग पब्लिक रिलेशन को जर्नलिज्म से अलग कर देखते हैं. वास्तविकता यह है कि वह भारत की सोसायटी हो या दुनिया के किसी देश की सोसायटी, इन्हें जीवंत रखने के लिए जर्नलिज्म जितना जरूरी है, उतना ही पब्लिक रिलेशन. हमारा मानना है कि सोसायटी एक नदी है और पब्लिक रिलेशन तथा जर्नलिज्म इस नदी के दो पाट हैं. दोनों साथ साथ चलते हैं लेकिन आपस में कभी मिल नहीं पाने की सच्चाई जितनी है, उतनी ही सच्चाई यह है कि नदी के अविरल बहने के लिए दो पाटों का होना जरूरी है. ठीक उसी तरह सोसायटी की जीवंतता के लिए पीआर और जर्नलिज्म दोनों का सक्रिय होना जरूरी है. 

पब्लिक रिलेशन और जर्नलिज्म के मध्य एक महीन सा विभाजन है. सही मायने में जर्नलिज्म के नए स्टूडेंट को पहले पीआर पढऩा और सीखना चाहिए. बहुतेरे लोग इस बात से असहमत हो सकते हैं कि यहां पर पीआर और जर्नलिज्म का घालमेल किया जा रहा है लेकिन जब आप बारीकी से जांच करेंगे तो पाएंगे कि एक कामयाब जर्नलिस्ट बनने के पहले एक कामयाब पब्लिक रिलेशन ऑफिसर होना जरूरी है. पीआर की बात करें या जर्नलिज्म की, दोनों की बुनियादी जरूरत है सोसायटी से सम्पर्क बनाये रखना और सोसायटी से सम्पर्क कैसे बनाया रखा जा सकता है यह सबक पब्लिक रिलेशन के सेक्टर में जाकर बखूबी सीखा जा सकता है. जर्नलिस्ट के लिए किसी खबर को प्राप्त करने के लिए, उसे डेवलप करने के लिए सोर्स बनाने का सबक पढ़ाया जाता है. सोर्स कैसे डेवलप हो और उनसे हमारा सम्पर्क कैसे हो, इसके लिए पीआर सीखना होता है. एक अच्छा पीआरओ, एक अच्छा जर्नलिस्ट हो सकता है लेकिन एक अच्छा जर्नलिस्ट एक अच्छा पीआरओ हो, यह अपवाद ही होता है. 

जनसम्पर्क (पब्लिक रिलेशन्स) का सीधा अर्थ है ‘जनता से संपर्क रखना’। जनसम्पर्क एक प्रक्रिया है जो एक उद्देश्य से व्यक्ति या वस्तु की छवि, महत्व एवं विश्वास को समूह अथवा समाज में स्थापित करने में सहायक होती है। जनसंचार के विभिन्न उपकरणों के माध्यम से समाज या समूह से जीवन्त सम्बन्ध बनाने में यह सेतु का कार्य करती है। जनसंपर्क, संचार और सम्प्रेषण का एक पहलू है, जिसमें किसी व्यक्ति या संगठन तथा इस क्षेत्र से संबंधित लोगों के बीच संपर्क स्थापित किया जाता है। इस प्रकार यह सेवा लेने वालों तथा सेवा देने वालों के बीच एक सेतु का काम करता है। यह एक द्विपक्षीय कार्रवाई है, जिसमें सूचनाओं तथा विचारों का आदान-प्रदान होता है।

एडवर्ड एल.बर्जेल के अनुसार ‘जनसम्पर्क का उद्देश्य व्यक्ति, समुदाय और समाज में परस्पर एकीकरण है। प्रतिस्पर्धापूर्ण जीवन-प्रणाली में अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए हमें एक-दूसरे की भावनाओं को समझने और आदर करने की आवश्यकता होती है। जनसम्पर्क व्यक्ति और समाज में समायोजन करने और जन भावनाओं को मुखरित करने का एक साधन है।’

यह बात भी स्पष्ट है कि पब्लिक रिलेशन और जर्नलिज्म की अपनी अपनी सीमा है. पब्लिक रिलेशन में इमेज बिल्डिंग का काम प्राथमिक होता है वहीं जर्नलिज्म में छिपे हुए तथ्यों और घटनाओं को बेनकाब करना प्राथमिक होता है. दोनों की अपनी मर्यादा है. पब्लिक रिलेशन ऑफिसर संबंधित संस्थान, प्रोडक्ट की कमियों को बाहर नहीं आने देता है बल्कि सुविचारित ढंग से वह इन कमियों को इस तरह स्टेबलिस करता है कि वह प्रोडक्ट मानक स्तर से कहीं बेहतर है. पब्लिक रिलेशन ऑफिसर कुटिल ना होकर कुशल होता है. दक्ष होता है और वह अपनी संस्थान के लिए इमेज बिल्डिंग का काम करता है.पब्लिक रिलेशन ऑफिसर की आवश्यकता शासकीय संस्थानों के साथ साथ निजी क्षेत्रों में बनी हुई है. पब्लिक रिलेशन ऑफिसर का पद बेहद महत्वपूर्ण होता है. शासकीय सेवाओं, खासकर भारतीय और राज्य सूचना सेवाओं में कार्यरत पब्लिक रिलेशन ऑफिसर को सरकार का पिट्ठू कहा जाता है. यह इमेज पब्लिक रिलेशन ऑफिसर की प्रायवेट सेक्टर में भी है लेकिन यहां उसका सीधा वास्ता जर्नलिस्ट के बजाय मीडिया मैनेजमेंट से होता है इसलिए वह कुछ हद तक बचा रहता है. जनसम्पर्क के लिए जनसंचार और जनसंचार के लिए जनसम्पर्क का निर्देशन अत्यधिक आवश्यक है। यदि जनसम्पर्क के मौखिक, मुद्रित, श्रृव्य तथा इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों का प्रयोग विज्ञान की देन है, तो जनसम्पर्क वह कला है जो इन माध्यमों का उपयोग प्रचार कार्य करने के लिए करती है ओर सदैव लक्ष्य तक पहुंचने का प्रयास करती है।  

पब्लिक रिलेशन ऑफिसर की भूमिका को  विस्तार से समझने के लिए सोसायटी में प्रत्येक दशक के अंतराल में सोसायटी में होने वाले कई बड़े परिवर्तन को देखना और समझना होगा. खासतौर पर जब हम लाईफस्टाइल की बात करें, बिजनेस की बात करें या लोगों से जुडऩे और संवाद की बात करें तो पीआर अर्थात पब्लिक रिलेशन का अहम रोल होता है. इसलिए पीआर को सोसायटी की हार्टबीट कहना अनुचित नहीं होगा. हमारे जीवन में बदलाव में पब्लिक रिलेशन ऑफिसर की भूमिका महत्वपूर्ण होती है क्योंकि वह अकेला पीआर नहीं देखता है बल्कि सोसायटी का मनोविज्ञान समझता है. वह सोसायटी की जरूरत को समझता है और इस अपनी इस समझ को वह सोसायटी की जरूरत के अनुरूप अनिवार्य बना देता है. ऐड केम्पन में पब्लिक रिलेशन ऑफिसर की खास भूमिका होती है. पब्लिक रिलेशन ऑफिसर अपनी कम्पनी के प्रोडक्ट के अनुरूप टारगेट आडियन्स चुन लेता है और वह उनकी रूचि और आवश्यकता के अनुरूप ऐड केम्पन तैयार करता है. खबरें बनाता है और अपने प्रोडक्ट और कम्पनी की इमेज बिल्डिंग करता है. अमूल के प्रोडक्ट के ऐड कैम्पन आपको रोज ताजा रखते हैं क्योंकि वह स्थूल ऐड केम्पेन ना होकर प्रतिदिन सोसायटी में होने वाली घटनाओं को केन्द्र में रखकर तैयार करता है तो कई दशक पुराना निरमा वाशिंग पावडर का ऐड आज भी आपको लुभाता है. 

प्रायवेट सेक्टर के पब्लिक रिलेशन ऑफिसर इस बात के लिए सर्तक और सजग रहता है कि लोगों के दिलों में उसे कैसे उतरना है. इस संदर्भ में एक लघु कथा का उल्लेख करना समीचीन होगा. एक बंद ताले पर भारी-भरकम हथौड़ा अपनी पूरी ताकत से वार करता है लेकिन ताला नहीं खुलता है. वहीं पर एक छोटी सी चाबी ताले के ह्दयस्थल में बनी सुराख में प्रवेश करती है और ताला खुल जाता है. हथौड़ा हैरान रह जाता है और चाबी से कहता है कि तु छोटी सी और मैं तुझसे बड़ा और बलवान लेकिन मैं ताले को खोल नहीं पाया और तुने ताले को खोल दिया. हथौड़े की बात को सुनकर चाबी हौले से मुस्कराई और कहा कि किसी के दिल को खोलने के लिए उसके दिल में उतरना पड़ता है. लब्बोलुआब ये कि पब्लिक रिलेशन ऑफिसर यह जानता है कि कैसे लोगों के दिल में उतरना है. पब्लिक रिलेशन ऑफिसर के लिए जरूरी होता है कि वह भारी-भरकम शब्दों के बजाय छोटे और सरल शब्दों का अपनी खबरों में और अपने ऐड केम्पन में उपयोग करे. इसका सबसे बेहतरी उदाहरण के तौर पर हेलमेट पहनने के लिए प्रोत्साहित करने वाले एड के  इस वाक्य को देख सकते हैं-‘सिर है आपका, मर्जी है आपकी’.

पब्लिक रिलेशन ऑफिसर का कार्य व्यापक होता है. अब हम सरकार के विभागों के पब्लिक रिलेशन ऑफिसर की चर्चा करते हैं तो उनका दायित्व एक अलग किस्म का होता है और बंधन तथा मर्यादा में बंधा होता है. इसके पहले प्रायवेट सेक्टर के पब्लिक रिलेशन ऑफिसर की बात कर रहे थे, वे अपेक्षाकृत स्वतंत्र होते हैं. किसी भी शासन के पब्लिक रिलेशन ऑफिसर की जवाबदारी शासन और सरकार के प्रति प्राथमिक रूप से होती है. सोसायटी और सरकार के मध्य वह एक पुल की तरह काम करता है. लोकतंत्र में कल्याणकारी सरकार की अवधारणा बनी हुई है और चुनी गई सरकारें जनता के प्रति जवाबदार होती हैं. जनता और राज्य तथा देश के कल्याण के लिए अनेक योजनाओं का निर्माण किया जाता है. ये योजनाएं आम आदमी तक पहुंचे और उनका लाभ ले सकें, यह जवाबदारी पब्लिक रिलेशन ऑफिसर के जिम्मे होती है. साथ में सरकार की इमेज बिल्डिंग का काम भी उन्हें करना होता है. चूंकि वे एक शासकीय सेवा में होते हैं तो उन्हें कई किस्म की वैधानिक मर्यादाओं का पालन करना होता है. शासकीय सेवा के पब्लिक रिलेशन ऑफिसर के साथ जर्नलिस्ट का लगभग प्रतिदिन का सम्पर्क होता है. जर्नलिस्ट के लिए अपरोक्ष रूप से अनेक बार सोर्स का काम भी यही पीआरओ करते हैं. वे क्लू देते हैं लेकिन खबरों से बचते हैं लेकिन जर्नलिस्ट उन क्लू या सूचना को खबर का आधार बना लेता है. पीआरओ द्वारा जारी की गई खबरों और उसमें दिए गए आंकड़ों का मिलान कर जर्नलिस्ट प्रामाणिक खबरें तैयार करते हैं. यह सब संभव होता है कि आपका पीआरओ के साथ रिलेशन कैसा है? अर्थात एक जर्नलिस्ट के लिए जरूरी है कि वह पहले दक्ष पीआरओ बने. प्रायवेट सेक्टर और गर्वमेंट सेक्टर में काम करने वाले पीआरओ की भूमिका में बुनियादी अंतर बहुत कुछ नहीं होता है लेकिन प्रायमरी काम उनका इमेज बिल्डिंग करना होता है. 

जनसम्पर्क वह मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसमें सत्ता, संस्थान एवं व्यक्ति को जनता की मानसिक कृत्तियों, व्यवहार, अभिरूचियों परिवेश तथा  प्रचलित परम्पराओं को दृष्टिगत करते हुए निर्णय लेने चाहिए। उत्तम छवि-निर्माण, सह-अभिव्यक्ति, समर्थन एवं जनअनुकूलता की प्राप्ति ही प्रतिष्ठित जनसम्पर्क की अभिव्यक्ति है। जनसंपर्क का स्वरूप केवल दफ्तर खोलकर बैठे रहना ही नहीं है, बल्कि कई तरह से इस काम को अंजाम देना पड़ता है। इसके अंतर्गत मीडिया रिलेशन, क्राइसिस मैनेजमेंट, मार्केटिंग कम्युनिकेशन, फाइनेंशियल, पब्लिक रिलेशंस, सरकारी संबंध, औद्योगिक संबंध शामिल हैं।  आज सभी छोटे-बड़े संस्थानों में जनसंपर्क क्रय तथा पब्लिक रिलेशन ऑफिसर सूचना संप्रेषण तथा विचारों की अभिव्यक्ति का दायित्व निभा रहे हैं और कैरियर निर्माण की दृष्टि से यह एक सम्मानजनक क्षेत्र माना जाता है।

निष्कर्षतः माना जा सकता है कि सोसायटी में होने वाले सकरात्मक परिवर्तन में पब्लिक रिलेशन की भूमिका अहम होती है. पत्रकारिता के तीन सूत्र सूचना, शिक्षा और मनोरंजन का प्रतिपादन पब्लिक रिलेशन में भी बखूबी किया जाता है.जनसंपर्क की प्रक्रिया में वांछित जानकारी को बढ़ा-चढ़ाकर नहीं बल्कि उसके वास्तविक रूप में लेकिन प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया जाता है। एक तरह से पब्लिक रिलेशन सोसायटी की हार्टबीट है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं यूजीसी एप्रूव्हड रिसर्च जर्नल ‘समागम’, भोपाल के सम्पादक हैं) सम्पर्क  3, जूनियर एमआयजी, द्वितीय तल, अंकुर कॉलोनी, शिवाजीनगर, भोपाल-16 मोबा. 9300469918

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सम्पादक

डॉ. लीना