सुनील पांडेय / वरिष्ठ पत्रकार राज रतन कमल नहीं रहे। शुक्रवार देर रात निधन हो गया। आज सुबह से ही FB पर उनके लिए संवेदना व्यक्त की जा रही है। मैं भी इस दुःख की घड़ी में उनके परिवार के साथ खड़ा हूँ। लेकिन मुझे घोर आश्चर्य हो रहा है कि पटना में मौजूद उनके साथ काम कर चुके, उन्हें निजी रूप से जानने वाले मेरे वरिष्ठ पत्रकार बड़े भाइयों ने बस दो शब्द सहानुभूति के लिख कर अपने फर्ज की इतिश्री मान ली। यह ज्यादा पीड़ादायक है। किसी ने यह लिखने की जरूरत नहीं समझा कि आखिर अचानक उनकी मौत क्यों हो गई ? मैं निजी तौर पर स्वर्गीय कमल जी को नहीं जानता था, मेरी कोई जान-पहचान नहीं थी। लेकिन इच्छा हुई यह जानने कि की आखिर उनकी मौत कैसे हुई?
पूरे पत्रकारीय जगत को यह जानकर दुःख होगा कि कमल जी की मौत का कारण वह संस्थान है जिसे कटिहार उन्होंने खड़ा किया अपने खून-पसीने से। किसी नए अखबार को पैर जमाने में कितना संघर्ष करना पड़ता है, इसकी कल्पना कोई भी कर सकता है। कमल जी ने वो सब किया। लेकिन बदले में क्या मिला ? आइए उस पर चर्चा कर लेते हैं। कोरोना पर कॉस्ट कटिंग जरूरी मानते हुए संस्थान मुख्यालय यानि पटना से 1 जुलाई को कमल जी को फोन किया जाता है। कोरोना की दुहाई देकर यह कहा जाता है कि आप आधे सैलरी पर काम करें या फिर संस्थान छोड़ दें। कमल जी जैसे संवेदनशील व्यक्ति के लिए यह प्रस्ताव सुनना किसी व्रजपात से कम नहीं था। यहां स्प्ष्ट करता चलूँ कि कमल जी आर्थिक रूप से काफी सुदृढ़ थे। दोनों बेटियां शादीशुदा हैं और काफी बड़े ओहदे पर खुद कार्यरत हैं। जाहिर है, कमल जी को सदमा लगा जबकि उस समय वो खुद बीमार चल रहे थे। 2 जुलाई को अपने निकट मित्रों के साथ उन्होंने संस्थान से मिले आदेश की चर्चा भी की और कहा कि आज के दौर में भावनाओं की कोई कद्र नहीं है। कम्पनी की इस व्यवहार को वो सहन नहीं कर सके। फिर वही हुआ, दिल पर चोट लगी और वो ह्रदयाघात के कारण इस मतलबी दुनियां को छोड़ गए।
मुझे शिकायत पटना में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार भाइयों से है जो कमल जी को निजी रूप से जानते थे, यह जानना या लिखना मुनासिब नहीं समझा कि आखिर एक ईमानदार और संवेदनशील पत्रकार की मौत कैसे हुई। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे।
(फेसबुक वाल से साभार)