Menu

 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

Print Friendly and PDF

भारतीय मीडिया ने झूठ बोलने को आसान बनाया

जन मीडिया का अप्रैल अंक

डॉ लीना / जन मीडिया का अप्रैल (109 वां) अंक अपने आप में बहुत ही महत्वपूर्ण है। महत्वपूर्ण इसलिए कि अप्रैल का जो महीना होता है वह अपने आप में महत्वपूर्ण होता है।  सामाजिक क्रांति का बीज बोने वाले प्रबुद्ध राष्ट्र निर्माता एवं भारतरत्न बाबा साहब डॉक्टर भीम राव अंबेडकर, जो भारत के संविधन निर्माता के रूप में विख्यात है उनकी जयंती 14 अप्रैल को पूरा विश्व मानता है। बाबा साहब ने संविधान की रचना की थी। संविधान के जनक थे बल्कि एक ऐसे पत्रकार थे, संपादक थे, जिन्होंने भारतीय मीडिया के ऊपर करारा तमाचा मारा था और जवाब देने के लिए कई पत्र- पत्रिकाओं का सम्पादन -प्रकाशन भी किया था। बात मूकनायक की करें या बहिष्कृत भारत, समता, जनता या प्रबुद्ध भारत की करें तो हर पत्र में बाबा साहब ने मीडिया को आईना दिखाने का काम किया था. भारतीय  मीडिया, जो बहुजनों के सवालों से मुंह मोड़ उनकी की आवाज नहीं बन रही थी। और सालों बाद जन मीडिया के अप्रैल अंक में भी भारतीय मीडिया की झूठ की पोल खोली है। गंभीर सवाल उठाते हुए झूठ बोलते भारतीय मीडिया के ऊपर हमला किया है जन मीडिया ने।

अपने  पंच लाइन में ‘हमारा समाज, हमारा शोध’ शब्द को सार्थक कर इस अंक में मुख्यधारा की मीडिया के खिलाफ अपना आक्रोश प्रकट किया है. कवर पेज की बात करें तो कवर को काला किया है. पीले रंग से सवालों को शीर्षक, भारतीय मीडिया ने झूठ बोलने को आसान बनाया, आधार को अनिवार्य मानने की लोगों की धारणा को मजबूत बनाता मीडिया, चीन में अंग्रेजी भाषा और उसकी भारतीय हिंदी मीडिया में खबरें और बिजनेस अखबार और किसान आंदोलन छापा है . कवर पेज पर बैकग्राउंड काला रखकर भारतीय मीडिया के प्रति आक्रोश जताया है कि कब तक जनता के सवालों से, जनता के मुद्दों से मुंह फेरते हुए, झूठ बोलते रहोगे। जन मीडिया के कवर पेज पर अपने मास्ट हेड को सिर्फ हर बार की तरह छोड़ रखा है. बैक पृष्ठ को भी काला किया है यहां पर एक विज्ञापन भी दिया गया है विज्ञापन के हिस्सा ज्यादा रंगीन नहीं है लेकिन उसके चारों तरफ बाउंड्री दी गई है उसे भी काले रंग में दिया है. 

शोध आलेख ‘भारतीय मीडिया ने झूठ बोलने को अपना आसान बनाया’ में आज मुख्यधारा की मीडिया के झूठ फ़ैलाने को सवाल बनाया गया है . लेखक ऋषि कुमार सिंह ने  ‘सरकार का 100 वीं किसान रेल चलाने का दावा’ खबर को आलेख के लिए चुना है और साबित किया है कि मीडिया ने खबर की सच्चाई को किस कदर नजरंदाज किया .लेखक शोध के साथ बताते हैं कि ‘ये सारी ख़बरें सच्चई से कोसो दूर थी. लेखक ने विस्तार से खबर को लेकर पोल खोली है। 100वीं  किसान रेल की बात कैसे आई, 100वीं  किसान रेल जश्न क्यों मनाया गया और इससे किसे फ़ायदा हुआ के तहत खबर का विश्लेषण करते हुऐ बताया है कि भारतीय मीडिया झूठ की ओर बढ़ रही है। लेखक की माने तो, यही वजह है कि किसी देश में मीडिया की स्वतंत्रता को लोकतंत्र की सेहत का पैमाना माना जाता है ।जिस तरह से भारतीय मीडिया सरकार का माउथपीस बना हुआ है या बनने के लिए मजबूर किया गया है, वह भारत में प्रेस की साख या विश्वसनीयता को दांव पर लगाने वाला है।

संजय कुमार बड़ोदिया ने आधार को अनिवार्य बनाने की लोगों की धारणा को मजबूत बनाता मीडिया, आलेख में स्टेशन के जरिए बताने की कोशिश की है कि किस तरह से भारतीय मीडिया आधार को अनिवार्य माननीय की लोगों की धारणा को अपने खबरों के जरिए मजबूत बनाता है। आधार को बैंक से जोड़ने का मसला हो या फिर स्कूल एडमिशन के लिए शहर व काम, वह सूचना है जिसमें लोगों का नुकसान ही हो आधार की पूरी सूचनाओं को बांटने पहुंचाने में मीडिया एक मजबूत धारणा बनाते हुए खबर के जरिए उत्तर बनाता मिलता है, कैसे मीडिया खबर को गलत ढंग से पेश करती है। इसका विश्लेषण लेखक ने पेश किया है।  दैनिक जागरण की वेबसाइट पर 12 नवंबर 2020 को प्रकाशित खबर में कहा गया है कि 31 मार्च 2021 तक सभी बैंक खाते को आधार से जोड़ दिया जाएगा, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सभी बैंकों को यह निर्देश दिए लेकिन पूरी खबर में कहीं भी वित्त मंत्री द्वारा बैंक खातों को आधार से जोड़ने के निर्देश के देने के पीछे कोई ठोस कारण नहीं दिखता है लेकिन फिर भी वित्त मंत्री आधार को बैंक खातों से जोड़ने पर जोर दे रहे हैं सबसे महत्वपूर्ण था कि इस खबर को लिखने वाले के साथ ही शायद इस मंत्री भी सितंबर 2018 में आधार कार्ड पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए महत्वपूर्ण निर्णय को भूल गये है। आधार को लेकर सटीक आकलन किया गया है।

जन मीडिया के संपादक अनिल चमडिया ने चीन में अंग्रेजी भाषा और उसकी भारतीय हिंदी मीडिया में खबरें शीर्षक वाले अपने आलेख को 3 जनवरी 2021 भारत के कई प्रमुख समाचार पत्रों में प्रकाशित खबर प्रमुखता से प्रकाशित की गई कि चीन में अंग्रेजी भाषा के प्रति क्रेज बढ़ रहा है, चीन में ब्रिटिश संस्था अंग्रेजी भाषा का टेस्ट ले रही है, यह क्रेज  इस कदर बढ़ रहा है कि चीन में अगले 2 साल में अंग्रेजी का कारोबार पांच लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है। श्री चमड़िया ने अध्ययन कर भारतीय मीडिया के इस खबर की पोल खोली है और विस्तार से चीन के अंदर भाषा के सवाल और भाषा की स्थिति को रेखांकित किया है। यह शोध आलेख भारतीय मीडिया के नजरिये एवं चरित्र को उजागर करता है।

वहीं वरिष्ठ पत्रकार विजय चावला का आलेख बिजनेस अखबार और किसान आंदोलन, गंभीर सवाल के साथ-साथ बिजनेस अखबार की भूमिका और किसान आंदोलन को लेकर सवाल छोड़ जाता है।  किसान आंदोलन के समर्थन में बड़े मीडिया पर भी सवाल उठाया है तीन अखबारों की चर्चा करते हुए लिखते हैं कि अपने-अपने तरीकों से सरकार का समर्थन किया और तीनों में से किसी ने भी दमनात्मक कदम उठाने की सलाह नहीं दी है और न यह कहा कि  इन तीनों कानूनों को वापस लेना चाहिए बिजनेस स्टैंडर्ड ने अधिक आगे बढ़कर इस झमेले से निकलने के कई सुझाव दिये लेकिन इकोनॉमिक्स टाइम्स ने केवल किसान संगठनों की ही आलोचना की है, बिजनेस लाइन ने भी इस ओर कोई ठोस राय नहीं दी है। लेखक कहते हैं देश की बड़ी पूंजी भी अभी दुविधा में है कि इस समस्या को कैसे हल किया जाए।

पत्रिका -जन मीडिया

संपादक - अनिल चमडिया

अंक-109, अप्रैल 2021

मूल्य- 20 रुपये

प्रकाशन- सी-2, पीपल वाला मोहल्ला, बावली एक्सटेंशन, दिल्ली 42

मोबाइल नंबर 96 5432 5899

Go Back

Comment

नवीनतम ---

View older posts »

पत्रिकाएँ--

175;250;e3113b18b05a1fcb91e81e1ded090b93f24b6abe175;250;cb150097774dfc51c84ab58ee179d7f15df4c524175;250;a6c926dbf8b18aa0e044d0470600e721879f830e175;250;13a1eb9e9492d0c85ecaa22a533a017b03a811f7175;250;2d0bd5e702ba5fbd6cf93c3bb31af4496b739c98175;250;5524ae0861b21601695565e291fc9a46a5aa01a6175;250;3f5d4c2c26b49398cdc34f19140db988cef92c8b175;250;53d28ccf11a5f2258dec2770c24682261b39a58a175;250;d01a50798db92480eb660ab52fc97aeff55267d1175;250;e3ef6eb4ddc24e5736d235ecbd68e454b88d5835175;250;cff38901a92ab320d4e4d127646582daa6fece06175;250;25130fee77cc6a7d68ab2492a99ed430fdff47b0175;250;7e84be03d3977911d181e8b790a80e12e21ad58a175;250;c1ebe705c563d9355a96600af90f2e1cfdf6376b175;250;911552ca3470227404da93505e63ae3c95dd56dc175;250;752583747c426bd51be54809f98c69c3528f1038175;250;ed9c8dbad8ad7c9fe8d008636b633855ff50ea2c175;250;969799be449e2055f65c603896fb29f738656784175;250;1447481c47e48a70f350800c31fe70afa2064f36175;250;8f97282f7496d06983b1c3d7797207a8ccdd8b32175;250;3c7d93bd3e7e8cda784687a58432fadb638ea913175;250;0e451815591ddc160d4393274b2230309d15a30d175;250;ff955d24bb4dbc41f6dd219dff216082120fe5f0175;250;028e71a59fee3b0ded62867ae56ab899c41bd974

पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना