अजीत शाही/ पंद्रह साल पहले की बात है. एक न्यूज़ चैनल के मालिक ने मुझे काम पर रखा ये कह कर कि हम न्यूज़ कम कर पा रहे हैं ऊलजलूल ख़बरें ज़्यादा हैं, तुम ज़रा मदद कर दो सीरियस खबरों में. तीन चार हफ़्ते बाद एक स्ट्रिंगर ने एक रिपोर्ट भेजी: कुत्तों का श्मशान. खबर थी कि किसी शहर में कुत्तों का श्मशान है जहां लोग अपने पालतू कुत्ते का मरने के बाद अंतिम संस्कार करते हैं. मैंने कौतुहल के चलते वीडियो देखा तो उसमें पहला सीक्वेंस ये था कि एक हँसता-खेलता कुत्ता अपने मालिक के घर में ठिठोली कर रहा है. अगले शॉट में वो मर गया था और घर वाले रो रहे थे. तीसरे शॉट में उसे कपड़े में लपेट कर दो लोग स्कूटर पर श्मशान ले जा रहे थे. और आख़िर में उसका दाह-संस्कार हो रहा था. प्रोड्यूसर वीडियो को कम्प्यूटर पर देख रहा था और मैं उसके पीछे खड़ा देख रहा था. अचानक से प्रोड्यूसर ने पॉज़ किया और दो तीन बार रिवाइंड करके देखा. फिर उसने मेज़ पर रखे फ़ोन से स्पीकर पर स्ट्रिंगर को फ़ोन किया और कहा, “यार, ये जब कुत्ते को ले जा रहे हैं स्कूटर पर तो कपड़े के नीचे उसका एक पैर हिलता दिख रहा है.” स्ट्रिंगर ने फ़ौरन जवाब दिया, “सरजी, वो वाला शॉट काट दो ना फिर.”
प्रोड्यूसर हल पा कर खुश हो गया और वो स्टोरी शाम को टीवी पर खूब चली. मैंने पाँच हफ़्ते बाद चुपचाप नौकरी छोड़ दी और हमेशा की तरह फिर बेरोज़गार हो गया.
अम्बरीष कुमार की फेसबुक वाल से साभार, तस्वीर इंटरनेट से साभार