राजकुमार सोनी/ आज से डेढ़ साल पहले जब छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार थीं तब मेरा तबादला कोयम्बटूर ( तमिलनाडु ) कर दिया गया था. यहां कुछ दिन मैंने संपादकीय प्रभारी के तौर पर काम किया, लेकिन ठीक विधानसभा चुनाव के पहले जयपुर में पदस्थ एक वरिष्ठ संपादक ने मुझसे फोन पर कहा कि मैंने चाउंर वाले बाबा... ओ... दारूवाले बाबा जैसा राजनीतिक गाना क्यों गाया? संपादक का कहना था कि एक पत्रकार अगर प्रेमगीत गा लेगा तो फब जाएगा, लेकिन उसे राजनीतिक गाना नहीं गाना चाहिए.
खैर... महान मुनीम संपादक से लंबी बहस के बाद मुझे नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया. इधर आज यह खबर मिली हैं कि राजस्थान पत्रिका के कोयम्बटूर ब्रांच पर हमेशा-हमेशा के लिए ताला लग गया है तो दिल को थोड़ी तसल्ली मिली.
कोयम्बटूर ब्रांच के बंद हो जाने की खुशी इसलिए भी हैं क्योंकि इसमें उन लोगों का ही तबादला किया जाता था जिन्हें सजा देनी होती थीं. जब मैं कोयम्बटूर ज्वाइन करने पहुंचा तब पता चला कि वहां पहले से ही ऐसे साथी कार्यरत थे जिन्होंने मजीठिया वेतनमान के लिए संस्थान के खिलाफ कोर्ट में मामला दर्ज कर रखा है. जो भी साथी इधर-उधर के इलाकों से यहां पहुंचते थे उन्हें यह महसूस होता था कि वे अंडमान-निकोबार पहुंच गए हैं. मैं भी इस द्वीप समूह का हिस्सा था...मगर थोड़े दिनों के लिए.
इस बीच संस्थान में ही कार्यरत कुछ वरिष्ठजन मुझे यह भी समझाइश देते थे कि अगर मैं डाक्टर रमन सिंह और सुपर सीएम से क्षमा मांग लूंगा तो... चुनाव परिणाम के बाद मेरी रायपुर वापसी संभव है. ये वरिष्ठजन मुझे माफी मांगने वाला वीर सावरकर बनाना चाहते थे, लेकिन उनका यह ख्वाब पूरा नहीं हो पाया.
इधर छत्तीसगढ़ के अमन और इंसाफ पसंद संवाददाताओं की तरफ से जो खबर लगातार मिल रही है वह यह है कि छत्तीसगढ़ में पत्रिका अखबार के बहुत से दफ्तर बंद कर दिए गए हैं.कई कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया गया है. एक अच्छे-खासे अखबार का मरन्नासन अवस्था की तरफ बढ़ना और साथियों की नौकरी चले जाने का उपक्रम दुखदाई तो है लेकिन क्या किया जा सकता है ?