इर्शादुल हक़ / पटना / हिंदुस्तान के पटना एडिशन के कथित स्टिंग या पड़ताली खबर का आज तीसरा दिन है. लेकिन आश्चर्य की बात है कि इस कथित पड़ताल में कोई ऐसी बात नहीं जो नयी हो. तुर्रा यह कि जिसे हिंदुस्तान के पटना सम्पादक स्टिंग कह रहे हैं, न तो (उसमें संलिप्त लोगों)उन डाक्टरों के नाम को उजागर किया गया है और न ही उनकी पहचान. हद तो यह है कि इस खबर को पहले पन्ने पर आठ कॉलम में ऐसे छापा जा रहा है, जैसे हिंदुस्तान ने कोई ऐतिहासिक कारनामा अंजाम दे दिया हो.अखबार के कथित स्टिंग के अनुसार अलग अलग शहरों की लेडी डॉक्टर अबोर्शन कराने का काम करती हैं.
इललिगल अबोर्शन में मनचाही रकम लेती हैं. महिलाओं को बताती हैं कि तुम प्रिग्नेंट हो और अबोर्शन करवा लो.फिर आज इस अखबार ने कथित रूप से स्टिंग किया है. यह बताया गया है कि कुछ डाक्टरों के यहां दलालों का दबदबा है. वे पैसे ऐंठते हैं. दलाल के माध्यम से नम्बर लगाइए तो एक दिन बाद नम्बर मिल जायेगा वरना महीना भर इंताजर करना पड़ेगा फिर वही सवाल है कि कौन है ये डॉक्टर? इस कथित स्टिंग में आपको डॉक्टर का नाम नहीं बताया गया है. फिर स्टिंग काहेका? क्या यह स्टिंग है? क्या हिंदुस्तान के पाठकों को इसमें कोई ऐसे जानकारी मिली जिससे वे अब तक अंजान थे? बिल्कुल नहीं. तो फिर यह स्टिंग तमाशा काहे का ? ऐसी खबरें छापना पाठकों को गुमराह करना है.
वहीं दूसरी तरफ पूरी डॉक्टर बिरादरी को संदेह के घेरे में लाना है. मैं अपने अनुभवों से कह सका हूं ( ब्लिक आप भी) कि अधिकांश डाक्टर डाकू बन चुके हैं, पर आपने अगर कोई कारनामा करके उन डाकुओं के चेहरे से नकाब उठा दिया है तो नाम छुपाते क्यों हैं? यह कौन सी पत्रकारिता है?आपने स्टिंग किया है तो कौन आपको उन डॉक्टरों के नाम उजागर करने से कौन रोक रहा है? या फिर आप उस डॉक्टर से डर रहे हैं. या फिर यह कोई सौदेबाजी का मामला है?जहां तक हिंदुस्तान की जिस रिपोर्टर को यह काम सौंपने की बात है, तो आम तौर पर ऐसा ही होता है कि स्टिंग के लिए अंडर कवर रिपोर्टर लगाया जाता है ताकि स्टिंग में कोई बाधा न आये. और जहां तक इस खबर को स्टिंग होने का दावा करने की बात है तो इस राज्य के एक एक मरीज के परिजन को पता है कि बिहार के डॉक्टर का व्यवहार कैसा है.
इन तीन दिनों में अखबार ने कोई ऐसी छुपी खबर नहीं उजागर की जिसके बारे में पाठकों को जानकारी नहीं है. बल्कि अखबार ने जितनी जानकारी जुटाई है उससे कहीं ज्यादा जानकारी आम मरीजों को है.फिर सवाल है कि ऐसी खबर देने का तुक ही क्या है जिसमें Who, Where जैसे प्रश्नों का जवाब ही न मिले.सम्पादक महोदय को बिहार की खबरों की दुनिया का पता शायद है ही नहीं. क्योंकि कुछ ही महीने पहले एक हिंदी अखबार ने झारखंड और बिहार के क्लिनिकों, डाक्टरों के संजाल से होने वाली लूट का पर्दा उठाया था.