जन मीडिया का दिसंबर अंक
लीना/ जन मीडिया का 93वां अंक में, अध्ययन के तहत 'नोटबंदी और प्रॉपर्टी खरीदने बेचने के विज्ञापनों का अध्ययन' किया है संदीप भट्ट और कपिल देव प्रजापति ने। जबकि रजनीश ने 'राखीगढ़ी डीएनए की जानकारी की खबरें: एक प्रचार अभियान' के तहत विस्तृत रिपोर्ट दी है। वही, शोध दृष्टि में अनिल चमडिया ने जो खुद जन मीडिया के संपादक हैं 'वह अविश्वसनीयता की खबर होती है जिसमें मीडिया प्रचारक दिखता है' पर कलम चलाई है। शोध संदर्भ में,'भविष्य को लेकर पत्रकारिता के सिपाहियों की दुविधा' को लिखा है रसमस कलीस नील्सन ने तथा 'पत्रकारिता और संसदीय विशेषाधिकार' पर भी शोध आलेख है।
नोटबंदी और प्रॉपर्टी खरीदने बेचने के विज्ञापनों का अध्ययन- के लिऐ लेखक संदीप भट्ट और कपिल देव प्रजापति ने मध्य प्रदेश के हिंदी समाचार पत्रों का संदर्भ दिया है पूरे विस्तार से बताने की कोशिश की है कि कैसे अखबारों में नोटबंदी के दौरान प्रॉपर्टी खरीद और बिक्री के लिए विज्ञापनों को दिया गया। इसमें वर्गीकृत , गैर वर्गीकृत विज्ञापनों को रखा गया है।
'राखीगढ़ी डीएनए की जानकारी की खबरें :एक प्रचार अभियान' में रजनीश ने राखीगढ़ी शोध निष्कर्ष पर पांच अखबारों की खबरों के बीच विश्लेषण के निष्कर्ष पर चर्चा की है। वेे बताते हैं कि एक तरह से, पांच राष्ट्रीय दैनिक अखबारों की खबरें आर्यों के स्वदेशी मूल से संबंधित विचार को वैध बनाने के एक खास किस्म की राजनीतिक विचारधारा के अभियान का हिस्सा थी। रोचक अध्ययन है।
अनिल चमडिया ने वह अविश्वसनीयता की खबर होती है जिसमें मीडिया प्रचारक दिखता है, खबरों कभी स्टेशन करने के बाद लिखते हैं किसी पक्ष की तरफ झुका शीर्षक देना खबर की तटस्था नहीं मानी जा सकती है। यह खबर की मांगों को खत्म करती है। उन्होंने पीटीआई , हिंदू , द इकोनोमिक टाइम्स आदि की खबरों के प्रताड़ना के बाद आलेख लिखा है।
सुनील गुप्ता और प्रवीण डोगरा ने रसमस कलिस नील्सन के आलेख 'भविष्य को लेकर पत्रकारिता के सिपाहियों की सुविधा' को अनुवादित किया है ।जैसा शीर्षक है आलेख में पत्रकारिता के सिपाहियों की दुविधा को रेखांकित की गई है इसमें की चिंता को लेखक ने उठाया है पढ़ने लायक शोध संदर्भ है।
अंत में प्रेस की आजादी पुस्तक से एक आलेख प्रकाशित किया गया है' पत्रकारिता और संसदीय विशेषाधिकार'। इसका प्रकाशन, ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क ने किया है । इसमें पत्रकारिता और संसदीय विशेषाधिकार को विस्तार से रेखांकित किया गया है ।विशेषाधिकार और बिल की चर्चा की गई है ।पत्रकारों और प्रेस को दंड देने के लिए संसदीय विशेषाधिकार का इस्तेमाल सांसद और विधायक को द्वारा किए जाने को दुखद नतीजा बताया गया है। शोध संदर्भ को आज के मीडिया के छात्रों के साथ-साथ मीडिया से जुड़े सभी लोगों को पढ़ना चाहिए।
पत्रिका -जन मीडिया
वर्ष- 8
अंक- 93, दिसंबर- 2019
मूल्य- ₹20
संपर्क- C2 , पीपलवाला मोहल्ला, बादली एक्सटेंशन, दिल्ली 42