रमणिका गुप्ता की आत्मकथा “आपहुदरी” पटना के पत्रकार वीरेंद्र कुमार यादव की नजर से
हिन्दी की लेखिका और बिहार विधान मंडल की पूर्व सदस्य रमणिका गुप्ता की अपनी संघर्ष यात्रा रही है। देह यात्रा रही है। सत्ता यात्रा रही है। कभी हारीं, कभी जीतीं। यौन आनंद और यौन प्रताड़ना की सीमा रेखा। सुरक्षा का अहसास और सुरक्षित होने का भ्रम। और फिर अपनी पहचान का अंतहीन संघर्ष। यही हैं रमणिका गुप्ता।
पढ़ना हमारे स्वभाव में नहीं है। रमणिका गुप्ता की आत्मकथा ‘आपहुदरी’ की चर्चा साथियों से सुनी थीं। उसकी विषय-वस्तु की चर्चा होती थी। इस पुस्तक में बिहारी राजनेताओं के साथ यौन आनंद या यौन प्रताड़ना का उनका आत्मानुभव है। जैसा झेला, वैसा लिखा। कोई लाग-लपेट नहीं। एक नेता के बारे में उन्होंने पूरी भूमिका के साथ लिखा- ‘नेता जी आए और देह में आग लगाकर चले गए। बाद में उनका बॉडीगार्ड आया। बॉडीगार्ड ने कहा- नेता जी, जो आग लगा गए हैं, हम उसे बुझाने आए हैं।‘ पूरी घटना का रोचक वर्णन। बिहार के मुख्यमंत्रियों से लेकर केंद्रीय मंत्रियों तक की देह गाथा। देह को लेकर कांग्रेसी हों या समाजवादी, सभी का एक ही नजरिया।
लेकिन पुस्तक सिर्फ देह गाथा नहीं है। पुस्तक में धनबाद की कोलियरी में राजपूत और भूमिहारों का सत्ता संघर्ष, ब्राह्मणों का दखल की भी चर्चा है। समाजवादी रानजीति में अगड़ों-पिछड़ों के बीच नेतृत्व को लेकर लड़ाई तो कांग्रेस में आपसी गुटबाजी का खेल। सब कुछ है उनकी आत्म़कथा में। लेकिन पूरी आत्मकथा के केंद्र में है देह।
हमने पहले कहा था कि पढ़ना मेरे स्वभाव में नहीं है। इस पुस्तक को पढ़ने का मुख्य कारण बिहारी राजनीति की घटनाओं का होना है, बिहारी नेताओं के चरित्र आख्यान होना ही है। पूरी पुस्तक देह के आसपास ही घुमती है, लेकिन उसके साथ जीवन के तमाम पहलुओं, अपेक्षाओं, विवशताओं को समटने का जीवंत प्रयास है ‘आपहुदरी’।
राजनीति में समझौता या व्यभिचार ज्यादा चलता है और बलात्कार कम
रमणिका गुप्ता के पति प्रकाश 1960 में धनबाद आये थे सहायक श्रमायुक्त के पद पर। उनके साथ ही रमणिका का धनबाद में पदार्पण हुआ। आत्मकथा के पहले भाग में उन्होंने पंजाब, दिल्ली , मुम्बई से लेकर मद्रास तक अपनी देह गाथा का जिक्र किया है। आनंद, उत्पीड़न, संवेदना, आवेग, अनुभूति से लेकर विद्रोह तक। छोटी-छोटी कहानियों के रूप में घटनाओं को बांधा गया है। हर घटना के केंद्र है देह। पात्रों में परिवार के साथ पड़ोसी से लेकर रिश्तेदार तक हैं।
पुस्तक का दूसरा भाग बिहार से जुड़ा हुआ है। इसी भाग में देह यात्रा के साथ सत्ता यात्रा शुरू होती है। इसी यात्रा में वे विधान सभा और विधान परिषद के लिए चुनी गयीं। पंजाब में पली-बढ़ी महिला का बिहार की सत्ता में दखल की अधूरी दास्तान को पुस्तक में समेटा गया है।
रमणिका ने लिखा है कि ' राजनीति में समझौता या व्यभिचार ज्यादा चलता है और बलात्कार कम। कभी-कभी परिस्थितियां बदलने पर भी अपवाद स्वरूप बलात्कार का रूप ले लेती हैं। मैंने स्वयं कई महिलाओं को आमंत्रण देते देखा है। उनके पतियों को बाहर पहरे पर बैठे देखा है। ऐसी स्थिति में यह व्यापार बन जाता है, जिसमें लाभ और हानि दोनों होते हैं। पति पत्नी के विकास में सीढ़ी का रोल अदा करते हैं। वह अपना स्वार्थ पत्नी के माध्यम से सिद्ध करना चाहते हैं।'
पुस्तक में कहा गया है कि धनबाद के पैसे से पटना की सरकार बनती और गिरती थी। एक हुआ करते थे गॉडफादर। भूमिहार थे। उन्होंने भोजपुरी इलाकों से अपने लिए कई लठैत धनबाद ले गए थे, जो अधिकतर राजपूत जाति के थे। यही लठैत बाद में गॉडफादर के लिए चुनौती बन गए। फिर राजपूत व भूमिहारों के बीच कोलियरी की राजनीति में वर्चस्व की लड़ाई शुरू हो गयी। इनकी लड़ाई में ही ब्राह्मणों ने अपने लिए जमीन की तलाश की। राजपूतों ने सत्ता की लड़ाई में कायस्थों को अपने पक्ष में रखा।
कोयले के कारोबार से निकलने वाली ‘आंच’ की तपिश पटना तक महसूस की जाती थी। पार्टी के लिए चंदा भी कोलियरी से जाता था। पार्टी का कोई बंधन नहीं था। पुस्तक के अनुसार, राज्य के मुख्यमंत्री दिल्ली में अपनी गोटी जमाए रखने के लिए महिलाओं को भेजते थे। उन दिनों एक नर्स चर्चित थीं, जिन्हें बाद में एमएलसी बना दिया गया था। पति के लेबर आफिसर होने के कारण रमणिका का संपर्क और कार्य का दायरा भी बढ़ा। उनकी सामाजिक और राजनीतिक सक्रियता ने उनके सपनों को नयी ऊंचाई दी। राजनीति में महिलाओं की भूमिका और उनके लिए स्पेस पर भी उन्होंने लिखा है। राजनीतिक परिवार की महिलाओं का राजनीति में सम्मान था, लेकिन नयी-नयी महिलाओं की दुर्गति का अंत नहीं।
वीरेंद्र कुमार यादव