वे भारत के पहले सूचना और प्रसारण मंत्री भी थे
संजय कुमार/ लौहपुरुष का जिक्र आते ही जेहन में सरदार वल्लभभाई झावरभाई पटेल का नाम सामने आता है। विश्व पटल पर ‘सरदार पटेल’ के नाम से चर्चित भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के अग्रणी नेता थे। सरदार पटेल, स्वतन्त्र भारत के महान दूरदर्शी राजनेता-प्रशासक होने के साथ-साथ प्रतिष्ठित वकील, बैरिस्टर तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भी थे जिन्होंने आज़ादी के पश्चात 1947 से 1950 तक भारत के पहले उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की भूमिका निभाई। साथ ही वे भारत के पहले सूचना और प्रसारण मंत्री भी थे।
इस में कोई शक नहीं कि राष्ट्रीय आंदोलन से लेकर आज़ादी के बाद भारत को एक सूत में पिरोने में सरदार पटेल का योगदान अविस्मरणीय है। सरदार पटेल के योगदान और दृढ़ व्यक्तित्व को देखते हुए इन्हें ‘भारत का लौह पुरुष’ और ‘भारत के बिस्मार्क’ के रूप में भी जाना जाता है। अगर देखें तो, सरदार पटेल होना आसान नहीं है। एक मज़बूत, अडिग और दृढ़ संकल्पित व्यक्तित्व के धनी सरदार पटेल ने अपने बल बूते भारत को कई मायने में मजबूत बनाया। अगर बात करें सरदार पटेल और मीडिया की तो इसमें भी उनकी भूमिका अहम् रही है। देश के पहले सूचना और प्रसारण मंत्री होने के नाते उन्होंने भारत की आजादी के बाद स्थापित शुरुआती मंत्रालयों में से एक है सूचना और प्रसारण मंत्रालय को अहम् मुकाम पर पहुँचाया था।
जहाँ तक सूचना और प्रसारण मंत्रालय का सवाल है तो यह महत्वपूर्ण मंत्रालयों में से एक है जो जनता तक पहुंचने में सरकार का प्रतिनिधित्व करता है। संचार के पारंपरिक साधनों जैसे नृत्य, नाटक, लोक गायन, कठपुतली शो आदि माध्यमों के अलावे रेडियो, टेलीविजन, प्रेस, सोशल मीडिया मुद्रित प्रचार जैसे पुस्तिकाएँ एवं बाह्य प्रचार यानि जनसंचार के विभिन्न साधनों के माध्यम से सरकार की नीतियों, योजनाओं, सूचनाओं और कार्यक्रमों के बारे में जनता और प्रेस को अवगत करता है। कह सकते हैं कि सरकारी सूचनाओं का प्रसार करने का दायित्व इसे सौंपा गया है। यह मंत्रालय निजी प्रसारण क्षेत्र से संबंधित नीतिगत मामलों, लोक प्रसारण सेवा प्रसार भारती का संचालन, बहु-मीडिया विज्ञापन और केंद्र सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों के प्रचार, फिल्म प्रचार तथा प्रमाणन और प्रिंट मीडिया के विनियमन के संबंध में भी केंद्र बिंदु है।
शुरूआती दौर में जब जनसंचार के माध्यम यानि मीडिया आज की तरह व्यापक नहीं थे। मौजूदा दौर में मीडिया अति व्यापक हो गया है। इसके अंदर सकारात्मकता के साथ-साथ नकारात्मकता हावी हो चुका है। लेकिन आजाद भारत के समय के एकीकरण के शिल्पकार सरदार पटेल, भारत में आजाद मीडिया की भी बुनियाद रखने का काम कर रहे थे और रखा भी। आजादी के समय भारत में ऑल इंडिया रेडियो के नाम से रेडियो था साथ ही गिने चुने समाचार पत्र और पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही थीं। उस समय भारत में सिर्फ नौ ही रेडियो स्टेशन थे। बंटवारे के बाद दिल्ली, मद्रास, बंबई, कलकत्ता, लखनऊ और त्रिचिरापल्ली जहां भारत को मिले, वहीं पेशावर, लाहौर और ढाका स्टेशन पाकिस्तान को मिले। इनके अलावा रजवाड़ों में भी कुल पांच रेडियो स्टेशन काम कर रहे थे। सरदार पटेल पहले सूचना और प्रसारण मंत्री भी थे, लिहाजा उन्होंने रेडियो के तेज विकास की योजना बनायी। इसके तहत जालंधर, जम्मू, पटना, कटक, गुवाहाटी, नागपुर, विजयवाड़ा, श्रीनगर, इलाहाबाद, अहमदाबाद, धारवाड़ और कोझिकोड में रेडियो स्टेशन स्थापित हुए। चार नवंबर, 1948 को नागपुर रेडियो स्टेशन का उद्घाटन करते वक्त सरदार पटेल का यह कहना कि रेडियो देश की एकता और विकास में अहम भूमिका निभायेगा। सरदार पटेल की यह सोच आज रेडियो को जन मीडिया के तौर पर स्थापित कर दिया है। रेडियो के समाचार हो या अन्य विविध कार्यक्रम एक मजबूत पहचान के तौर पर हैं, जो रेडियो को पत्रकारिता के क्षेत्र में स्थापित और मजबूती प्रदान करते हैं। इसका श्रेय सरदार पटेल को ही जाता है।
नागपुर रेडियो स्टेशन के उद्घाटन के मौके पर सरदार पटेल ने प्रबुद्ध लोगों से अपील की थी कि आम लोगों को रेडियो के प्रति सहज बनाने के लिए कोशिश की जाए। सरदार पटेल को पता था कि अंतरराष्ट्रीय पटल पर रेडियो विदेश प्रसारण में भी अपनी भूमिका निभायेगा। इसलिए उन्होंने विदेशी भाषाओं में रेडियो प्रसारण की भी योजना बनायी। यह सरदार पटेल की ही सोच थी कि उनके निधन के पहले तक छह रेडियो स्टेशनों वाला ऑल इंडिया रेडियो 1950 तक 21 केंद्रों से प्रसारण करने लगा था। उन्होंने एक मजबूत मीडिया भारत में खड़ी कर दी थी,जिसे आज महसूस किया जा सकता है ।
आजादी के पहले भारत में एक-दो ही न्यूज़ एजेंसियां थीं। आज़ादी से पहले भारत में समाचार एजेंसियों की शुरुआत अंग्रेज़ों के ज़रिए हुई थी। साल 1905 में अंग्रेज़ों ने एसोसिएटेड प्रेस ऑफ़ इंडिया (एपीआई) की स्थापना की थी। वहीं, आज़ादी के बाद भारत की पहली समाचार एजेंसी प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया (पीटीआई) थी। इसकी स्थापना अगस्त 1947 में मद्रास में हुई थी। पीटीआई, भारतीय समाचार पत्रों के स्वामित्व वाली एजेंसी है। इसने एसोसिएटेड प्रेस ऑफ़ इंडिया और ग्रेट ब्रिटेन की रॉयटर्स समाचार एजेंसी के भारतीय आउटलेट्स का प्रबंधन अपने हाथ में लिया था। सरदार पटेल को अंदाजा था कि आजाद भारत के स्वतंत्र प्रेस के लिए किफायती और भारतीय समाचार एजेंसियों की किफायती अखबारों तक पहुंच जरूरी होगी। इसके लिए उन्होंने 21 सितंबर, 1948 को प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया का गठन करवाया। उसके पहले तक वह ब्रिटिश समाचार एजेंसी रायटर की एजेंसी थी। रायटर से समझौते के नाम पर एक तरह से पटेल ने पीटीआई को पूरी तरह से देशी न्यूज़ एजेंसी बना दिया था ताकि भारतीय अखबारों की विदेशी खबरों तक आसानी से पहुंच हो सके। वही, ऑल इंडिया रेडियो का नाम ‘आकाशवाणी’ वर्ष 1957 में हुआ। जिसे भारतीय संस्कृति और परंपरा के मुताबिक सवारने का काम पटेल ने ही किया था। सरदार पटेल हिंदी के घोर समर्थक थे। राजभाषा विभाग अब भी गृह मंत्रालय के तहत आता है। उनका भी गांधी जी की तरह मानना था कि हिंदी ही आजाद भारत की राष्ट्रभाषा हो सकती है और देश को एक सूत्र में पिरो सकती है। सरदार पटेल ने रेडियो को मजबूत बनाते हुए और न्यूज़ एजेंसी प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया का गठन करवा कर आजाद भारत में आजाद मीडिया की नींव रखी। साथ ही राष्ट्रभाषा की ताकत को रेखांकित करते हुए हिंदी पत्रकारिता को भी सशक्त बनाया।