Menu

 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

Print Friendly and PDF

Blog posts : "पत्रिका पुस्तक समीक्षा मीडिया पुस्तक समीक्षा व्यंग्य संस्मरण साहित्य सिनेमा"

पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए प्रेरणा का दस्तावेज है – ‘...लोगों का काम है कहना’

सुदर्शन व्यास/  ‘लोगों का काम है कहना...’ पुस्तक का आखिरी पन्ना पलटते समय संयोग से महात्मा गांधी का एक ध्येय वाक्य मन–मस्तिष्क में गूंज उठा – ‘कर्म ही पूजा है’। जब मैं इस किताब को पढ़ रहा था तो बार–बार महात्मा गांधी का ये वाक्य सहसा अंतर्गन में सफर कर रहा था। ये कहूँ तो कोई …

Read more

तीन श्रेष्ठ कवियों की पत्रकारिता का आकलन

कृपाशंकर चौबे/ हिंदी के तमाम मूर्धन्य संपादक पत्रकारिता के किसी संस्थान या विश्वविद्यालय से प्रशिक्षित नहीं थे। किंतु वे अपने आप में प्रशिक्षण संस्थान थे। वे पूरे के पूरे पाठ्यक्रम थे और वे ही प्रयोगशाला थे। उनके भीतर अपने समाज को देखने और समझने की अचूक दृष्टि थी। इसलिए पत्रक…

Read more

लोकमंगल के संचारकर्ता हैं नारद

नारद जयंती(25 मई) पर विशेष

प्रो. संजय द्विवदी/    ब्रम्हर्षि नारद लोकमंगल के लिए संचार करने वाले देवता के रूप में हमारे सभी पौराणिक ग्रंथों में एक अनिवार्य उपस्थिति हैं। वे तीनों लोकों में भ्रमण करते हुए जो कुछ करते और कहते हैं, व…

Read more

Movies often show corrupt politicians

Portrayal of political campaigns and elections in Indian films

Abhishek Sharma/ Indian films often depict the dark side of political campaigns and elections through the representation of political corruption and manipulation. Characters in these films are frequently portrayed as embodying corrupt…

Read more

शिवाजी के किलों की कहानी बताती है ‘हिन्दवी स्वराज्य दर्शन’

प्रो. (डॉ) संजय द्विवेदी/ लेखक लोकेन्द्र सिंह बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। कवि, कहानीकार, स्तम्भलेखक होने के साथ ही यात्रा लेखन में भी उनका दखल है। घुमक्कड़ी उनका स्वभाव है। वे जहाँ भी जाते हैं, उस स्थान के अपने अनुभवों के साथ ही उसके ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक महत्व स…

Read more

सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही नफ़रत एक सुनियोजित षड़यंत्र ?

तनवीर जाफ़री/ जिस भारत देश में स्कूली शिक्षा में प्राइमरी कक्षा की इतिहास की पाठ्य पुस्तकों में सभी धर्मों के महापुरुषों की जीवन गाथा केवल इसी मक़सद से पढ़ाई जाती थी ताकि देश के कर्णधार बच्चों को न केवल उनके व्यक्तित्व के बारे में पता चल सके बल्कि उनके प्रति आदर, सत्कार, सम्मान व स्…

Read more

लोकहृदय के प्रतिष्ठापक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

बी. एल. आच्छा/ कहते हैं कि आलोचकों की मूर्तियां नहीं बनती। पर दौलतपुर (रायबरेली) के आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी तो अपवाद हैं ही। और साहित्य में लोकहृदय के प्रतिष्ठापक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का व्यक्तित्व तो हिन्दी के हर पाठक में मूर्तिमान है। यह क्या कम है कि ग्राम अगौना जनपद बस्…

Read more

रामसिंह की ट्रेनिंग

मॉस कम्युनिकेशन में यह नहीं पढाया जाता .... 

दिनेश चौधरी/ पिछले छः-सात दिनों से पड़ोस वाले घर से अजीब-सी आवाजें आती हैं। आवाज जानी-पहचानी सी लगती तो है, पर इतनी तीव्र होती है कि कुछ समझ में नहीं आता। कई बार जी में…

Read more

कुछ तो लोग कहेंगे...लोगों का काम है कहना

डॉ. विनीत उत्पल/ संजय द्विवेदी महज एक नाम है। वह नाम नहीं, जिसके आगे प्रोफेसर या डॉक्टर लगा हो। वह नाम नहीं, जिसके बाद महानिदेशक या कुलपति लगा हो। यह नाम है ऐसे शख्स का, जो समाज के एक तबके से लेकर किसी संस्थान या फिर राष्ट्र की तकदीर बदलनी की क्षमता रखता है। वह राख की एक छोटी…

Read more

अलविदा फोटो जर्नलिस्ट राजीव

कुमार कृष्णन/ राजीव नाम से चर्चित राजीवकांत  बिहार के चर्चित फोटो जर्नलिस्ट रहे हैं।  उनके जीवन में, उनकी नैतिकता में, उनके संस्कार में पैसे महत्वपूर्ण नहीं रहे। वे जीवन को संपूर्णता के साथ जीते-देखते रहे। राजीवकांत आज इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उनसे जुड़ी अनेक यादें हैं।…

Read more

पत्रकारों की असमय मृत्यु का राज़ !

वरिष्ठ पत्रकार राज बहादुर का निधन

नवेद शिकोह/ राजनीतिक रिपोर्टिंग पर राज करने वाले लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार राज बहादुर की मृत्यु के राज़ भी राज़ रह जाएंगे। ख़ुद्दारी की चादर में लिपटी ना जाने कितने ही पत्रकारों की देह एक राज…

Read more

एक पत्रकार जो रिपोर्ट लिखने और लोगों की जान बचाते शहीद हो गया

सीटू तिवारी/ गणेश शंकर विद्दार्थी को याद करना इस वक्त बहुत जरूरी है.

आज जब पत्रकार के एक्टीविस्ट हो जाने या अपनी रिपोर्ट से इतर जरा सा बोल देने या कोई हस्तक्षेप कर देने पर भवें तन जाती है, …

Read more

भीड़ में अकेले पुष्पेंद्र

मनोज कुमार/ कोई कहे पीपी सर, कोई कहे बाबा और जाने कितनों के लिए थे पीपी. एक व्यक्ति, अनेक संबोधन और सभी संबोधनों में प्यार और विश्वास. विद्यार्थियों के लिए वे संजीवनी थे तो मीडिया के वरिष्ठ और कनिष्ठ के लिए चलता-फिरता पीआर स्कूल. पहली बार जब उनसे 25 बरस पहले पहली बार पुष्पेन्द्रपाल…

Read more

जब सचमुच पत्रकारिता ही होती थी

जाना नैयर साहब का

दिनेश चौधरी/ सड़क के एक छोर पर कॉफी हाऊस था और दूसरी ओर नया-नया 'दैनिक भास्कर'। अखबार के दफ्तर में किसी ने बताया कि नैयर साहब कॉफी हाऊस में मिलेंगे। जोश और जुनून में मैंने जबरदस्ती एक अखबार में इस्तीफा दे दिया था और नई नौकरी की तलाश…

Read more

‘मीडिया को जो लोग चला रहे हैं, वे दरअसल मीडिया के लोग नहीं हैं’

संत समीर/ आजकल आमतौर पर जिस तरह के साक्षात्कार हमें पढ़ने को मिलते हैं, यदि उनके भीतर की परतों को पहचानने की कोशिश करें तो कम ही साक्षात्कार मिलेंगे जो सही मायने में सच का साक्षात् करा पाते हों। आत्मश्लाघा इस दौर के साक्षात्कारों की आम बात है। असुविधाजनक प्रश्नों से बचकर निकल लेना या ग…

Read more

वक्त के साथ बदलते मीडिया से साक्षात्कार

डॉ. विनीत उत्पल/ वक्त बदल रहा है, मीडिया बदल रहा है, मीडिया तकनीक बदल रही है, मीडिया के पाठक और दर्शक की रुचि, स्थिति और परिस्थिति भी बदल रही है। ऐसे में मीडिया अध्ययन, अध्यापन और कार्य करने वालों को खुद में बदलाव लाना आवश्यक है। इसके लिए मीडिया के मिजाज को समझना और समझाना आव…

Read more

पत्रकार और प‍त्रकारिता से जुड़े सवालों के उत्तरों की तलाश

अजय बोकिल/ पुस्तक ‘जो कहूंगा सच कहूंगा’ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली (आईआईएमसी) के महानिदेशक, पत्रकार, शिक्षाविद प्रो. (डाॅ.) संजय द्विवेदी के साक्षात्कारों का ऐसा संकलन है, जो उनकी ‘मन की बात’ का परत दर परत खुलासा करता है। यह मीडिया का एक मीडिया विशेषज्ञ के साथ सार्थक संवाद है…

Read more

खेल पत्रकारिता की बारीकियां सिखाती एक पुस्तक

लोकेन्द्र सिंह/  “खेल में दुनिया को बदलने की शक्ति है, प्रेरणा देने की शक्ति है, यह लोगों को एकजुट रखने की शक्ति रखता है, जो बहुत कम लोग करते हैं। यह युवाओं के लिए एक ऐसी भाषा में बात करता है, जिसे वे समझते हैं। खेल वहाँ भी आशा पैदा कर सकता है, जहाँ सिर्फ निराशा हो। यह नस्ल…

Read more

इतनी जल्दी क्या थी दोस्त इस दुनिया को छोड़कर जाने की

वरिष्ठ पत्रकार संजीव प्रताप सिंह का निधन, स्मृति शेष

लिमटी खरे/ सुबह साढ़े सात बजे के लगभग जब अखबार बांच रहे थे, उसी दौरान मोबाईल पर घंटी बजी, मित्र संजीव प्रताप सिंह का फोन था। छूटते ही बोले ‘भैय…

Read more

पत्रकारिता से साहित्य में चली आई ‘न हन्यते’

इंदिरा दांगी/ आचार्य संजय द्विवेदी की नई किताब 'न हन्यते' को खोलने से पहले मन पर एक छाप थी कि पत्रकारिता के आचार्य की पुस्तक है और दिवंगत प्रख्यातों के नाम लिखे स्मृति-लेख हैं, जैसे समाचार पत्रों में संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित हुआ करते ही हैं; लेकिन पुस्तक का पहला ही शब्द-चित्र…

Read more

20 blog posts

नवीनतम ---

View older posts »

पत्रिकाएँ--

175;250;e3113b18b05a1fcb91e81e1ded090b93f24b6abe175;250;cb150097774dfc51c84ab58ee179d7f15df4c524175;250;a6c926dbf8b18aa0e044d0470600e721879f830e175;250;13a1eb9e9492d0c85ecaa22a533a017b03a811f7175;250;2d0bd5e702ba5fbd6cf93c3bb31af4496b739c98175;250;5524ae0861b21601695565e291fc9a46a5aa01a6175;250;3f5d4c2c26b49398cdc34f19140db988cef92c8b175;250;53d28ccf11a5f2258dec2770c24682261b39a58a175;250;d01a50798db92480eb660ab52fc97aeff55267d1175;250;e3ef6eb4ddc24e5736d235ecbd68e454b88d5835175;250;cff38901a92ab320d4e4d127646582daa6fece06175;250;25130fee77cc6a7d68ab2492a99ed430fdff47b0175;250;7e84be03d3977911d181e8b790a80e12e21ad58a175;250;c1ebe705c563d9355a96600af90f2e1cfdf6376b175;250;911552ca3470227404da93505e63ae3c95dd56dc175;250;752583747c426bd51be54809f98c69c3528f1038175;250;ed9c8dbad8ad7c9fe8d008636b633855ff50ea2c175;250;969799be449e2055f65c603896fb29f738656784175;250;1447481c47e48a70f350800c31fe70afa2064f36175;250;8f97282f7496d06983b1c3d7797207a8ccdd8b32175;250;3c7d93bd3e7e8cda784687a58432fadb638ea913175;250;0e451815591ddc160d4393274b2230309d15a30d175;250;ff955d24bb4dbc41f6dd219dff216082120fe5f0175;250;028e71a59fee3b0ded62867ae56ab899c41bd974

पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना