आर्थिक अपराध का आरोप झेल रहे ये नामचीन संपादक अपने संपादकीय में देशवासियों को देश की सुरक्षा का उपदेश दे रहे हैं!
श्रीकृष्ण प्रसाद / भारतीय प्रजातंत्र की खूबियों में एक खूबी यह है कि शराब पीने वाला व्यक्ति दूसरे शराबी को शराब से तौबा करने की सलाह दे रहा है। सिगरेट पीने वाला व्यक्ति दूसरे पीनेवालों को सिगरेट के दुष्प्रभाव की बात बता रहा है। ऐसे व्यक्तियों की श्रेणी में देश के प्रमुख हिन्दी अखबार दैनिक हिन्दुस्तान और दैनिक जागरण के नामचीन संपादकगण भी हैं।
बिना निबंधन वाले दैनिक अखबार का संपादन करने, जालसाजी, फरेबी और धोखाधड़ी के बल पर सरकार से सरकारी विज्ञापन प्राप्त कर सरकार को करोड़ों में राजस्व को चूना लगाने के गंभीर आर्थिक अपराध के आरोपों का सामना इनदिनों दैनिक हिन्दुस्तान के कथित नामचीन संपादक शशि शेखर, अकु श्रीवास्तव, बिनोद बंधु, दैनिक जागरण के संपादक संजय गुप्ता, सुनील गुप्ता, शैलेन्द्र दीक्षित और देवेन्द्र राय कर रहे हैं। परन्तु इन नामचीन अभियुक्त संपादकों की दिलेरी को देखें। इन संपादकों को कानून और न्याय प्रक्रिया में कोई आस्था नहीं है। सभी अभियुक्त संपादकगण अपनी-अपनी कुर्सी पर विराजमान हैं और अपने-अपने अखबारों में नित्य समाचार और संपादकीय के जरिए देश को देश के दुश्मनों से रक्षा करने की शिक्षा दे रहे हैं। वेलोग अपने-अपने अखबारों में देसवासियों को देश को मजबूत करने का उपदेश देरहे हैं। यह भारतीय प्रजातंत्र और भारतीय मीडिया की असली तस्वीर है।
बिहार के 200 करोड़ के दैनिक हिन्दुस्तान सरकारी विज्ञापन घोटाला (मुंगेर) और करोड़ों के दैनिक जागरण सरकारी विज्ञापन घोटाला (मुजफ्फरपुर) में उपर वर्णित सभी नामचीन संपादक भारतीय दंड संहिता की धाराएं 420।471।476 और प्रेस एण्ड रजिस्ट्र्ेशन आफ बुक्स एक्ट,1867 की धाराएं 8।बी0।,14 एवं 15 के तहत नामजद अभियुक्त हैं। सभी अभियुक्त नामचीन संपादकों पर आरोप हैं कि उनलोगोंने जालसाजी, फरेबी और धोखाधड़ी के बल पर राज्य और केन्द्र सरकारों से सरकारी विज्ञापन प्राप्त कर देश के राजस्व को लूटने का काम किया है। भारतीय मीडिया के इन अभियुक्त नामचीन संपादकों की दिलेरी ही कहा जाए कि आज भी संपादक की कुर्सी पर बैठकर देश की कानून व्यवस्था और न्याय प्रक्रिया को चिढ़ा रहे हैं।
इन अभियुक्त नामचीन संपादकों का दुस्साहस भी देखनेको बनता है कि गंभीर आर्थिक अपराध के आरोप का सामना पुलिस और न्यायालय में कर रहे हैं,, दूसरे ओर सभी संपादकगण अपने-अपने अखबारों में आपराधिक मामलों में अभियुक्त बननेवाले न्यायधीशो, मंत्रियों, माननीय विधायकों और सांसदों और सरकारी पदाधिकारियों को अपना-अपना पद छोड़ने से जुड़ी खबरों को प्रमुख्यता के साथ अपने-अपने अखबारों के प्रथम पृष्ठ और संपादकीय में प्रकाशित कर रहे हैं। इन अभियुक्त नामचीन संपादकों की हिम्मत भी देखनेको बनती है कि अपने खुद आर्थिक अपराध के मुदकमों में नामजद अभियुक्त हैं और संपादक की कुर्सी पर बैठकर देश को देश के दुश्मनों से बचानेकी खबर छाप रहे हैं और संपादकीय में देशवासियों को देश की सुरक्षा की पाठ पढ़ा रहे हैं।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय के माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय से यह लेखक अपील करता है कि माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय देश से जुड़े ऐसे गंभीर मामलों में अपने स्तर से हस्तक्षेप करें और मामलों में संज्ञान लेकर उचित कानूनी काररवाई शुरू करें। अगर विलंब हुआ, तो अभियुक्त नामचीन संपादकगण अखबार के शक्तिशाली हथियार का अपने और अपने मालिक के हित में दुरूपयोग कर देश के लोकतंत्र का नाश कर देगा।
भारत के पाठक समझना चाह रहे हैं कि आखिर भारत में किस प्रकार का लोकतंत्र कायम है और किस प्रकार भारतीय पत्रकारिता प्रेस की स्वतंत्रता की आड़ में देश के लोकतांत्रिक ढ़ाचे को किन-किन स्तर पर आधात कर रही है?( ये लेखक के अपने विचार है )।