शकील अख्तर/ कुछ खबरें हमारे मेन मीडिया से बिल्कुल गायब हैं।
एक, कल पहलगाम, श्रीनगर और घाटी के कई इलाकों में आतंकवाद के खिलाफ प्रदर्शन हुए। अस्पतालों में घायलों को खून देने के लिए स्थानीय लोगों की लाइन लगी रही।
दूसरे, विपक्ष और अन्य संगठनों ने कश्मीर में आतंकवाद के विरोध और शोक में आज बंद का कॉल दिया है।
पहली बार है की मीर वाइज उमर फारूक और पीडीपी की चीफ महबूबा मुफ्ती ने भी बंद का कॉल दिया है।
यह दोनों खबरें न कल टीवी चैनल पर दिखीं और ना आज अखबारों में।
मीडिया का मुख्य काम है सही सूचना देना।
मणिपुर पर भी उसने सूचनाओं को अपने हिसाब से रोका और भड़काने वाली इकतरफा खबरें प्रसारित कीं।
कश्मीर में इस घटना के बाद दो चीजें सबसे बड़ी है एक जो पाकिस्तान चाहता है कि शेष भारत में तनाव बड़े उसे नहीं होने देना और दूसरा पाकिस्तान उसके साथ बाकी अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह मैसेज की विपक्षी दलों के साथ पूरी जनता भी एकजुट है।
नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने गृहमंत्री अमित शाह से बात करके अच्छा किया।
सरकार को भी विपक्ष को विश्वास में लेना चाहिए और आल पार्टी मीटिंग बुलाकर देश में शांति और सद्भाव रहे इसकी अपील करना चाहिए।
मौका है जब मणिपुर कश्मीर सब जगह सरकार सामान्य स्थिति की बहाली की कोशिश सबके साथ मिलकर करती हुई दिखे।
मौका राजनीति का नहीं है। राजनीति की वजह से ही मणिपुर से लेकर कश्मीर तक स्थितियां सरकार के काबू में नहीं हैं।
मोदी सरकार केवल बातों से लोगों को भरमाने में और कई बार भड़काने में भी यकीन रखती है।
जबकि मूल समस्या राजनीतिक इच्छा शक्ति सुरक्षा मामलों की समीक्षा और जैसा की तमाम सेवानिवृत्ति सैन्य और सुरक्षा बल अधिकारी कह रहे हैं कि सरकार ने भर्तियां बंद करके सेना और सुरक्षा बलों के काम को मुश्किल बना दिया है।
कभी सेना और सुरक्षा बलों में एक मुहावरा कहा जाता था की मेन पावर ( आदमियों की) की कमी नहीं है।
आज सबसे ज्यादा वही हो गई है।