लखनऊ। उर्दू के मशहूर प्रगतिशील शायर वामिक़ जौनपुरी की कविताओं का संकलन ‘एक रौशन मीनार’ का विमोचन 25 अप्रैल को वाल्मीकि रंगशाला में हुआ। वामिक़ की कविताओं का हिन्दी अनुवाद कवि व अनुवादक अजय कुमार ने किया है। इसके साथ ही हिन्दी के जाने माने कवि भगवान स्वरूप कटियार के नये कविता संग्रह ‘मनुष्य विरोधी समय में’ का भी विमाचन हुआ। यह कवि कटियार का तीसरा कविता संकलन है।
विमोचन का यह कार्यक्रम जन संस्कृति मंच द्वारा स्थानीय वाल्मीकि रंगशाला, संगीत नाटक अकादमी, गोमती नगर में आयोजित किया गया। इस मौके पर बी एन गौड़ ने वामिक़ की 1940 के दशक में आये बंगाल के दुर्भिक्ष पर लिखी अत्यन्त चर्चित व लोकप्रिय कविता ‘भूका बंगाल’ का पाठ किया। वहीं, भगवान स्वरूप कटियार ने भी अपने संग्रह से ‘प्रेम का तर्क’, ‘फर्क पड़ना’, ‘मां’ आदि कविताएं सुनाकर अपनी कविता के विविध रंगों से परिचित कराया।वामिक़़ व कटियार के कविता संग्रहों का लोकार्पण करते हुए आलोचक व जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय महासचिव प्रणय कृष्ण ने कहा कि हमारे प्रगतिशील आंदोलन के दौर में हिन्दी व उर्दू के बीच जो एकता बनी वैसी एकता न पहले और न ही बाद में देखने को मिलती है। वामिक़ साहब इस एकता के बेमिसाल उदाहरण हैं। उनके अन्दर सच्ची आजादी की ललक है। वे उर्दू के पहले शायर हैं जिन्होंनेे नक्सलबाड़ी संघर्ष का स्वागत किया और इसे तेलंगना किसान संघर्ष की अगली कड़ी बताया। वे लिखते हैं ‘वो जिसने पुकारा था हमको नौजवानी में/उफ़क पर चीख रहा वही सितारा फिर’।
भगवान स्वरूप कटियार की कविताओं पर बोलते हुए प्रणय कृष्ण ने कहा कि आज की हिन्दी कविता प्रगतिशील आंदोलन की परंपरा से जुड़ती है। यह बेहतर दुनिया को समर्पित, लोकतांत्रिक और सेक्युलर है। इस मौके पर ‘समकालीन सरोकार के प्रधान संपादक सुभाष राय ने कहा कि कटियार जी की कविताएं ऐसी हैं जो उम्मीद पैदा करती हैं। यहां नाउम्मीदी की सरहदों तक जाकर उम्मीद को रचने की जिद है। ‘मनुष्य विरोधी समय में’ कवि मनुष्य होने की गरिमा व गौरव को बचाने का रास्ता खोजता है।
इसमें उस पूंजीवादी विकास व सभ्यता की आलोचना व प्रतिकार है जिसने मनुष्य को पशु से भी बदतर बना दिया है।कर्यक्रम की अध्यक्षता कवि व आलोचक चन्द्रेश्वर ने की। उनका कहना था कि कवि भगवान स्वरुप कटियार इस अँधेरे समय में भी उम्मीद और स्वप्न के कवि हैं। वे मनुष्य विरोधी समय में भी मनुष्यता की पहचान करने वाले सरल-सहज संवेदना के कवि हैं। वे सामाजिक सरोकार रखने वाले एक प्रतिबद्ध कवि हैं। वे वैश्वीकरण के दौर में भी कविता पर यकीन रखे हुए हैं। वे साफ लिखते हैं कि लिखने से भले कोई खास फर्क न पड़े, पर न लिखने से फर्क पड़ता है। वे सोचना, बोलना और लिखना जरूरी मानते हैं। वे प्रतिरोध के कवि हैं। एक कविता में वे कहते हैं कि अगर उन्हें स्त्री और ईश्वर में से किसी एक को चुनना हो तो वे स्त्री को चुनेंगे। वे प्रेम को एक क्रन्तिकारी मूल्य मानते हैं। वे अपने समय की खौफनाक सच्चाइयों को भी कविता में दर्ज करते हैं। वे एक बेहतर दुनिया के लिए काम करने वाले कवि हैं। वे देशों की सरहदों को मिटा देना चाहते हैं। वे मनुष्य मात्र में यकीन रखने वाले कवि हैं।
वरिष्ठ लेखक शकील सिद्दीकी ने वामिक साहब की कविताओं पर कहा कि उन्होंने उर्दू शायरी को लोकशैली की ओर ले गये। उन्होंने चैती, बिरहा, कजरी, आल्हा जैसे लोकरूपों में शायरी की। यह नई बात थी और इसके खतरे थे। वामिक साहब ने यह काम खतरे उठाकर किये। कार्यक्रम का संचालन जसम के संयोजक कौशल किशोर ने किया।