वरिष्ठ पत्रकार संजीव प्रताप सिंह का निधन, स्मृति शेष
लिमटी खरे/ सुबह साढ़े सात बजे के लगभग जब अखबार बांच रहे थे, उसी दौरान मोबाईल पर घंटी बजी, मित्र संजीव प्रताप सिंह का फोन था। छूटते ही बोले ‘भैया मेरे राखी के बंधन को . . ., उसके बाद चिर परिचित ठहाका। इसके उपरांत बचपन की ढेर सारी यादों पर लगभग आधा घंटा चर्चाएं होती रहीं। नागपुर से रेलवे के वरिष्ठ पायलट अनिल श्रीवास्तव आए थे, उनके साथ दोपहर 12 बजे सिवनी से छपरा जाने का कार्यक्रम तय था, इसलिए हमने संजीव से पूछा कि क्या वे चलेंगे। उन्होंने हामी भर दी।
अपरान्ह लगभग बारह बजे बेटा शैव मुंबई से राखी पर आ रहा था, उसे लेने बस स्टैण्ड पर गए और वहीं से संजीव से पूछा कि क्या कार्यक्रम है! संजीव ने अपने चिरपरिचित अंदाज में छपारा जाने से मना कर दिया। घर आकर भोजन किया और फिर मोबाईल देखते देखते आंख झपक गई। कुछ ही देर बाद अनिल श्रीवास्तव का फोन आया कि कितने बजे चलना है। इसके पहले कि हम जवाब देते मोबाईल पर पत्रकार पृथ्वीराज जगने का फोन वेटिंग में था। हमने अनिल से कहा कि कुछ देर बाद बात करते हैं।
पृथ्वीराज जगने ने फोन पर कहा कि भैया गलत हो गया। हम चौंक गए कि आखिर क्या गलत हो गया। उन्होंने एक ही सांस में कह डाला कि एक बस से संजीव भैया का एक्सीडेंट हो गया है और उन्होंने मौके पर ही दम तोड़ दिया है। हम अनिल श्रीवास्तव के साथ मौके पर भागे . . . सब कुछ खत्म . . .
08 अगस्त 1968 को जन्मे संजीव प्रताप सिंह हमारे बाल सखा रहे हैं। उनकी कुशाग्र बुद्धि, हाजिर जवाबी, गजब की याददाश्त का हर कोई मुरीद था। उनके पिता स्व. शिव प्रताप सिंह सिवनी में डिप्टी डायरेक्टर प्रासीक्यूशन रहे हैं। उनके अग्रज राजीव सिंह दमोह से जिला एवं सत्र न्यायधीश सेवा निवृत हुए हैं। पेरामिलट्री फोर्स में उनके बहनोई अजय सिंह आईजी हैं और उनके एक बहनोई बैंक के प्रबंधक पद से सेवा निवृत हुए हैं।
संजीव का कॉलेज का अध्ययन सिवनी में हुआ। वे क्रिकेट के बहुत अच्छे खिलाड़ी थे। वे सिवनी डिग्री कॉलेज की क्रिकेट टीम के कप्तान भी रहे। पत्रकारिता में उनका रूझान गजब का था। वे अखबार को बहुत ही चाव के साथ पढ़ा करते थे। 1989 में जब डिस्क के जरिए केबल का प्रसारण होता था, उस दौर में एमपी मेल नामक अखबार का प्रकाशन हमने आरंभ किया। एमपी मेल के सहप्रकाशन के रूप में मित्र आशीष कौशल, संजीव सिंह के साथ मिलकर एक न्यूज जिसका नाम सारांश दिया था को आरंभ किया गया। इसमें संजीव सिंह की रिपोर्टिंग गजब की हुआ करती थी। इसके बाद उन्होंने आशीष गोलू सक्सेना के साथ मिलकर सिटी केबल (साई न्यूज केबल) में रोज रात को खबरें पढ़ना आरंभ किया जो बहुत ज्यादा लोकप्रिय हो गईं।
संजीव ने जबलपुर एक्सप्रेस के लिए लंबे समय तक रिपोर्टिंग की और उनकी रिपोर्टिंग लोगों के दिलो दिमाग में उस वक्त बस गई थीं। जब दैनिक हिन्द गजट का प्रकाशन आरंभ हुआ तब उनके द्वारा दैनिक हिन्द गजट और समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के लिए लगातार ही रिपोर्टिंग जारी रखी। वे समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के लिए अभी भी लगातार ही रिपोर्टिंग का काम किया करते रहे।
संजीव यारों के यार थे। उनसे जो एक बार मिल लेता उनका कायल हो जाता। हम सारे मित्र आश्चर्य चकित रहते थे कि आखिर संजीव के अंदर ऐसी क्या खूबी है कि उनसे लोग मिलने लालायित रहते। हम सभी 1984 के बैच वाले (हम सबने 1984 में ग्यारहवीं अर्थात उस दौर की मेट्रिक) की परीक्षा उत्तीर्ण की थी) विद्यार्थियों के बीच संजीव बहुत ज्यादा लोकप्रिय थे। जैसे ही सड़क दुर्घटना में उनके निधन की खबर हम सभी को लगी, हम सभी हतप्रभ रह गए। 11 अगस्त को चूंकि राखी का दिन था, सभी अपनी अपनी दिनचर्याओं में व्यस्त थे, जैसे ही खबर मिली, जो जहां जिस हाल में था, उसी हाल में मौके पर जा पहुंचा।
बाद में पता चला कि सिंचाई विभाग में कार्यरत एक परिचित के साथ वे मोटर सायकल पर चूना भट्टी गांव से डूंडा सिवनी बायपास की ओर जा रहे थे कि हल्की फुहारों के बीच वे एक बस की चपेट में आ गए और मौके पर ही दोनों ने दम तोड़ दिया। वहां से पुलिस कार्यवाही के उपरांत उनका शव परीक्षण कराया गया और शुक्रवार 12 अगस्त को उनका अंतिम संस्कार कटंगी रोड स्थित मोक्षधाम में अपरान्ह साढ़े ग्यारह बजे किया जाएगा। वे अपने पीछे पत्नि, भाई, भाभी, बहन, बहनोई, भांजे, भांजियों, भतीजों का भरा पूरा परिवार छोड़ गए हैं।
संजीव का निधन हम सभी मित्रों के लिए किसी वज्रपात से कम नहीं है। हम सभी ईश्वर से कामना करते हैं कि संजीव प्रताप सिंह की आत्मा को शांति प्रदान करते हुए उनके परिजनों को इस दुख को सहने की क्षमता प्रदान करे। ऊॅ शांति ऊॅ . . .