कहीं नहीं लग रहा है कि इस लोकतंत्र में पत्रकारिता और उसके कर्णधार किसी भी दृष्टिकोण से लोकतंत्र के 'कथित चौथे स्तंभ ' अब रह गये हैं !
निर्मल कुमार शर्मा/ प्रायः यह कहा जाता है कि लोकतंत्र के क्रमशः चार स्तंभ क्रमशः विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और पत्रकारिता होते हैं, ये चारों स्तंभ एक-दूसरे पर अपनी पैनी नजर रखते हैं, ताकि उक्त में से कोई भी एक स्तंभ अगर निरंकुश होने लगे, अपनी सीमा का अतिक्रमण करने लगे,तो बाकी तीनों अपने संविधान प्रदत्त शक्तियों से उस पर अंकुश लगा कर,लोकतंत्र को बचा लेने का अपना अभीष्ट और पवित्र कर्तव्य कर देते हैं, परन्तु वर्तमानकाल में हो रही घटनाओं को देखते हुए निश्चितरूप से यह नहीं कहा जा सकता कि कम से कम भारत में लोकतंत्र के बारे अक्सर कही जाने वाली 'उक्त बातें 'सही हैं। उदाहरणार्थ उत्तरप्रदेश में पिछले दिनों उसके मठाधीश मुख्यमंत्री तथा मध्यप्रदेश में जोड़-तोड़कर, दल-बदलकर और कांग्रेसी विधायकों को मोलभाव करके उन्हें अरबों रूपये में खरीदकर बनाए गए वहाँ के एक नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री की पुलिस द्वारा की गई निरंकुशता, अहंकार और दमनात्मक कार्यवाही करके जिस तरह उन पत्रकारों और अन्य स्वतंत्र व निष्पक्ष आवाज उठाने वाले लोगों की प्रताड़ना होती रही है, इससे कहीं नहीं लग रहा है कि इस लोकतंत्र में पत्रकारिता और उसके कर्णधार किसी भी दृष्टिकोण से लोकतंत्र के 'कथित चौथे स्तंभ ' अब रह गये हैं !
इसी प्रकार अभी पिछले दिनों कानपुर में तमाम राजनैतिक दलों के छोटे से बड़े नेताओं, पुलिस विभाग के छोटे से बड़े ओहदे के पुलिस कर्मियों व अफसरों, यहाँ तक कि न्यायपालिका के भ्रष्ट व रिश्वतखोर जजों तक द्वारा पालित-पोषित माफिया और एक गुँडे द्वारा 8 पुलिस वालों की निर्मम हत्या करना, फिर चार राज्यों को बगैर किसी बाधा के पार करके उज्जैन में प्रकट होना ! उसको नेताओं और पुलिस की अंदखाने में उसके जबर्दस्त समर्थन की मिली-जुली पूरी कहानी स्पष्ट से जाहिर होती है कि उस माफिया गुँडे पर उक्त तरह के लोगों का कितना जबर्दस्त वरद्हस्त था। मध्यप्रदेश के कुछ चुनिंदा पुलिस कर्मचारियों और अफसरों के सामने आत्मसमर्पण का नाटक करना, फिर उस दुर्दांत अपराधी व हत्यारे को उत्तर प्रदेश पुलिस की एसटीएफ टीम को सौपना..और उज्जैन से कानपुर के रास्ते में कानपुर बॉर्डर की सीमा में पहुँचते ही उत्तर प्रदेश पुलिस के अनुसार उसी गाड़ी, जिसमें वह माफिया बैठा था, कथित गाय-भैंसों के झुंड के अचानक आगे आ जाने से वही गाड़ी पलटी, जिसमें उक्त कुख्यात हत्यारा, मॉफिया विकास दुबे कई तेजतर्रार एसटीएफ के पुलिस वालों के बीच हथकड़ी-बेड़ी में जकड़ा बैठा था,फिर वह हथकड़ी-बेड़ी में जकड़ा अपराधी पुलिस वालों से उनकी पिस्तौल छीनकर उन पर हमलाकर दिया, उससे आत्मरक्षार्थ पुलिस वालों को उसको भागते हुए गोली चलानी पड़ी, परन्तु आश्चर्यजनक रूप से पुलिस की एक भी गोली उसकी पीठ में या पैर के पिछले हिस्से में नहीं लगीं,अपितु सारी गोलियां उसके सीने में लगीं और वह पुलिस के उक्त बिल्कुल कमजोर पटकथा वाली कहानी के अनुसार उसे इनकाउंटर करके मौत की नींद सुला दिया गया ! (उसके पैर भी तो गोली मारकर उसे आंशिक रूप से घायल करके रोका जा सकता था !,लेकिन वास्तविक लक्ष्य था कि इसकी हत्या करना ही है,ताकि कई कथित बड़े लोगों को फँसने के इस 'खतरे 'को मौत की नींद सुलाना अत्यंत ही जरूरी था..और उसी गुप्त आदेश का अक्षरशः अनुपालन भी किया गया !)
विभिन्न समाचार माध्यमों से आ रही खबरों के अनुसार वह लगभग बीसियों सालों से उत्तर प्रदेश के लगभग सभी राजनैतिक दलों के छोटे-बड़े सभी नेताओं के साथ-साथ,पुलिसवालों ( चौकियों, थानों आदि में ),कानपुर नगर निगम, कानपुर विकास प्राधिकरण आदि सभी सरकारी संस्थाओं में वहां के बड़े से बड़े अफसर का वह लाडला बना हुआ था ! यहाँ तक कि वह कानपुर जिला व सत्र न्यायालय के 'कुछ विशेष जजों ' का भी कृपापात्र बना हुआ था ! समाचार पत्रों में आई खबरों के अनुसार समाजवादी पार्टी,बहुजन समाज पार्टी,भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस आदि सभी पार्टियों के नेता चुनाव में खड़े होने के बाद चुनाव प्रचार से पूर्व एक बार उस बाहुबली, गुँडे मॉफिया स्वर्गीय विकास दुबे के ड्योढ़ी पर अपनी चुनावी सफलता के लिए कम से कम एक बार 'जीत का आशीर्वाद 'लेने जरूर जाते थे ! इसका मतलब कानपुर का यह मॉफिया डॉन विगत् पिछले बीसियों सालों से जो भी उत्तर प्रदेश की सत्तारूढ़ सरकार रही हो,उसके कर्णधारों और प्यादों का प्यारा और खासम-खास रहा है,चूँकि उसके पास उक्त सभी राजनैतिक दलों के कथित जनसेवकों का कच्चा चिट्ठा था,इसलिए बड़े-बड़े पुलिस अफसरों और लगभग हर राजनैतिक दलों के उन नेताओं तथा न्यायालय के उन सभी जातिवादी, घूसखोर व भ्रष्ट जजों के लिए,जो उसके द्वारा लगातार किए जाते रहे 60 अपराधों के करने के बावजूद भी जमानत पर जमानत दिए जा रहे थे,यह निहायत जरूरी था कि उसका 'किसी भी तरह से 'खात्मा कर दिया जाय ! ताकि 'न रहे बाँस न बजे बाँसुरी ! 'सब सबूत एक ही झटके में खत्म,न कोई एफआईआर, न कोई पेशी की झंझट,न कोई जिरह,न सफाई का मौका,न कोई तारीख,न कोई जमानत, न कोई बेल ! न कोई कठोर फैसला करने की मजबूरी, न आजीवन कारावास, न फाँसी,सभी झंझट एक 'एनकाउंटर ' में निबटाकर, न्यायाधीशों की कमी से जूझते न्यायालयों के काम को बिल्कुल हल्का कर दिया गया !
अब उक्त वर्णित तथ्यों को ध्यानपूर्वक विश्लेषण किया जाय तो निश्चित रूप से यह परिलक्षित होता है कि वर्तमान समय के भारत में पत्रकारिता और पत्रकार तो वैसे ही 99 प्रतिशत तक सत्ता के चरणों में लोट रहे हैं, बाकियों को पुलिस वाले अपनी लाठियों के बल पर 'उनकी औकात 'ठीक से बता दे रहे हैं ! अब उक्त घटना से लोकतंत्र के तीसरे स्तंभ न्यायालयों की औकात और निरर्थकता उत्तर प्रदेश के पुलिसवाले अपनी गढ़ी गई पटकथा के अनुसार फिल्मी स्टाइल में किए गए एनकाउंटर से साबित कर चुके हैं,इससे पूर्व उत्तर प्रदेश का अपराधिक पृष्ठभूमि का मठाधीश मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश विधानसभा में खुद को 'कथित राजनैतिक विद्वेष से उस पर मुकदमें किए गये थे,अतः उनको निरस्त किया जाता है ',का अजीबोगरीब तर्क देकर अपने ऊपर किए गए सारे मुकदमें वापस करके लोकतंत्र के तीसरे स्तंभ 'न्यायपालिका 'का बोझ हल्का कर चुका है,लेकिन इससे एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न उभरता है कि इस देश के विभिन्न राज्यों के तमाम विधासभाओं के तथा वर्तमान लोकसभा के 43 प्रतिशत सभी दागी,बलात्कारी, मॉफिया व हत्यारे विधायक और सांसद भी,दंगाई व अपराधी,उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जैसे तर्क देकर कि 'उन पर लगाया गया आरोप भी राजनैतिक बदले की भावना से लगाया गया है,वस्तुतः वे निर्दोष हैं अतः उन्हें भी निरपराध मानकर उन पर किए गए सारे मुकदमें वापस ले लिए जाँय ' तो उस स्थिति में इस देश में उपस्थित पहले से ही बीमार लोकतंत्र तो बेमौत ही मर जाएगा !
आज भारतीय लोकतंत्र अपनी अंतिम साँसें गिन रहा है ! इस संबंध में सोशल मिडिया पर एक बहुत ही सटीक, सार्थक तथा यथार्थवादी संदेश आजकल बहुत ही वायरल हो रहा है कि 'कानपुर के गुँडा-मॉफिया विकास दुबे जैसे एक छोटे साँप को उत्तर प्रदेश पुलिस के एसटीएफ जवानों ने एनकाउंटर करके तो मार दिए, लेकिन इस देश में हर जगह जो बड़े-बड़े अजगर टहल रहे हैं, जिन्होंने कानपुर के उस गुँडा-मॉफिया विकास दुबे जैसे उस छोटे साँप को अब तक दूध पिला रहे थे, जैसे पुलिस के बड़े अफसरों,बड़े ब्यूरोक्रेट्स,भ्रष्ट और करप्ट जज और लगभग सभी राजनैतिक दलों के नेताओं का एनकाउंटर कब होगा ? 'आखिर 'उस छोटे साँप के पालक ' इन बड़े अपराधी अजगरों का अपराध तो उस छोटे साँप से बहुत ही ज्यादे भयावह, घातक और संगीन हैं। वास्तविकता यही है कि ये सभी बड़े अजगर उस छोटे साँप को इसीलिए जल्दी से जल्दी मौत के घाट उतरवा दिए,ताकि 'वह नन्हाँ साँप इन बड़े-बड़े अजगरों का कहीं असली भेद न खोल दे ! 'अब भारत में सदा की तरह गुँडों,माफियाओं, भ्रष्टाचारियों ,पुलिस,प्रशासन और नेताओं की त्रिवेणी रूपी भ्रष्टाचार की दरिया सदा की तरह अविराम रूप से अनन्त काल तक बहती ही रहेगी ! फिलहाल भेद खोलनेवाला छोटा साँप एनकाउंटर करके 'तुरंत न्याय ' के तहत न्यायपालिका के कार्य को भी हल्का करते हुए सदा के लिए 'चिरनिंद्रा ' में सुला दिया गया है,अब सभी बड़े अजगर निश्चिंत होकर सो गये हैं।भारतीय लोकतंत्र फिर भी आश्चर्यजनक रूप अभी भी 'महान ' ही है !..और भविष्य में भी 'महान ' ही रहेगा ! भविष्य में अब भारत महान के कथित लोकतंत्र में 'पुलिसियान्याय ' अदालतों के बीसियों सालों तक लटक-झटककर देनेवाले 'देर से मिलनेवाले न्याय ' से कहीं ज्यादे लोकप्रिय न हो जाय ?