मीडिया में बड़े बिजनेस घरानों की घुसपैठ, इन्होंने मीडिया की आजादी के विरूद्ध काम किया है
(राष्ट्रीय पत्रकार संघ के द्विवार्षिक सत्र के शुभारंभ के अवसर पर उप-राष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी के उद्बोधन का अंश ) ..... स्वतंत्र, निष्पक्ष, ईमानदार और उद्देश्यपरक प्रेस हर तरफ पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के लिए सक्षम साधन है। इसलिए प्रेस की आजादी लोकतंत्र के सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटकों में से एक है तथा इससे राष्ट्र के चरित्र का पता चलता है। इसके महत्व को सारांश रूप में फ्रांस के राजनेता टैलीरैंड के शब्दों में समझा जा सकता है –''प्रेस की आजादी के बिना सरकार का कोई प्रतिनिधि नहीं हो सकता।''
प्रेस को अपनी निर्धारित भूमिका निभाने के लिए, इसे स्वतंत्र, निष्पक्ष, भेद-भाव मुक्त और बिना किसी पूर्वाग्रह के समाज के सभी वर्गों से जुड़े समाचार और विचार देने चाहिएं। इसे निहित स्वार्थों की चापलूसी करने से बचना चाहिए। यदि इसे कुछ खास बात कहनी है तो उसे खुलकर कहना चाहिए।
प्रेस ने स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा खुद गांधी जी भी संभवत: अपने समय के सर्वाधिक प्रभावशाली संपादक/पत्रकार रहे। स्वतंत्र भारत में प्रेस ने लोकतंत्र के आधार स्तंभ के रूप में काम किया है तथा अपनी जवाबदेही के कारण यह अधिकांशत: जनता की आकांक्षाओं पर खरा उतरा है।
आज हमारा मीडिया आकार और समाचार देने में बहुत विकसित हो चुका है। आज करीब 93,985 पंजीकृत प्रकाशन, समाचार और सामयिक घटनाक्रम की श्रेणी में 850 स्वीकृत टीवी चैनल तथा समाचार की श्रेणी से भिन्न 437 चैनल हैं। खुद दूरदर्शन भी 37 चैनल चला रहा है। इसके अलावा 250 से अधिक एफएम रेडियो केन्द्र और असंख्य इंटरनेट वेबसाइट काम कर रही हैं।
इसलिए हमें भारतीय मीडिया की ताकत और विविधिता पर गर्व है। हालांकि समय-समय पर मीडिया संबंधी ऐसे घटनाक्रम सामने आए हैं जो परेशानी पैदा का कारण रहे हैं। उनसे मीडिया की वस्तुपरकता और विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगे हैं। ये घटनाएं इन बातों से संबंधित हैं-
• क्रॉस मीडिया स्वामित्व
• पेड न्यूज या पैसा लेकर समाचार देना
• मीडिया की आचार संहिता तथा प्रभावशाली एवं स्पष्ट नजर आने योग्य आत्म नियंत्रण प्रणाली की जरूरत
• संपादकों तथा उनके संपादकीय की आजादी की घटती भूमिका
• मीडिया कर्मियों के काम करने की दशाओं में सुधार और उनकी सुरक्षा बढ़ाने की जरूरत इन सवालों पर विचार करने के लिए हमारे पास तीन महत्वपूर्ण और प्रासंगिक दस्तावेज मौजूद हैं।
1. भारत में क्रॉस मीडिया स्वामित्व के बारे में सूचना और प्रसारण मंत्रालय के दृष्टांत पर भारतीय प्रशासनिक स्टॉफ कॉलेज की रिपोर्ट -2009
2. मीडिया स्वामित्व के प्रश्न पर भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण का फरवरी, 2013 का परामर्श पत्र
3. पेड न्यूज के बारे में सूचना प्रौद्योगिकी पर संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट 6 मई, 2013
इन सबके निष्कर्ष से बहुत व्यथित करने वाली तस्वीर सामने आती है।
मीडिया में बड़े बिजनेस घरानों की घुसपैठ की व्यावसायिक जरूरत तथा इसके फलस्वरूप बाजार में प्रभुत्व नजर आया है। इन्होंने स्पर्धा अैर मीडिया की आजादी के विरूद्ध काम किया है। भारतीय प्रशासनिक स्टॉफ कॉलेज को पता चला कि चोटी के 23 टीवी नेटवर्क में से 11 की प्रिंट और रेडियो में हिस्सेदारी है तथा बाकी नेटवर्क के टेलीविजन सहित कम से कम दो मीडिया प्लेटफार्म में हित हैं। चार नेटवर्क के केबल/डीटीएच प्रसारण में सीधे संबंध पाए गए।
विज्ञापन से प्राप्त होने वाली आय की वृद्धि में मंदी और छोटे और स्वतंत्र प्रकाशनों के कारण कीमत संबंधी प्रतियोगिता के कारण समाचार माध्यमों से शामिल हो रहे समाचारों की गुणवत्ता पर दबाव पड़ा है और समाचार माध्यम के बहुलतावाद में गिरावट हुई है। ऐसा कहा जाता है कि भारत के लगभग 300 समाचार चैनलों में से अधिकांश चैनल घाटे में चल रहे हैं और संदिग्ध संपत्ति, काला धन और भारत तथा विदेश के संदिग्ध निजी इक्विटी निवेशकों पर निर्भर हैं। इस परिदृश्य में समाचार माध्यम अनैतिक तरीके अपनाने के लिए दवाब में हैं।
ट्राई के दस्तावेज में इस समस्या की व्यापक चर्चा की गई है। इसने ‘अनियंत्रित स्वामित्व’ और ‘टीवी चैनलों द्वारा पेड न्यूज, कार्पोरेट और राजनीतिक लॉबी बनाने, पक्षपातपूर्ण विश्लेषण करने और राजनीतिक क्षेत्र तथा कार्पोरेट जगत दोनों में भविष्यवाणी करने के साथ ही सनसनी फैलाने के लिए गैर-जवाबदेह रिर्पोटिंग करने’ के बीच स्पष्ट सीमा रेखा खीची है। इसमें बताया गया है कि खासतौर पर वहां स्थिति और भी भयानक है, जहां इसका नियंत्रण अथवा स्वामित्व व्यापारिक अथवा राजनीतिक हितों से जुड़े घरानों के हाथों में है। इस दस्तावेज का यह निष्कर्ष है कि विचार की बहुलता और विविधता सुनिश्चित करने के क्रम में जनहित में समाचार माध्यम के स्वामित्व का नियमन करना आवश्यक है।
पेड न्यूज पर आधारित स्थायी समिति की रिपोर्ट में ट्राई और सूचना और प्रसारण मंत्रालय से कहा गया है कि समाचार माध्यम में पेड न्यूज के साथ ही संदिग्ध संपत्तियों के विषय में प्राथमिकता के आधार पर विचार किया जाना चाहिए। इसमें इस बात का प्रस्ताव किया गया है कि समाचार माध्यम के स्वामित्व के प्रश्न पर तत्काल ध्यान दिया जाना चाहिए, इससे पहले कि यह हमारी लोकतांत्रिक संरचना के लिए चुनौती बनकर उभर जाए।
स्थायी समिति ने समाचार माध्यम के संदिग्ध स्वामित्व और पेड न्यूज की समस्या के समाधान के लिए एक उपयुक्त, ठोस और कारगर उपाय लागू करने का सुझाव दिया है। इसे या तो एक वैधानिक मीडिया परिषद के जरिए साकार किया जा सकता है, जिसमें ख्यातिप्राप्त व्यक्तित्वों को शामिल किया जाए अथवा भारतीय रेस परिषद को मुद्रित समाचार माध्यम के लिए एक नियामक निकाय के रूप में काम करने दिया जाए तथा इलेक्ट्रॉनिक समाचार माध्यम के लिए भी एक ऐसा ही निकाय स्थापित किया जाए। इन दोनों विकल्पों में समाचार माध्यम के मालिकों अथवा इच्छुक पक्षों को नियामक निकाय का हिस्सा नहीं होना चाहिए।
इसके अलावा स्थायी समिति ने इस बात पर भी जोर दिया है कि सरकार और संबंधित नियामक निकायों को मीडियाकर्मियों के कार्य की शर्तों में सुधार करना चाहिए, जिसमें अनुबंध आधारित रोजगार और परिश्रमिक परिदृश्य शामिल हो। यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सम्पादकीय कर्मचारियों की स्वायत्तता सुनिश्चित हो।
इस प्रकार यह प्रतीत होता है कि समस्या की प्रकृति और इसके परिमाण के बारे में एक विस्तृत विश्लेषण के जरिए लोगों के सामने और विशेषकर सरकार और संसद के सामने बड़ी चुनौती है। ऐसे में इसके व्यापक सुधार के कार्य तुरंत शुरू किया जाना चाहिए। इसमें विफल रहना व्यापक तौर पर इस आशंका की अभिव्यक्ति होगा कि किसी विशेष हित के लिए ऐसा हो रहा है।
-राष्ट्रीय पत्रकार संघ के द्विवार्षिक सत्र के शुभारंभ के अवसर पर उप-राष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी के उद्बोधन का अंश