सरोज कुमार / बकौल श्रीकांत जी (Shree Kant) के शब्दों में...वे मुक्त हो गए...अगस्त 1986 से हिन्दुस्तान अखबार से जुड़े श्रीकांत जी 31 जनवरी को इससे औपचारिक रुप से रिटायर हो गए...अब वे किन चीजों से मुक्त हुए, इसे समझा जा सकता है और वे इसे ज्यादा बेहतर जानते होंगे...लेकिन जाते-जाते बेबाकी से वे जरुरी बातें कह गए, जिसकी मुझ जैसे को उम्मीद रहती है....उन्होंने कहा कि वक्त बदलता है, तकनीक बदलती है, लेकिन मुद्दा वहीं रहता है...आप किनके साथ हैं, किनके लिए लिख रहे हैं, किनको अभिव्यक्त कर रहे होते हैं...
दफ्तर में आयोजित फेयरवेल में सबके सामने ये चीजें कही मसलन कि बहुत ही कम वेतन देकर लड़कों को खटवाते हैं, सालों काम करने वालों को जब चाहा निकाल बाहर कर दिया जाता, आखिर सब ठीक कहां है...मीडिया हाउसों में संपादक अब 'मंडी' का नासिरुद्दीन शाह हो गए है... अब पता नहीं किसी को क्या फर्क पड़ा... लेकिन हां फर्क पड़ा...उन युवाओं को पड़ा जिनकी बातें वे जाते-जाते कर गए...

उन हमसफर साथियों को पड़ा जिन्होंने उनके साथ वक्त बांटा, फाकामस्ती की, पत्रकारिता की, इक यात्रा की...साथ हुए...उन सभी को पड़ रहा है
जो बेहतरी का सपना देखते आ रहे हैं...देख रहे हैं...आज वे खुद रुंधे गले से बोलते रहे...हम जैसे सभी को भावुक कर गए...उम्मीद करता हूं... उन्हीं के शब्दों में अगर मुक्त हुए हैं तो आगे इसी मुक्ति से बहुत चीजें देखने को मिलेगी...जो कि वे हमेशा कहते भी रहे हैं कि वे सोशल चेंज के लिए ही लिखते हैं...सच में मुद्दा वहीं है...जो उनके शुरुआती दिनों में था...अब भी वहीं है...बल्कि और गहरा हो गया है...
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