पटना/ हमारे घर आँगन में फूदकने और चहचाहने वाली छोटी सी चिड़िया गौरैया हमसे रूठ कर कहीं चली गयी है और इसे विलुप्ति के कगार पर माना जा रहा है। भले ही यह अभी खतरनाक जोन में नहीं है, लेकिन अभी समय है कि हम उन्हें बचा ले। गौरैया संरक्षण की पहल अहम है और इसके लिए सबको आगे आने की जरूरत है। यह संभावना रविवार को पटना में "गौरैया संरक्षण के विभिन्न आयाम” विषय पर आयोजित एक राष्ट्रीय वेबिनार में वक्ताओं ने जताई। वेबिनर का आयोजन डॉ गोपाल शर्मा, प्रभारी, भारतीय प्राणी सर्वेक्षण,गंगा समभूमि प्रादेशिक केंद्र, पटना एवं पीआईबी पटना के सहायक निदेशक एवं संयोजक, हमारी गौरैया: संरक्षण हमारी पहल, पटना के संजय कुमार द्वारा संयुक्त प्रयास से किया गया।
गौरैया संरक्षण में विशेष योगदान रखने वाले मुख्य अतिथि वक्ता गुजरात के चर्चित स्पैरोमैन जगत कीनखाबवाला के कार्यों की चर्चा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ‘मन की बात’ कार्यक्रम में कर चुके हैं। उन्होने वेबिनार मे कहा कि हम इन्सानो को इन घरेलू चिड़ियों के साथ सहजीवन में रहना सीखना पड़ेगा। आज मनुष्य ने अपनी जीवन शैली से, प्रदूषण से गौरैयों के जीवन, प्रजनन को खतरे में ला खड़ा किया है। जब नर गौरैया मादा को रिझाने के लिए गीत गाता है तो ध्वनि प्रदूषण के कारण उसकी आवाज मादा तक कई बार नहीं पहुँच पाती। ऐसे ही जब बच्चे भोजन के लिए घोंसले से चिल्लाते हैं तो उनकी आवाज नर-मादा गौरैया तक नहीं पहुँच पाती। ध्वनि प्रदूषण के कारण उनका जीवन –प्रजनन खतरे में पड़ जाता हैं। ऐसे ही गलोबल वार्मिंग से बढ़ते तापमान के कारण आज अनाजों में प्रोटीन कम होने लगा है जिससे पूरा खाने के बावजूद वे कमजोर रह जाती हैं।
मदर नेचर क्लब भागलपुर के संयोजक और पक्षी विशेषज्ञ अरविन्द मिश्रा ने कहा कि गौरैया के विलुप्त होने का कारण मोबाईल टावर को माना जाता है जबकि यह भ्रम हैं। उन्होने कहा कि 1950-70 तक गौरैया की संख्या बढ़ी वही, 1970-90 के बीच गिरावट आई। उस समय मोबाईल टावर नहीं था। अरविंद मिश्रा ने गाय, गोबर और गौरैया का संबंध बताते हुए गौरैया संरक्षण की बात कही। उन्होंने कहा कि जहां गाय होगी गौरैया आएगी। क्योंकि गोरैया गाय के गोबर में निकले अपचे भोजन को तो खाती ही है बाद में वह अगर सड़ जाता है तो उसमें से जो कैटरपिलर्स यानी पिल्लू हो जाते हैं वह भी अपने बच्चों को खिलाती है यह प्रोटीन का बड़ा स्रोत भी होता है।
वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया, नई दिल्ली के उपनिदेशक डा. समीर कुमार सिन्हा ने कहा कि गौरैया की संख्या का कम होना गौरैया के लिए खतरनाक नहीं है बल्कि इन्सानों के लिए खतरनाक है। श्री सिन्हा ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में गौरैया की संख्या को लेकर कुछ डाटा आए हैं जिनसे मदद लेकर अलग-अलग क्षेत्रों में इनकी समस्याओं को पहचान सकते हैं। शहरी और ग्रामीण समस्याएं अलग हैं।
वहीं भारतीय प्राणी सर्वेक्षण पटना के वैज्ञानिक एवं प्रभारी अधिकारी के डा. गोपाल शर्मा ने वेबिनार का विषय प्रवेश करते हुये गौरैया के लिए खतरा, संरक्षण की जरूरत और तरीकों की चर्चा की। उन्होने आधुनिक जीवन शैली, कीटनाशक का इस्तेमाल को खतरनाक बताया और कृत्रिम घोंसला लगाने और दाना पानी की जरूरत बताई।
पीआईबी के सहायक निदेशक और गौरैया संरक्षक संजय कुमार ने कहा कि संरक्षक को लेकर सिर्फ एक दिन काम करने से नहीं होगा, बल्कि इसे अभियान के तौर पर करने की जरूरत है। उन्होने कहा कि मीडिया ने गौरैया संरक्षक की पहल की है। जरुरत है इसे और व्यापक बनाने की। मीडिया को चाहिए वह हर रोज इससे जुड़ी तस्वीरें और कैप्शन डाले।
वहीं वरीय पत्रकार मनोज कुमार ने कहा कि गौरैया संरक्षण की पहल बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। इस प्रकृति में सभी को जीने का अधिकार है। जहां तक गौरैया संरक्षण की बात है तो सिर्फ उसका संरक्षण नहीं होगा उसके साथ जुड़े जीव जन्तु और इन्सानो का भी होगा । हमारे जीवन में गौरैया की भूमिका बहुत ही अहम है।
उत्तर प्रदेश के स्पैरो सेवर-लेखक निर्मल शर्मा ने सरकार से गोरैया अभयारण्य बनाए जाने जैसा कुछ काम करने की जरूरत बताई।
अररिया के पर्यावरणविद सूदन सहाय ने केंद्र सरकार से आग्रह किया कि गौरैया संरक्षण और पर्यावरण जैसे विषयों को स्कूली सिलेबस में डालें ताकि आने वाली पीढ़ी इसके महत्व को समझ सकें ।
वेबिनार के पहले सत्र का धन्यवाद ज्ञापन करते हुए पीआईबी के निदेशक दिनेश कुमार ने एक छंद सुनाया -पंख है, कंठ है, कूक है, किलकारियां हैं, पर यह तो बताओ कहां हरी- हरी डालिया है? उन्होंने कहा लगातार योगदान देते रहने से ही गौरैया संरक्षण होगा।
वेबिनार के दूसरे सत्र में खुला सत्र का आयोजन हुआ जिसमें शामिल लोगों ने विशेषज्ञों से सवाल पूछें ।
वेबिनार का संचालन डा. गोपाल शर्मा और संजय कुमार ने संयुक्त रूप से किया।