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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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‘समागम’ का नया अंक रेडियो पर

आकाशवाणी की सिग्नेचर ट्यून, किसने, कब बनाई शायद आपको ना मालूम हो, आप तो शायद यह भी भूल गए होंगे कि बिनाका गीत माला और सिबाका गीत माला बाद के दिनों में सिबाका-कॉलेगेट गीतमाला के नाम से प्रसारित होता था. कुछ ऐसी ही अनुछुई और भूल चुके यादों को साथ लेकर आया है रिसर्च जर्नल ‘समागम’ का नया अंक ‘रेडियो की वापसी’ के साथ. रिसर्च जर्नल ‘समागम’ अपने निरंतर प्रकाशन का 17वां वर्ष पूर्ण कर 18वें वर्ष में प्रविष्ट कर गया है. 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस के अवसर पर ‘समागम’ ने फरवरी 2018 का अंक रेडियो पर केन्द्रित किया है. रेडियो अंक में रेडियो प्रस्तोताओं के लिए स्वयं अमीन सयानी ने टिप्स लिखें हैं कि कैसे कार्यक्रम को प्रभावी बनाया जाए तो साथ में रेडियो के इतिहास, उसके प्रभाव का विस्तार से आंकलन किया गया है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यक्रम ‘मन की बात’ ने रेडियो को एक बार कैसे प्रभावी बनाया है, इस बात की विस्तार से विवेचना की गई है. साथ में मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री क्रमश: डॉ. रमनसिंह की ‘रमन के गोठ’ व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की ‘दिल से’ रेडियो कार्यक्रम के बारे में चर्चा है. डॉ. रमनसिंह ने अपने रेडियो कार्यक्रम को प्रभावी और सहज बनाने के लिए स्थानीय छत्तीसगढ़ी बोली में स्वयं को केन्द्रित किया है. लेखक का सुझाव है कि मध्यप्रदेश में संचालित 8 कम्युनिटी रेडियो से मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान का कार्यक्रम बोलियों में प्रसारित होने से अपहुंच वाले स्थानों तक बात पहुंच सकती है.  

यूजीसी से मान्यता प्राप्त एवं भोपाल से प्रकाशित रिसर्च जर्नल ‘समागम’  इन 17 वर्षों के सफर में अनेक किस्म के प्रयोग किए और हर अंक विषय विशेष के लिए रहा. मीडिया, सिनेमा और समाज में अंतर्सबंध है. जब आप मीडिया की बात करते हैं तो सिनेमा और समाज का रिफलेक्शन दिखता है और जब सिनेमा और समाज की बात करते हैं तो मीडिया की उपस्थिति दिखती है. उल्लेखनीय है कि इन्हीं विषयों को केन्द्र में रखकर 17 वर्ष पहले भोपाल से  रिसर्च की मासिक पत्रिका ‘समागम’ का प्रकाशन आरंभ किया गया था.  रिसर्च जर्नल ‘समागम’ को देशभर के शिक्षाविद् एवं मीडिया जगत के नामचीन व्यक्तियों का मार्गदर्शन प्राप्त हो रहा है।  वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं अकादमिक गतिविधियों से संबद्ध मनोज कुमार लगातार 17 वर्षों से रिसर्च जर्नल ‘समागम’ का सम्पादन कर रहे हैं.  इस जर्नल से आरंभ से लेखकों की तस्वीर छापने से परहेज किया है. वह भी इसकी अलग तरह की छाप है. 

 

पत्रिका  :  समागम (मासिक)

मूल्य  :  50/- रुपये मात्र 

सम्पादक :  मनोज कुमार

सम्पर्क  :  3, जूनियर एमआयजी, द्वितीय तल, अंकुर कॉलोनी, शिवाजीनगर, भोपाल-16

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सम्पादक

डॉ. लीना