विनीत राय । लखनऊ। बड़ी अजीब विडम्बना है कि समाज में लोगों के अधिकारों की रक्षा करने और समाज में व्याप्त विषमताओं को दूर करने के लिए एक प्रहरी के रूप में पत्रकार अपना सर्वस्व न्यौछावर कर जीवन पर्यन्त संघर्ष करता रहता है। मगर उसके बाद भी उसे उसके संघर्ष के बदले केवल गुमनामी और जिल्लत की जिंदगी के अतिरिक्त कुछ नहीं मिलता है। एक पत्रकार एक सैनिक की भांति समाज में अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन करता, मगर जो सम्मान एक सैनिक को मिलता है, वह एक पत्रकार को न तो समाज देता है और न ही सरकार देता है। इतना ही नहीं उसे एक सैनिक की पारिश्रमिकी का चैथाई हिस्सा भी पारिश्रमिकी के रूप में नहीं मिलता है। फिर भी वह अपने उत्तरदायित्वों का भली-भांति निर्वहन करता है। मगर इतनी कम पारिश्रमिकी पर भी समाज में सरकार की दलाली कर रहे कुछ मीडिया संस्थान और कुछ तथाकथित दलाल पत्रकार जो जनहित को ताक पर रखते हुए स्वंय की स्वार्थ सिद्ध के लिए गिद्ध की भांति नजर गड़ाये हुए है। मगर लोगों के अधिकारों की रक्षा करने वाला यह चैथा स्तम्भ स्वयं ही अपने अधिकारों की रक्षा करने में असहाय महसूस कर रहा है।
इस चौथे स्तम्भ की निर्बलता का एक उदाहरण राजधानी लखनऊ में देखने को मिल रहा है। राजधानी लखनऊ में क्रमशः दो मशहूर अखबार कैनविज टाईम्स और वाईस ऑफ मूवमेन्ट है। एक अखबार कैनविज ग्रुप का है जो इन्फ्रा स्टैक्चर सहित अन्य कार्य को कराता है, तो वही दूसरा लखनऊ विजिलेंस मुख्यालय के एक इंस्पेक्टर का जिनकी उत्तरदायित्व सरकार द्वारा सौंपे गये हेराफेरी के मामलों की जांच कर रिर्पोट सौंपना है। कैनविज ग्रुप ने करीब डेढ़ वर्ष पूर्व अपने बिजनेस को मजबूत बनाने और सरकार से अपना हित सांधने के उद्देश्य से कैनविज अखबार की शुरूआत की। जिसकी जिम्मेदारी बतौर संपादक के रूप राजधानी के कथित मशहूर पत्रकार के रूप में मशहूर प्रभात रंजन दीन को जो न केवल सर्वण जाति के बल्कि खास तौर पर ब्राह्मण विरोधी और उपर्युक्त इन्ट्रों में लिखे गये शब्दों को चरितार्थ करने वाले है, को सौंपी गई। वही वाईस मूवमेंट की कमान इंस्पेक्टर साहब के सुपुत्र प्रखर सिंह संभाल रहे है।
दिलचप्प बात यह है कि करीब आठ-दस रोज पूर्व कैनविज टाईम ने प्रभात रंजन दीन को अपने लिए निरर्थक मानते हुए उन्हें उनकी जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया। सुनने में आ रहा है कि कैनविज ग्रुप इन्फ्रा स्टैक्चर संबंधी कार्य शासन से करवाने की जिम्मेदारी प्रभात रंजन को दी थी। मगर वह इन कार्यो को करवाने में असमर्थ रहे है। कहने का तात्पर्य है की प्रभात रंजन दीन कैनविज ग्रुप के लिए असफल साबित हुए। इसी बीच कैनविज ग्रुप के संपर्क में आज का नम्बर वन कहे जाने वाले अखबार के एक एसोसिएट एडिटर आये जो उसकी मनोभावना के अनुरूप सार्थक सिद्ध हुए, इन्होंने कैनविज ग्रुप के कुछ कार्य शासन स्तर पर सुलझाये भी, ऐसे में प्रभात रंजन दीन का वहां से हटना लाजिमी थी।
कैनविज ग्रुप ने प्रभात रंजन दीन और उनकी पूरी टीम को करीब आठ-दस रोज पूर्व एक साथ पूरा बकाया वेतन देकर कार्यमुक्त कर दिया। कैनविज ग्रुप ने अपने स्वार्थ सिद्ध के लिए एक ही झटके में 25 लोगों के पेट पर लात मार दिया। हालांकि कंपनी ने इतनी ईमानदारी दिखाई कि उसने सभी कर्मचारियों का वेतन भुगतान कर दिया। कैनविज टाईम्स से मुक्त होते ही प्रभात रंजन अपनी पूरी टीम के साथ वाईस ऑफ मूवमेंट की ओर कूच कर दिये। वाईस ऑफ मूवमेंट के जिम्मेदार भी कैनविज ग्रुप की भांति प्रभात रंजन के तथाकथित मशहूर नाम के छलावे में आकर गलफहमी का शिकार हो गये है, और एक ही झटके में अपने उस पुरानी टीम के 23 कर्मचारियों के पेट पर लात मार दिये। जिसने उसके बुरें समय में अपना खून पसीन बहाकर अखबार को शिखर पर पहुंचाया था।
सुनने में आ रहा है कि कर्मचारियों का तीन माह का वेतन बकाया है, अखबार की तरफ से कर्मचारियों को एक-एक माह का वेतन दिया गया है, शेष वेतन बाद में दिये जाने की बात सुनने में आ रही है। निकाले गये कर्मचारियों में एक तरफ जहां संस्थान के जिम्मेदारों के प्रति आक्रोश है तो वही दूसरी ओर प्रभात रंजन के प्रति भी आक्रोश व्याप्त है। कर्मचारियों का कहना है कि यदि संस्थान को निकालना ही था तो कम से कम एक माह पूर्व नोटिस देकर बकाया वेतन अदा कर दिया होता है। जिससे दूसरे संस्थान में उनको नौकरी करने के लिए कठिनाईयों का सामना न करना पड़ता। सबसे दिलचस्प बात यह है कि वाईस मूवमेंट से निकाले गये कर्मचारियों में एक कर्मचारी ऐसा भी है जो पत्रकारों के अधिकारों की बात करता है और पत्रकारों का लीडर भी है। मगर अफसोस कि ऐसा प्रभावशाली व्यक्ति जो लोगों कि लड़ाई लड़ने का तो जोर-शोर से दम भरता है, मगर जब उसकी और उसके साथियों के अधिकारों की लड़ाई लड़ने की बात सामने आई तो उसकी सारी नेतागिरी तेल बेचने निकल गई।
पत्रकारों की इस दयनीय स्थिति को देकर मैं अन्य पत्रकार बंधुओं से केवल यहीं निवेदन करना चाहूंगा कि जो व्यक्ति अपने अधिकारों की लड़ाई स्वयं नहीं लड़ सकता है, वह भला दूसरें के अधिकारों की लड़ाई क्या खाक लड़ेगा ? ऐसे में हमें ‘‘हम सुधरेगें, जग सुधरेगा’’ की कहावत के तर्ज पर खुद को बदलते हुए सबसे पहले अपने अधिकारों के प्रति लड़ने के लिए तत्पर होना होगा तभी हम समाज में व्पाप्त बुराईयों के प्रति और लोगों के अधिकारों के प्रति मजबूती से लड़ पायेंगे। (ये लेखक के अपने विचार है )।
-विनीत राय लखनऊ स्थित युवा पत्रकार हैं।
9451907315