सन् 2012 में लांच होने के बाद तेजी से सफलता की ओर बढ़ रही और वंचित तबके की आवाज बन चुकी मासिक पत्रिका ‘दलित दस्तक’ का चौथे वर्ष का समारोह 14 जून को होने जा रहा है.
पत्रिका के संपादक अशोक दास ने बताया कि इस समारोह के मुख्य अतिथि पूर्व न्यायधीश जस्टिस खेमकरण होंगे जबकि मुख्य वक्ता इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटर मध्य प्रदेश के कुलपति टी.वी. कट्टीमणि होंगे. विशिष्ट अतिथि के तौर पर प्रख्यात समाजशास्त्री एवं जवाहर लाल नेहरू विवि में प्रोफेसर विवेक कुमार, बौद्ध चिंतक एवं साहित्यकार आनंद श्रीकृष्ण और वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल शामिल होंगे. कार्यक्रम की अध्यक्षता रिटा. पी.सी.एस अधिकारी जे.सी आदर्श करेंगे. कार्यक्रम का विषयः दलित एजेंडा- 2050 रखा गया है. पत्रिका मई, 2015 अंक के साथ अपने प्रकाशन के तीन साल पूरे कर चुकी है.
आई.आई.एम.सी (2005-06 बैच) से पास आउट अशोक दास ने दलित एवं अति पिछड़े समाज के कुछ चुनिंदा बुद्धीजिवियों के साथ मिलकर जून, 2012 में “दलित दस्तक” नामक पत्रिका की नींव रखी थी. अशोक पिछले आठ सालों से मीडिया में सक्रिय हैं. इससे पूर्व वह लोकमत और अमर उजाला सरीखे अखबारों में नौकरी कर चुके थे. पूर्व में वह मीडिया जगत की नंबर-1 हिन्दी वेबसाइड भड़ास4मीडिया में बतौर कंटेंट एडिटर अपनी सेवा दे चुके हैं. फिलहाल अशोक दास ‘दलित दस्तक’ के प्रकाशन के साथ ही अकोला-नागपुर से प्रकाशित समाचार पत्र “देशोन्नति” के दिल्ली ब्यूरो में बतौर राजनीतिक संवाददाता कार्यरत हैं और संसद की रिपोर्टिंग भी करते हैं. मीडिया से जुड़ने के बाद इसमें वंचित तबके की खबरों का अभाव अशोक को हमेशा से कचोटता रहता था. अपने स्तर से इसे पूरा करने के लिए उन्होंने सबसे पहले दलितमत.कॉम (www.dalitmat.com) नाम की वेबसाइट लांच की जो दलित दस्तक का आधार बनी.
मैगजीन की तीन साल की उपलब्धियों पर चर्चा करते हुए उनका कहना है कि, “हम लगातार तीन साल से विश्व पुस्तक मेले में भागीदारी कर रहे हैं, जहां हमें काफी बेहतर प्रतिक्रिया मिली है. दलित राजनीति में भी पत्रिका की धमक बढ़ी है तो वहीं दलितों पर अत्याचार के मामले में भी हमारी रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुए स्वतः कार्रवाई हुई है और लोगों ने आगे बढ़ कर पीड़ितों की मदद की है. मुख्यधारा की मीडिया जिन बातों को कहने से हिचकती है उसे हम खुलकर कहते हैं. हमारे काम को लोकसभा टीवी ने कवर किया है. पत्रिका के एक साल पूरा होने पर एक डाक्यूमेंटरी बनाई गई थी देखें लिंक (https://www.youtube.com/watch?v=ha4B3XmaBsM) तो कंस्टीट्यूशन क्लब में हुए दूसरे वार्षिक समारोह में एक स्मारिका का विमोचन कर हमने अपने काम को देश-दुनिया के सामने रखने की कोशिश की. इन तीन सालों में पत्रिका ने कई मुकाम हासिल किए है. इसे दो हजार प्रति से शुरू किया गया था और आज यह पत्रिका पंद्रह राज्यों के तकरीबन 250 शहरों में पहुंच चुकी है और इसकी पाठक संख्या 1 लाख से ज्यादा है. वेबसाइट को भी हम प्रमुखता से चलाते हैं क्योंकि आज के वक्त में युवाओं से जुड़ने के लिए हम बेवसाइट का सहारा लेते हैं तो गांवों और छोटे शहरों में पत्रिका के जरिए अपनी बात पहुंचाते हैं.”
दलित मुद्दों पर पत्रिका निकालना कितना मुश्किल काम और आर्थिक जरूरतें कैसे हल होती है, पूछने पर अशोक कहते हैं, “दिक्कतें तो आई लेकिन हमने पैसे के लिए कभी भी विचारधारा से समझौता नहीं किया. हमारी विचारधारा अंबेडकरवाद है और हमें इसी विचारधारा के साथ चलना है. जहां तक आर्थिक जरूरतों की बात है तो यह पत्रिका सामूहिक भागीदारी से निकल रही है और एक पूरी टीम है जो मुख्यधारा की मीडिया में उपेक्षित पड़ी आवाज को बल देने के लिए प्रतिबद्ध है. हमारी टीम ही हमारी मजबूती है. इसके संपादक मंडल में प्रो. विवेक कुमार, आनंद श्रीकृष्ण, शांति स्वरूप बौद्ध, दिलीप मंडल, डॉ. पूजा राय, देवमणि जी और जे.सी आदर्श सरीखे लोग शामिल हैं, जबकि दलित/पिछड़े समाज के अन्य लेखकों/बुद्धिजीवियों का भी हमें निरंतर सहयोग मिलता है. बतातें चलें कि 14 जून को होने वाला कार्यक्रम दो सत्रों में होगा. पहला सत्र सुबह 11 बजे से 2 बजे तक जबकि दूसरा सत्र 3-5 बजे तक होगा.
रिपोर्टः- राज कुमार