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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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सत्ता से असहमत यूट्यूबर्स के लद जाएंगे दिन !

विनीत कुमार/ नब्बे के दशक में जब निजी टेलिविजन कार्यक्रमों और बाद में चैनलों की लोकप्रियता के साथ-साथ उसकी विश्वसनीयता बढ़ी तो दूसरी तरफ पब्लिक ब्रॉडकास्टिंग की साख कम हुई. एक समय ऐसा भी आया कि रॉयटर जैसी एजेंसी ने जब इसे लेकर सर्वे किया तो दूरदर्शन से कहीं ज़्यादा आजतक को विश्वसनीय पाया. निजी चैनलों का पूरा कारोबार इसी ज़मीन पर फला-फूला कि हमें देश, लोकतंत्र और आज़ाद आवाज़ों की ज़्यादा चिंता है.

मशरूम की तरह फैल रहे निजी चैनलों के लिए अलग से कोई नियम-कानून थे. जब ये एकदम से तेजी से पनपते चले गए तो उन्हें नियंत्रित करने के लिए केबल एक्ट 1995 लाया गया. अब इन चैनलों को नियंत्रित किया जा सकता था.

मौज़ूदा दौर में इन निजी चैनलों की स्थिति विश्वसनीयता के मामले में दूरदर्शन से भी खराब होती चली गयी. ये न केवल सत्ताधारी दल का समर्थन करने पर उतर आए बल्कि उनका मुख्य उनके हिसाब से नरैटिव तैयार करना हो गया. ऐसा करने से पत्रकारिता, भाषा, अनुभव और तथ्य कहां ठहरते हैं, इसकी चिंता तक नहीं करते. अब निजी चैनल का मतलब जो सत्ता के पक्ष में बात करे.

लेकिन पत्रकारिता अब सिर्फ प्रिंट, रेडियो और टीवी तक महदूद नहीं रह गयी है. अपने समय के मीडिया के बड़े चेहेर यूट्यूब और सोशल मीडिया के दूसरे प्लेटफॉर्म पर न केवल सक्रिय हैं बल्कि ऐसा पहली बार हुआ है कि राजस्व के मोर्चे पर भी वो मज़बूत हो रहे हैं. अपनी सामग्री के बूते वो राजस्व पैदा करने की स्थिति में हैं और सत्ता की लगातार आलोचना करने में यह मॉडल और मज़बूती लेता रहा है. यानी सत्ता से असहमति रखनेवाले दर्शकों-श्रोताओं की बड़ी संख्या इन्हें अनुदान-सब्सक्रिप्शन के जरिए सहयोग करती है.

जिस तरह एक समय निजी समाचार चैनल सरकार द्वारा तय किए गए प्रसारण नियम के दायरे से बाहर रहे, अभी तक ऐसे यूट्यबर्स और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स भी रहे हैं. यूट्यूबर्स पिछले कुछ साल से सत्ता की कमियों को बारीक़ी से सामने लाते रहे हैं और कई बार असहमति कि नरैटिव भर से अपना बड़ा दर्शक वर्ग तैयार कर ले रहे हैं. ऐसे में निजी समाचार चैनलों के नतमस्तक हो जाने के बावज़ूद सत्ता के सिरे से बात पूरी बनती दिखायी देती नहीं.

नया, आनेवाला ब्रॉडकास्ट कानून इसी की काट है. इसमें यूट्यूबर्स, सोशल मीडिया एन्फ्लूएंसर्स और ओटीटी प्लेटफॉर्म भी इसके दायरे में आएंगे और अभी की तरह उनका बोलना-बताना और राजस्व पैदा करना आसान नहीं रह जाएगा. पहले का तरह कमायी भी नहीं रह जाएगी.

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सम्पादक

डॉ. लीना