प्रेमकुमार मणि/ बिहार में पत्रकारिता के पतन की पराकाष्ठा है कि आज हिंदी दैनिक 'हिंदुस्तान ' में मुजफ्फरपुर शेल्टर होम से सम्बंधित खबर सोलहवें पृष्ठ पर नीचे कोने में दुबकी -सी प्रकाशित है . दूसरे अख़बार मैंने नहीं देखे हैं कि बता सकूँ वहां क्या हाल है . हिंदुस्तान में मुख्य खबर निर्भया मामले में हुई सजा के बारे में है .
जहाँ तक मेरी समझ है पटना और बिहार से प्रकाशित सभी अख़बारों और अन्य मीडिया साधनों केलिए उससे कहीं बड़ी खबर मुजफ्फरपुर शेल्टर होम मामले में 25 जिला अधिकारीयों समेत 71 अफसरों के अनुलग्न होने संबंधित सीबीआई की जांच रिपोर्ट और उस पर सुप्रीम कोर्ट का अनुदेश है . कायदे से इसके बाद मौजूदा बिहार सरकार को तत्काल इस्तीफा कर देना चाहिए था या फिर केंद्रीय सरकार को इसे बर्खास्त कर देना चाहिए था . इतने बड़े पैमाने पर अफसरों की संलग्नता अथवा उदासीनता इस बात का परिचायक है कि इस मामले को राजनैतिक संरक्षण था . चारा मामला या यहां तक कि निर्भया मामले से इसकी गंभीरता सौ गुना अधिक है ;क्योंकि यह दर्जनों बालाओं के यौन शोषण का मामला है ,जिसमे सरकारी तंत्र व्यवस्थित रूप से शामिल है . इतनी बड़ी घटना पर सीबीआई की रिपोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की पहल की खबर को इस तरह दबाना साजिश ही कहा जाना चाहिए . होना तो यह चाहिए था कि सीबीआई की जांच रिपोर्ट को सम्पादकीय लेख या टिप्पणी का विषय बनाया जाता . क्योंकि यह शातिराना रिपोर्ट है . जान बूझ कर सीधे सरकार से जुड़े राजनैतिक लोगों को बचाया गया है . इस पर आवाज़ उठाना तो दूर की बात ; खबर को ही दबा दिया गया . यह कौन -सी पत्रकारिता है ?. थू ….